Khunti: हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य विश्व के सभी देशों में स्वच्छ और सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना है. साथ ही जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करना है. ऐसे में आज बात एक ऐसे आदिवासी अंचल की जहां लोग शुद्ध पेयजल के आभाव में परेशान हैं.


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झारखंड के खूंटी में चढ़ते गर्मी के साथ पेयजल संकट गहराने लगा है. यहां के टकरा गांव में अभी से ही जलस्रोत सूख गए हैं. जिसकी वजह से पूरे गांव के लोग डाड़ी का शैवाल युक्त पानी पीने को मजबूर हैं. यहां खेत के बीच जमीन के पटरा पर लकड़ी लगाकर बनाए गए डाड़ी का पानी ग्रामीण वर्षों से पीते आ रहे हैं. जबकि गांव में दो-दो जल मीनार बनाए गए हैं, लेकिन वो हाथी का दांत साबित हो रहे हैं. थक हार कर ग्रामिणों ने खेत के बीच बने डाड़ी को एक माह पहले ही सीमेंट से पक्का करा दिया है. 


ग्रामीणों ने पीने का पानी निकालने के लिए जो जुगाड़ तैयार किए हैं, उस पझरा की गोलाई तीन फीट और गहराई पांच फीट है. पानी के संकट के बीच अपने हाथों तैयार किए गए डाड़ी का पानी पूरे गांव को पीना पड़ता है. ये हाल सिर्फ गर्मी का ही नहीं बल्की बरसात का भी है. बरसात के दिनों में भी महिलाओं को पानी लाने केलिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है. किचड़ की वजह से महिलाएं अपनी चप्पलों को आधे रास्ते में छोड़कर खेत के आड़ में चलकर पानी लाती हैं. यहां प्यास बुझाना आसान नहीं हैं. हर रोज लोगों को संघर्ष करना पड़ता है.  खाना बनाने के लिए भी लोग खेत के बीच बने डाड़ी के पानी का इस्तेमाल करते हैं.  लोगों की सेहत की फिक्र भी है लेकिन आभाव के कारण लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं.


जलमीनार खराब रहने से जलसंकट गहराया


गांव में बने दो-दो जलमीनार महज योजनाओं को  पूरा करने के लिए बना हुआ है. यहां के ग्रामीणों को दोनों जलमीनारों का कोई लाभ नहीं मिल पाता है. ग्रामीण बताते हैं कि जिस जलमीनार के निर्माण में सरकारी पैसे खर्च हुए वो कुछ दिनों बाद ही खराब हो गया. दो में से एक जल मीनार वर्षों से खराब पड़ा है तो दूसरे जलमीनार से गांव के मात्र 10 घरों में ही पानी की सप्लाई हो पाती है. इसके मशीन को तो बदल दिया गया है लेकिन पाईप जाम होने से वाटर सप्लाई में बाधा आ रही है. 


अधिकारियों ने झाड़ा पल्ला 


जलमीनार की बात करने पर अधिकारियों ने भी पल्ला झाड़ना शुरू कर दिया है. इस मामले में बात करने पर यहां के  बीडीओ युनिका शर्मा चापाकल ठीक कराए जाने की बात कह रही हैं, जबकि जल सहिया और अन्य लोगों का कहना है कि पेयजल की सुविधा का घोर अभाव है, चापाकल खराब पड़े हैं जिसे देखने वाला कोई नहीं है और अब जलमीनारों को ठीक करने के बजाए तीसरा जलमीनार खड़ा किया जा रहा है. 


ग्रामीणों का कहना है कि जलमीनार खराब रहने के कारण ही डाड़ी का पानी पीना पड़ता है. एक ग्रामीण जुलियानी कच्छप ने बताया कि 'पानी की दिक्कत की वजह से ही हम प्यास बुझाने और खाना बनाने के लिए डाड़ी के पानी का उपयोग करते हैं और नहाने के लिए नदी जाते हैं' अभी मार्च के महीने में ही यहां का ये हाल है तो मई का आलम क्या होगा. ऐसे में ग्रामीणों को चढ़ती गर्मी के साथ पेयजल संकट के और गहराने की चिंता सताने लगी है.