समस्तीपुर: बिहार के समस्तीपुर जिले के उजियारपुर प्रखंड के बेलारी गांव के प्रगतिशील किसान रामकिशोर सिंह तरबूज की खेती से न केवल अपने परिवार की तकदीर बदल ली. बल्कि गांव के लगभग 10 से 12 लोगों को अपने खेतों में रोजगार दे रहे है. साथ ही दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा बन रहे है. खेती में भाग्य आजमाने वाले किसान रामकिशोर करीब 20 सालों से दूसरे की जमीन ठेके पर लेकर खेती करते आ रहे हैं. अपने पिता की ही तरह उन्होंने कुछ दिन तक पारंपरिक खेती की, लेकिन इससे होने वाली आमदनी से भरण पोषण मुहाल था. फिर रामकिशोर ने करीब 4 बीघा जमीन ठेके पर लेकर लीक से अलग हट कर सब्जियों की खेती करनी शुरू की. तरबूज के अलावा पपीता ,परबल, बैगन, लाल भिंडी , टमाटर, गाजर और हरी मिर्च की भी खेती करने लगे.


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इसके बाद उनकी तकदीर ने साथ दिया और उनकी किसानी चमक उठी. उनके जमीन में अब रोज 12-15 मजदूर लगे रहे हैं. सालाना खर्चा काट कर दो लाख से तीन लाख बचा भी रहे हैं. बचत की गई राशि से उन्हें मकान भी बनाया है. कुछ अपने नाम जमीन भी खरीदी. किसान रामकिशोर सिंह का कहना हैं कि तरबूज आम तौर पर नदी के ढाव वाले इलाके में होता है, लेकिन इन्होंने तरबूज का बीज मंगाया. मिट्‌टी की जांच कराकर जरूतर के हिसाब से मिट्‌टी में जैविक खाद, बर्मी और गोबर का प्रयोग किया. बिलंब से तरबूज लगाए जाने के बाद भी फसल अच्छी हुई. रामकिशोर बताते हैं कि बाजार में मिल रही तरबूज और इनके खेत में उपजे तरबूज के मिठांस में काफी अंतर है. इस मिट्‌टी के तरबूज में मिठास काफी अच्छी है। चुकी उन्होंने रासायनिक खादों का प्रयोग नहीं किया.


रामकिशोर बताते हैं कि इस इलाके में तरबूज की खेती की जानकारी के बाद खरीददार उनके खेत तक पहुंच कर तरबूज की खरीदारी कर रहे हैं. उनका तरबूज 1200 क्विंटल तक बिका है. अब तो सिजल खत्म हो रहा है, इस बार उन्होंने करीब एक बीघा में तरबूज लगाया था. अगले वर्ष इसका दायरा और बढाएंगे. उम्मीद से ज्यादा आमदनी हो रही है. खेतों तक खरीदार के आने से उन्हें बाजार भी नहीं जाना पड़ता. खेतो में ही दाम मिल जाता है.


किसान रामकिशोर अपने खेतों में मौसम के अनुसार फसल लगाते हैं. इससे उनको सामान्य दिनों में प्रति एकड़ एक से सवा लाख रुपये सालाना की आमदनी होने लगी. इसके बाद उन्होंने आर्गेनिक सब्जियों की भी खेती शुरू कर दी. चूंकि इस समय आर्गेनिक सब्जियों और फलों की खूब डिमांड है, इसलिए उनको अच्छा खासा मुनाफा होने लगा. अब वह अपने खेतों में ही व्यस्त रहते हैं और मांग के अनुसार अपनी सब्जियों को मंडियो तक भेजते हैं.


इनपुट- संजीव नैपुरी


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