Bhagwan Birsa Munda Jayanti: क्या है बिरसाइत, जानिए कौन होते हैं इस धर्म को मानने वाले
Jharkhand Foundation Day, Birsa Munda Jayanti: बिरसाइत धर्म को मानने वाले लोग गुदड़ी प्रखंड के देवां, लाम्डार, डींडापाई, उरूडींग, कायोम, गीरू, लुम्बई समेत बंदगांव प्रखंड के कई गांव में भी बिरसाइत रहते हैं. इसे मानने वालों की संख्या हजारों तक में सीमित है और विडंबना है कि दिनों-दिन इनकी संख्या कम भी हो रही है.
रांचीः Jharkhand Foundation Day, Birsa Munda Jayanti: एक तरफ झारखंड राज्य अपने स्थापना के 21वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, तो वहीं राज्य के निवासियों समेत सारा देश बिरसा मुंडा, जिन्हें भगवान की भी संज्ञा दी गई है, उनकी जयंती मना रहा है.
इस जयंती के समय में याद आ रहा है एक समाज और एक धर्म जिसकी स्थापना खुद भगवान बिरसा मुंडा ने की थी. इसे बिरसाइत धर्म कहते हैं. बरसाइत धर्म मानने वालों के लिए गुरुवार के दिन बहुत महत्व है. क्या है बिरसाइत धर्म, कैसे हैं इसके मानने वाले लोग और क्या खास है इसमें, इस पर डालते हैं एक नजर-
1895 में हुई स्थापना
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे कुमार सुरेश सिंह ने बिरसा मुंडा पर एक शोध आधारित पुस्तक लिखी थी, 'बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन.' इस पुस्तक के आधार पर बिरसा मुंडा के चलाए गए बरसाइत धर्म के बारे में काफी जानकारी मिलती है.
पुस्तक के मुताबिक, "सन 1895 में बिरसा मुंडा ने अपने धर्म के प्रचार के लिए 12 शिष्यों को नियुक्त किया". जलमई (चाईबासा) के रहनेवाले सोमा मुंडा को प्रमुख शिष्य घोषित किया. उन्हें धर्म-पुस्तक सौंपी. यानी 1895 के आसपास ही भगवान बिरसा ने अपने धर्म बिरसाइत की स्थापना की होगी.
यहां रहते हैं बिरसाइत मानने वाले लोग
बिरसाइत धर्म को मानने वाले लोग गुदड़ी प्रखंड के देवां, लाम्डार, डींडापाई, उरूडींग, कायोम, गीरू, लुम्बई समेत बंदगांव प्रखंड के कई गांव में भी बिरसाइत रहते हैं. इसे मानने वालों की संख्या हजारों तक में सीमित है और विडंबना है कि दिनों-दिन इनकी संख्या कम भी हो रही है.
हालांकि जो भी भगवान बिरसा में आस्था रखते हैं, बिरसाइत धर्म में भी उनकी पूरी आस्था है. वे आज तकरीबन 100 सालों में भी उन नियमों का कठोरता से पालन कर रहे हैं जो कभी 'भगवान' ने उनके लिए बनाए थे.
ऐसा है जीवन-यापन
बिरसाइत धर्म माननेवाले आदिवासियों का जीवन स्तर सामान्य आदिवासियों से ऊंचा है. इसका प्रमुख कारण दूरदृष्टा के साथ समय व पैसों की बरबादी से दूर रहने की संस्कृति है. बिरसाइत नशापान नहीं करते. इस कारण पैसों की बचत के साथ आपराधिक वारदात से बचते हैं.
शाकाहारी होने के कारण भोजन में कम खर्च होता है. दैनिक मजदूरी में लक्ष्य निर्धारण कर कार्य करते हैं. साधारण वस्त्र धारण (सफेद कपड़ा) से भी बचत होती है.
धर्म पालन की खास बातें
बिरसाइत धर्म का पालन करना बहुत कठिन है. मांस, मदिरा, खैनी, बीड़ी को बिरसाइत कभी भी हाथ नहीं लगाते हैं. "बाज़ार का बना कुछ नहीं खाते हैं. किसी दूसरे के घर का भी नहीं खाते हैं. गुरुवार के दिन फूल, पत्ती, दातुन नहीं तोड़ते हैं. यहां तक कि खेती के लिए हल भी नहीं चलाते हैं.
कपड़ों में केवल उजले रंग का सूती कपड़ा इस्तेमाल करते हैं. बिरसाइत धर्म में पूजा के लिए फूल, प्रसाद, दक्षिणा, अगरबत्ती, चंदा आदि किसी भी चीज के इस्तेमाल की सख्त मनाही है. धर्म के अनुयायी केवल प्रकृति की पूजा करते हैं, गीत गाते हैं, जनेऊ पहनते हैं.
क्यों चलाया था बिरसाइत धर्म?
सवाल उठता है कि आदिवासी परंपरा के संरक्षक बिरसा मुंडा ने क्यों एक नया धर्म चलाया था. दरअसल, कई स्त्रोत बताते हैं कि भगवान बिरसा के परिवार के कई लोगों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था. हालांकि तथ्यात्मक तौर पर इस पर इतिहासकार एक मत नहीं हैं.
फिर भी कुछ लोग मानते हैं कि जब बिरसा मुंडा ने देखा कि आदिवासी परंपरा का उत्थान किसी भी तरह से नहीं हो रहा है तब उन्होंने नया धर्म चलाकर प्रकृति के संरक्षण को स्थापित करने की कोशिश की. इस धर्म का मुख्य उद्देश्य है कि प्रकृति से जरूरत भर की ही सहायता ली जाए और अधिक से अधिक उसे लौटाया जाए.
इसी उद्देश्य के साथ रांची, सिमडेगा व झारखंड के अन्य जिलों के लोग आज भगवान बिरसा मुंडा को याद कर रहे हैं, और बिरसाइत को मानने वालों के लिए तो आज का दिन त्योहार है. वे इसे मना रहे हैं.
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