Patna: 70 के दशक की राजनीति में बड़ा बदलाव आया. ये वो दौर था जब गैर कांग्रेसी दल एक साथ आए. जेपी के आंदोलन (JP Movement) से बिहार की राजनीति खासकर छात्र राजनीति से तीन बड़े समाजवादी नेता (Samajwadi Leader) उभरे, इसमें लालू यादव, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार का नाम प्रमुख रूप से शामिल है. लालू यादव और नीतीश कुमार पटना यूनिवर्सिटी (Patna University) की छात्र राजनीति की पैदाइश हैं, जो आगे चलकर सत्ता के शिखर पर पहुंचे, लेकिन रास्ता इतना आसना नहीं था.


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दरअसल, नीतीश कुमार (Nitish Kumar Birthday) ने अपने राजनीतिक करियर की आधारशिला 70 के दशक में ही रख दी थी, जब वो B.Tec की पढ़ाई कर रहे थे. पढ़ाई के दौरान ही नीतीश कुमार जय प्रकाश नरायण के 'संपूर्ण क्रांति आंदोलन' से जुड़ गए. जय प्रकाश नारायण ही नीतीश के मार्गदर्शक थे. उन्हीं के रास्तों पर चलते हुए. राजनीति का ककहरा वो सीखने लगे.


धीमी और मुधर वाणी, तेज और मुखर होने के कारण नीतीश कुमार, जल्द ही लोगों की पसंद बनने लगे. आपताकाल (Emergency) के दौरान आंदोलन में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को जेल भी जाना पड़ा. इस आंदोलन से बिहार की राजनीति में समाजवाद के एक बड़े नायक का जन्म हुआ. जी हां, लालू यादव (Lalu Yadav) के साथ नीतीश कुमार भी समाजवाद के नए नायक के तौर पर उभरे. जिन्हें जॉर्ज फर्नांडिस जैसा एक मजबूत वैचारिक साथी मिला, जो आगे भी उनके साथ ही रहे. संपूर्ण क्रांति आंदोलन के बाद जब आपातकाल हटा तो बिहार की राजनीति के उभरते हुए इस सितारे ने संसदीय राजनीति में उतरने का फैसला किया.



26 साल की उम्र में लड़ा पहला चुनाव
सिर्फ 26 साल की उम्र में नीतीश कुमार जनता पार्टी के टिकट पर हरनौत से चुनाव मैदान में उतरे लेकिन उन्हें हार मिली. तीन साल बाद फिर हरनौत सीट से ही विधानसभा चुनाव लड़ा और इस बार भी वो हार गए. सबसे हैरानी वाली बात ये है कि वो नालंदा जो कि कुर्मी बाहुल्य इलाका है, वहां से भी चुनाव नहीं जीत पाए. हालांकि, साल 1985 में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के देहांत के बाद जहां सभी नेता सहानुभूति लहर में बह गए, वहीं नीतीश कुमार ने हरनौत से जीत हासिल की. जहां वो पहले साल 1977 और 1980 में हार चुके थे लेकिन पहली बार एमएलए बनने के बाद नीतीश कुमार ने फिर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा.


यहां से सफलता के सीढ़ी चढ़ने वाले नीतीश का राजनीतिक कद धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था. इसी बीच, साल 1987 को नीतीश कुमार बिहार के युवा लोकदल के अध्यक्ष बन गए. नीतीश राजनीति में पारंगत हो ही रहे थे कि साल 1989 को नीतीश कुमार को जनता दल का महासचिव बना दिया गया. अब तक नीतीश ने अच्छी खासी राजनीतिक पहचान बना ली थी.


संसदीय राजनीति में नीतीश की इंट्री
1989 नीतीश के राजनीतिक करियर के लिए काफी अहम था. इस साल नीतीश 9वीं लोसकसभा के लिए चुने गए.  इसके बाद साल 1990 में नीतीश अप्रैल से नवंबर तक कृषि एवं सहकारी विभाग के केंद्रीय राज्य मंत्री रहे.1991 में दसवीं लोकसभा के चुनाव में नीतीश एक बार फिर से संसद में पहुंचे और संसद में जनता दल के उपनेता भी बने.


