पटना: गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा का बुधवार को निधन हो गया. उनका जन्म 27 नवंबर, 1942 को मुजफ्फरपुर जिले में हुआ था. उनके गांव का नाम छपरा धरमपुर यदु था. उनके पिता का नाम राम छबीले सिंह और माता का नाम  अनुपा देवी था. उनकी प्राथमिक शिक्षा छपरा में हुई थी. इसके बाद में लखीसराय के बालिका विद्यापीठ में उन्होंने अध्ययन किया, तब वह बिहार का एकमात्र छात्राओं के अध्ययन के लिए आवासीय व्यवस्था थी.


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1962 में उन्होंने मनोविज्ञान में बीए ऑनर्स एमडीडीएम कॉलेज से किया था. बीए करने के बाद ही उनकी शादी रामकृपाल सिन्हा से हुई. उस समय राम कृपाल बाबू मुजफ्फरपुर में प्रोफेसर थे. शादी के बाद भी उन्होंने अध्ययन जारी रखा. 1964 में बिहार विश्वविद्यालय से एमए किया. उन्होंने बीएड भी किया था. मोतिहारी के डॉ एसके सिन्हा महिला कॉलेज में मृदुला सिन्हा ने बतौर शिक्षक पढ़ाया. इसी बीच रामकृपाल बाबू को डॉक्टरेट की डिग्री मिल गई.


फिर मृदुला सिन्हा ने मुजफ्फरपुर में स्कूल खोला. 1968 से 1977 तक वे मुजफ्फरपुर के भारतीय शिशु मंदिर में प्रधानाध्यापिका रहीं. गंवई संस्कृति-परंपरा मृदुला सिन्हा को भाती थीं. उनके रग-रग में रची-बसी थीं. रामकृपाल बाबू ने हमेशा उनको नया करने और रचने के लिए प्रोत्साहित किया. फिर क्या था-पंख मिल गया. मृदुला का साहित्य सृजन रंग लाने लगा. 


गांव की माटी की महक पर लोक कथाएं लिखने लगीं. पत्र-पत्रिकाओं में बिहार की लोक कथाएं छपने लगीं. बाद में दो खंडों में ये प्रकाशित हुईं. सृजन वे करती रहीं- चाहें वो शिक्षिका रहीं, चाहें समाजसेविका या फिर सक्रिय राजनीति यहां तक कि गोवा के राजभवन तक से कलम से रचटी रहीं-बुनती रहीं. 


उनकी रचनाओं की फेहरिस्त लंबी है. इनमें आत्मकथा, जीवनी....साहित्य की सभी विधाएं शामिल हैं. ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया की जीवनी–एक थी रानी ऐसी भी, इस पर फिल्म भी बनी. नई देवयानी, घरवास, ज्यों मेहंदी को रंग, देखन में छोटन लगे, सीता पुनि बोली, यायावरी आंखों से, ढाई बीघा जमीन, मात्र देह नहीं है औरत, अपना जीवन, अंतिम इच्छा, परितप्त लंकेश्वरी, मुझे कुछ कहना है, औरत अविकसित पुरुष नहीं हैं, चिंता और चिंता के इंद्रधनुषीय रंग, या नारी सर्वभूतेषु, एक साहित्यतीर्थ से लौटकर.


ज्यों मेहंदी के रंग उपन्यास पर तो टीवी सीरियल दत्तक पिता बना. विजयाराजे सिंधिया के जीवन पर राजपथ से लोकपथ पर फीचर फिल्म बनी. बड़ी बात यह थी कि जो भी इनकी रचनाओं पर सीरियल या फीचर फिल्में बनीं सभी नेशनल अवार्ड विनर फिल्म निर्माता गुल बहार सिंह ने बनाई थी. फ्लेम्स ऑफ डिजायर का मृदुला सिन्हा ने अनुवाद किया था. 
परितप्त लंकेश्वरी का तो मराठी में अनुवाद भी हुआ. विभिन्न विधाओं में 46 कृतियों की रचना इनके कलम से हुई.  21 शोधकर्ताओं को इनकी कृतियों पर शोध के लिए पीएच.डी की उपाधि मिली. कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिले.


2017 में उनके अमृत महोत्सव पर दिल्ली के कंस्टीट्यूशनल क्लब में भव्य कार्यक्रम हुआ था. वे बहुत बढ़िया गाती थीं. भोजपुरी, मैथिली, हिंदी में गीत गातीं. क्या गला था. जैसा नाम था वैसी ही मृदुल स्वभाव की मृदुभाषी भी थीं. अपने से लोगों को खाना बना कर खिलातीं थीं.


मृदुला सिन्हा जेपी आंदोलन से जेपी के कार्यक्रमों से सक्रिय तौर पर जुड़ी रहीं. उनके पति डॉ रामकृपाल सिन्हा जनसंघ से जुड़े थे. वे भारत सरकार में मंत्री भी रहे. अटल जी की सरकार के समय रामकृपाल बाबू कार्यालय सचिव थे. इसी कारण वे भी भाजपा से जुड़ीं, तो फिर सर्वस्व समर्पित. देश भर में भाजपा महिला संगठन को खड़ा करने में इनकी बड़ी भूमिका रही.


भारतीय समाज कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में उनके द्वारा किये गये कार्य बेमिसाल हैं. पीएम मोदी ने इन्हें स्वच्छ भारत अभियान का एम्बेस्डर बनाया था. 31 अगस्त 2014 को गोवा की राज्यपाल बनीं. 2 नवंबर, 2019 तक वे इस पद पर बनीं रहीं. गोवा के राज्यपाल के रूप में वे गोवावासियों के बीच बहुत लोकप्रिय थीं. वे अब भी पांचवां स्तंभ मासिक पत्रिका का संपादन करती थीं. वे प्रेरणा की पुंज और प्रेरणा की स्रोत भी थीं.