पृथक मिथिला राज्य की मांग को लेकर एमएसयू कार्यकर्ताओं ने किया प्रदर्शन, कहा-सरकार नहीं उठा रही है कोई ठोस कदम
मिथिला राज्य बनाने की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर पर मिथिला स्टूडेंट यूनियन (MSU) ने धरना प्रदर्शन किया. मिथिला राज्य की मांग दशकों से आंदोलित रही है. पहली बार मिथिला राज्य की मांग 1912 में की गई थी.
दरभंगा/ नई दिल्ली: मिथिला राज्य बनाने की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर पर मिथिला स्टूडेंट यूनियन (MSU) ने धरना प्रदर्शन किया. मिथिला राज्य की मांग दशकों से आंदोलित रही है. पहली बार मिथिला राज्य की मांग 1912 में की गई थी. इसके बाद 1921 में महाराजा रामेश्वर सिंह के द्वारा मांग की गई, लेकिन पहली बार मिथिला राज्य के लिए आंदोलन 1952 में हुआ, जिसके बाद से ये मामला बार-बार तूल पकड़ रहा है.
इसके बाद भी मिथिला की मांग को लेकर अभी तक सरकार की तरफ से कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है. लेकिन बिहार से अलग मिथिला राज्य गठन की मांग बार-बार सुर्खियों में रहती है. मैथिली भाषी लोगों की संख्याबल की बात की जाय तो 7 करोड़ से अधिक लोगों का अस्तित्व से जुड़ा हुआ है. मैथली भाषा भी संविधान के अष्टम अनुसूची में दर्ज है.
मिथिला राज्य की मांग को लेकर जुड़ा इतिहास
1912 में ही पहली बार अलग मिथिला राज्य की मांग हुई.
1921 में फिर महाराजा रामेश्वर सिंह ने मांग की.
1952 में पहली बार आंदोलन हुआ.
1954 में जानकी नंदन सिंह ने मांग उठाई.
1956 में उन्होंने पं. नेहरू को डॉक्यूमेंट सौंपा.
1986 में विजय मिश्रा ने मांग उठाई!
1996 में मिथिला राज्य समिति ने आंदोलन तेज किया.
2004 में ताराकांत झा की अगुवाई में आंदोलन
2008 में जेडीयू नेता ने मिथिला राज्य का समर्थन किया
2015 में सांसद कीर्ति आज़ाद ने संसद में मांग उठाई.
इसी कड़ी में दिल्ली के जंतर मंतर पर मिथिला स्टूडेंट यूनियन (MSU) के सेनानियों द्वारा धरना प्रदर्शन किया गया. MSU सेनानियों का आरोप है कि केंद्र और राज्य सरकार के द्वारा मिथिला क्षेत्र के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार किया जाता रहा है. मिथिला के लोगों को दशकों से बाढ़ और सुखाड़ में रखा गया है। भारत सरकार ने मिथिला क्षेत्र में विकास के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति करने का काम किया है.
एक समय था जब भारत के चीनी उत्पादन का लगभग 40 फीसदी चीनी तिरहुत से आता था. लेकिन राजनीतिक नकारात्मक सोच के कारण आज यह अनुपात सिमट कर मुश्किल से 4 फीसदी रह गया है. स्वतंत्रता से पहले इस क्षेत्र मे 33 चीनी मिलें थी. लेकिन आज मात्र 28 बची हैं, जिसमे भी केवल 5 मिल ही ऐसे हैं जो कार्यरत है. आज मिथिला की वीरान पड़ी चीनी मिल की जमीन, बर्बादी की दास्तां चीख चीख कर कह रही है कि मिथिला क्षेत्र के साथ जो विकास होना चाहिए था वो नहीं हुआ. कहीं न कहीं एक सुनियोजित तरीके से इस क्षेत्र को विकास से वंचित रखा गया. मौज़ूदा वक्त में मिथिला क्षेत्र के रैयाम, दरभंगा, लोहट मधुबनी, मोतीपुर, मुजफ्फरपुर, गरौल वैशाली, बनमनखी, पूर्णिया में भी कई मिलें हैं, जो कई दशकों से बंद पड़ी हैं.
मिथिला राज्य बनेगा तो लोगों को शिक्षा और स्वास्थ्य बेहतर मिल जाएगा. इसके अलावा उद्योग लगने पर लोगों को भी रोजगार मिल सकेगा. बिहार के करीब बीस जिले मिथिला के क्षेत्र में आते हैं, जिसमें दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया, सुपौल, बेगूसराय, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, कटिहार, अररिया समेत कई अन्य जिले शामिल हैं.