रामगढ़ः 21वीं सदी के वैज्ञानिक युग में हाथ से जुड़ी कई कलाएं दम तोड रही हैं. रामगढ़ के लारी गांव में करीब 400 साल से लोहे के काम से जुड़े कारीगर अब इस कला से दूर हो रहे हैं. दरअसल गांव के करीब 200 घरों में लोहे की कारीगरी का काम होता था. ये कारीगर किसानों के लिए खेती में उपयोग होने वाले यंत्र बनाते थे जिससे बदले में इन्हे अनाज और कुछ पैसे मिलते थे लेकिन मजदूरी कम होने के चलते अब काम ठप होता जा रहा है.


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खत्म हो रही है विरासत में मिली कला
कारीगर राधो करमाली और बाबूभाई करमाली बताते हैं कि कारीगारों को पुरखों से ये कारीगीरी विरासत में मिली है लेकिन कम मजदूरी के चलते बढ़ती महंगाई में परिवार चलाना अब मुश्किल होता जा रहा है और अब आने वाली पीढ़ी इस कला से दूर होती जा रही है. जितनी मजदूरी मिलती है उससे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई तक नहीं हो पाती है.  घनश्याम करमाली और अनुज कुमार जैसे कारीगरों को अब सरकार से उम्मीद है कि सरकार इन लोगों की मदद करेगी. घनश्याम करमाली ने कहा कि सरकार को हमलोगों की सहायता करनी चाहिए. बाबूभाई करमाली कहते हैं कि हमलोग को कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती है सरकार कहती है कि योजना का फायदा मिलेगा, लेकिन अबतक कुछ नहीं मिला.


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बाजार में नई मशीनरी का कब्जा 
आधुनिकता के दौर में अब बाजार में नई मशीनरी अपना कब्जा जमा चुकी है. ये कारीगर लोहे की बनी हुई कोड़ी, गैयता, कुदाल, कड़ाही, तवा जैसी वस्तुएं बनाते है लेकिन लोग अब पुराने और पारंपरिक सामान कम ही खरीदते हैं, जिसके चलते इन कारीगरों की कमाई नहीं होती है. हालांकि लारी गांव मे रह रहे कारीगर लोहे को आकर्षक रूप में ढालते हैं और किसानों के लिए खेतो में उपयोग होने वाले यंत्र बनाते हैं. यंत्र के बदले में इनको किसानों से चंद रुपये के अलावा चावल, आलू जैसा सामान मिलता है, लेकिन इतनी कम आमदनी से इनका परिवार नहीं चल पाता. जिसके चलते लोग अब खानदानी पेशा छोड़ने को मजबूर हैं, हालात ऐसे ही रहे तो लोहे से बनने वाली बेहतर कारीगीरी लुप्त हो जायेगी.
(इनपुट-झूलन अग्रवाल)