छपरा: आज देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की 134वीं जयंती है. राजेंद्र प्रसाद का जन्म बिहार के जीरादेई में हुआ था. यहीं उन्होंने राजकीय उच्च विद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की लेकिन अब यह जिला स्कूल अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है. यहां बुनियादी शिक्षण सुविधाएं भी मौजूद नहीं हैं. यह अपने आप में "स्वर्णिम अतीत का बदहाल वर्तमान" की कहावत चरितार्थ कर रहा है.


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इतना ही नहीं बल्कि इस विद्यालय के कई भवन शिक्षा विभाग के कब्जे में हैं. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को उद्धाहरण मानकर विद्यालय में शैक्षणिक व्यवस्था सुदृढ़ कर छात्रों के बीच एक आदर्श स्थापित किया जा सकता था पर विभागीय उदासीनता और राजनितिक प्रपंच ने इस विद्यालय के स्तर को उठने ही नहीं दिया. जिला स्कूल में वैसे तो नए और पुराने मिलाकर लगभग 40 कमरें है पर यहां के अधिकतर कमरों में विभागीय कार्यालय चलता है. 



शिक्षा विभाग के पास भवन की कमी होने के कारण विद्यालय में ही जिला शिक्षा पदाधिकारी का कार्यालय, डीपीओ कार्यालय, साक्षरता कार्यालय, कंप्यूटर सेंटर, निगरानी कार्यालय चलते हैं. वहीं, अधिकतर समय विद्यालय में शिक्षा विभाग से सम्बंधित कार्यक्रमों का आयोजन होते रहता है जिसकी वजह से यह विद्यालय शिक्षा का केंद्र कम कार्यालय ज्यादा लगता है.


हर साल 3 दिसंबर को देशरत्न की जयंती पर विद्यालय प्रशासन द्वारा एक परिचर्चा का आयोजन कर अपनी खानापूर्ति कर ली जाती है. इसी विद्यालय में राजेंद्र बाबू का नामांकन 1893 में आठवीं कक्षा में हुआ था. उस समय का यह प्रारंभिक वर्ग हुआ करता था. उस समय आठवीं वर्ग से उतीर्ण करने के बाद इसी स्कूल में नामांकन के लिए एंट्रेस में आया करते थे जिसे अव्वल दर्जा का वर्ग कहा जाता था. राजेंद्र बाबू इतने कुशाग्र बुद्धि के थे की उन्हें वर्ग आठ से सीधे वर्ग नौ में प्रोन्नति कर दिया गया था.


उन्होंने इसी जिला स्कूल से 1902 में एंट्रेस की परीक्षा दी थी जिसमे पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम, वर्मा और नेपाल में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपने प्रान्त का नाम रोशन किया था लेकिन लाख प्रयास करने के बाद भी वो उत्तर पुस्तिका कोलकाता से बिहार नहीं आ सका है जिसमें अंग्रेज परीक्षक ने एतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा था Examinee is better than examiner. 


राजकीय इंटर कॉलेज जिला स्कूल को मॉडल स्कूल का दर्जा प्राप्त है लेकिन सुविधा के नाम पर कुछ भी नही है. इस विद्यालय के कोने-कोने में राजेन्द्र प्रसाद की यादें जुड़ी हुई है लेकिन स्कूल की वर्तमान दशा व दिशा देख कर ऐसा नहीं लगता की इसका इतिहास इतना गौरवशाली रहा होगा. जर्जर भवन शिक्षा की बुनियादी सुविधाओं का अभाव के बावजूद उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में दो दर्जन शिक्षक है जो छात्रों को पठन पाठन के अलावे अन्य गतिविधियों की शिक्षा देने का कार्य करते हैं.


वहीं जिला स्कूल के प्रभारी प्राचार्य ने बताया कि विद्यालय में शैक्षणिक व्यवस्था सुचारू ढंग से चल रही है. शिक्षकों की संख्या भी पर्याप्त मात्रा में है. राजेन्द्र बाबू इसी विद्यालय में पढ़े है यह जिला स्कूल के लिए गर्व की बात है. समय-समय पर छात्रों को देशरत्न से जुडी स्मृतियाँ और उनके उपलब्धियों पर परिचर्चा का आयोजन किया जाता है.


समय रहते अगर शिक्षा विभाग शिक्षा के इस मंदिर को संरक्षित नही किया तो वो दिन भी दूर नही जब गौरवशाली अतीत वाला यह स्कूल इतिहास के पन्नो में दफ़न हो जाये  जरुरत है इसे सजाने व संवारने की जिससे छात्रों को राजेंद्र बाबू की तरह बनने का प्रेरणा मिल जाते हैं. इन वादों का सिलसिला दशकों से चला आ रहा है लेकिन विकास के नाम पर आज तक कुछ नहीं हुआ है. इसका मलाल सीवान की जनता और राजेंद्र बाबू के गांव के ग्रामीणो को भी है.