Birsa Munda Jayanti: बिरसा मुंडा के जीवन के 10 अनजाने तथ्य, जो किसी को नहीं है पता!

आदिवासी समाज के लिए बिरसा मुंडा भगवान समान हैं. आदिवासियों के हित के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया था. इनके संघर्ष की कहानी किसी से कम नहीं है. आदिवासियों के हित के लिए अंग्रेजों से लोहा लिया था. बिरसा मुंडा की तस्वीर आज भी भारतीय संसद के संग्रहालय में लगी है.

शैलेंद्र Nov 14, 2024, 08:51 AM IST
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बिरसा मुंडा का जन्‍म 15 नवंबर को 1875 में हुआ

आदिवासी समाज के लिए भगवान दर्जा रखने वाले बिरसा मुंडा का जन्‍म 15 नवंबर को 1875 में हुआ था. आदिवासी परिवार में बिरसा मुंडा जन्म हुआ था. बिरसा मुंडा के बारे में कहा जाता है कि पढ़ाई के दौरान मुंडा समुदाय के बारे में आलोचना की जाती थी, जो उन्हें बुरा लगता था. वह इससे नाराज हो जाते थे.

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बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबाने का काम किया

बिरसा मुंडा ने इसके बाद आदिवासी तौर तरीकों पर बहुत ध्‍यान दिया. आदिवासी समाज के लिए बिरसा मुंडा ने बहुत संघर्ष किया. आदिवासियों के हितों के लिए बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबाने का काम किया था.

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गुलामी के दौरान आदिवासियों का बहुत शोषण

भारत में गुलामी के दौरान आदिवासियों का बहुत शोषण होता था. तब ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियां चरम पर थी. इतना ही नहीं साहूकार, जमींदार और महाजन लोग आदिवासियों को शोषण करते थे. बिरसा मुंडा ने इनके खिलाफ आवाज उठाई थी. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था.

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अबुआ दिशुम अबुआ राज यानी हमारा देश, हमारा राज

बिरसा मुंडा को आदिवासियों की जमीन को ब्रिटिश सरकार से छुड़ाने के लिए अलग जंग लड़ना पड़ा था. ब्रिटिश सरकार से जमीन छुड़ाने के लिए बिरसा मुंडा ने नारा दिया था कि अबुआ दिशुम अबुआ राज यानी हमारा देश, हमारा राज. इससे पूंजीपति और अन्‍य जमींदार लोग डरने लगे थे और धीरे धीरे अंग्रेजों के पैर से जमीन खिसकने लगी थी.

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1897 से 1900 के बीच युद्ध हु‍आ

बिरसा मुंडा और अंग्रेजों के बीच 1897 से 1900 के बीच युद्ध हु‍आ था. इस युद्ध में करीब चार सौ सैनिक शामिल हुए थे. तब बिरसा मुंडा ने खूंटी थाने पर हमला किया था. इससे अंग्रेजों में खौफ आ गया था.

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युद्ध में अंग्रेजी सेना को हरा दिया

बिरसा मुंडा ने 1897 में तंगा नदी के किनारे हुए युद्ध में अंग्रेजी सेना को हरा दिया था. हालांकि, इस हार के बाद गुस्साए अंग्रेजों ने आदिवासियों के कई नेताओं को गिरफ्तार किया और जुल्म किए.

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डोमबाड़ी पहाड़ी पर भी युद्ध लड़ा

बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों से डोमबाड़ी पहाड़ी पर भी युद्ध लड़ा था. बिरसा मुंडा इस क्षेत्र में लोगों को संबोधित कर रहे थे. वहीं, दूसरी और चल रहे युद्ध में कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था. 

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जून 1900 को रांची में बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस ली

चक्रधरपुर में 9 फरवरी 1900 को बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया था. बिरसा मुंडा का जेल जाने के बाद निधन हो गया. जून 1900 को रांची में बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस ली थी.

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बिरसा मुंडा की आदिवासी समाज के लोग पूजते हैं

बिरसा मुंडा की याद में झारखंड की राजाधनी रांची में केंद्रीय कारागार और बिरसा मुंडा के नाम से एयरपोर्ट बनाया गया है. झारखंड में बिरसा मुंडा की आदिवासी समाज के लोग पूजते हैं.

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बिरसा मुंडा ने नए धर्म की शुरुआत की थी

साल 1895 में बिरसा मुंडा ने नए धर्म की शुरुआत किया था. इस धर्म को बरसाइत कहा जाता था. बरसाइत धर्म के प्रचार के लिए 12 विषयों का चयन किया गया था. इस धर्म के नियम बहुत कड़े हैं. ऐसा कहा जाता है.

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