बिहार के इस जिले का एक गांव जहां इस दिन किसी घर में नहीं लगती झाड़ू ना जलता चूल्हा, जानिए वजह
बिहार का एक ऐसा गांव है जहां साल में एक दिन ना तो किसी के घर चचुल्हा जलता है ना हीं घर में महिलाएं झाड़ू लगाती हैं. बता दें कि इस दिन एक दिन पहले बने खाने को लोग खाते हैं. हालांकि बिहार में एक पर्व मनाया जाता है सतुवान या इसको यहां बिसुआ पर्व भी कहा जाता है.
नालंदा : बिहार का एक ऐसा गांव है जहां साल में एक दिन ना तो किसी के घर चचुल्हा जलता है ना हीं घर में महिलाएं झाड़ू लगाती हैं. बता दें कि इस दिन एक दिन पहले बने खाने को लोग खाते हैं. हालांकि बिहार में एक पर्व मनाया जाता है सतुवान या इसको यहां बिसुआ पर्व भी कहा जाता है. इसके ठीक एक दिन पहले बासी खाना खाने की प्रथा है. दरअसल इसके एक दिन पहले खाना बनाया जाता है और उसके अगले दिन इसे खाया जाता है. यह त्योहार भी चैत के महीने में ही मनाया जाता है.
वहीं आपको बता दें कि ऐसा ही एक त्योहार नालंदा में मनाया जाता है. जहां जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से तीन किलोमीटर की दूरी पर एक गांव बसा हुआ है जिसका नाम है मघड़ा. इस गांव में शीतला माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है जिसमें दूसरे राज्यों से भी श्रद्धालु मां की पूजा के लिए आते हैं.
बता दें कि यहां इस गींव के शीतला माता मंदिर में चैत्र कृष्णपक्ष अष्टमी के दिन इतनी भीड़ होती है कि आप इसका अंदाजा भी लगा नहीं लगा सकते हैं. यहां बसियोरा त्योहार मनाया जाता है और दूर-दूर से श्रद्धालु मां की पूजा के लिए आते हैं. बता दें कि यहां एक दिन पहले बने बासी खाने को लोग खाते हैं. ऐसे में गांव के किसी घर में इस दिन 24 घंटे तक चूल्हा नहीं जलता और झाड़ू का प्रयोग नहीं होता है. यहां बासी खाने को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. यहां मंदिर परिसर में एक तालाब है जिसमें लोग स्नान करते हैं और फिर पूजा अर्चना में जुट जाते हैं.
यहां इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि मघड़ा में जो शीतला माता मंदिर है वह सिद्धपीठ है. यहां हर तरह के चेचक सहित दाद और अन्य बीमारियां दूर होती हैं. यहां स्थित तालाब में नहाकर पूजा अर्चना करने से यह परेशानी दूर हो जाती है. कहते हैं कि यहां पर चढ़ाए गए नीर को लोग अपने साथ लेकर जाते हैं. जिससे चेचक सहित कई लोगों का बचाव होता है.