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विधानसभा चुनाव में मिली हार
90 के दशक में रास्ते अलग होने से पहले तक नीतीश को लालू की छाया के तौर पर देखा जाता था. लेकिन साल 1994 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद से अपने रास्ते अलग कर लिए. जॉर्ज फर्नान्डिस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई. 1995 के विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरे. लेकिन बिहार में करारी हार मिली. लालू से पटखनी खाने के बाद नीतीश ने ये तो समझ लिया कि किसी सहारे के बिना लालू को पटखनी देना आसान नहीं है और उनकी ये तलाश 1996 में खत्म हुई, जब बीजेपी के साथ गठबंधन हुआ.


7 दिन के लिए बने CM
1996 में नीतीश कुमार 11वीं लोकसभा के लिए चुने गए. नीतीश 1996-98 तक रक्षा समिति के सदस्य भी रहे. 1998 ने नीतीश फिर से 12वीं लोकसभा के लिए चुने गए. 1998-99 तक नीतीश कुमार केंद्रीय रेलवे मंत्री भी रहे. 1999 में नीतीश कुमार 13वीं लोकसभा के लिए चुने गए. इस साल नीतीश कुमार केंद्रीय कृषि मंत्री भी रहे. 2000 नीतीश के राजनीतिक करियर का सबसे अहम मोड़ आया. इस साल नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. उनका कार्यकाल 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक चला.


हालांकि, बहुमत नहीं होने के कारण उन्हें 7 दिन में इस्तीफा देना पड़ा. यही वो समय था जब नीतीश बिहार की राजनीति के सबसे अहम किरदार हो गए और उस दिन ये तय हो गया था कि आज नहीं तो कल वो बिहार में सबसे बड़ी शक्ति बनकर उभरेंगे.


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दूसरी बार ली CM पद की शपथ
2000 में नीतीश एक बार फिर से केंद्रीय कृषि मंत्री रहे. 2001 में नीतीश को रेलवे मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया. 2001 से 2004 तक नीतीश केंद्रीय रेलमंत्री रहे. 2002 के गुजरात दंगे (Gujarat Riots) भी नीतीश कुमार के कार्यकाल के दौरान हुए थे. 2004 में नीतीश 14वीं लोकसभा के लिए चुने गए. इसके बाद 2005 में नीतीश कुमार एक बार फिर से दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. बतौर 31वें मुख्यमंत्री नीतीश का ये कार्यकाल 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2010 तक चला. इसके बाद 26 नवंबर 2010 को नीतीश कुमार एक बार फिर से मुख्यमंत्री बने.


बिहार में स्थापित किया 'सुशासन'
दरअसल, 2005 में नीतीश ने लालू यादव की सरकार को उखाड़ फेंका और इसी के साथ बिहार की राजनीति में नया अध्याय जुड़ गया. नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलकर बिहार की सत्ता संभालने लगे. 10 साल की लड़ाई के बाद नीतीश को जीत मिली और अब उनके सामने खुद को साबित करने की चुनौती थी. ऐसी चुनौती जो विरोधियों को जवाब दे सके, राज्य में सुशासन स्थापित कर सके और नीतीश ने ये करके दिखाया भी.



12 साल में 5 बार बनें CM
दिलचस्प बात यह है कि नीतीश कुमार ने सिर्फ 12 वर्षों में 5 बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. पहली बार जेडीयू और बीजेपी गठबंधन ने 2005 में लालू-राबड़ी के 15 साल के किले को ध्वस्त करते हुए बिहार में सरकार बनाई.


दूसरी बार  24 नवंबर, 2005 से 24 नवंबर, 2010
तीसरी बार 26 नवंबर, 2010 से 17 मई, 2014
चौथी बार 22 फरवरी, 2015 से 19 नवंबर, 2015
पांचवीं बार 20 नवंबर, 2015 से 26 जुलाई, 2017
छठवीं बार 27 जुलाई, 2017 से अब तक 13 नवंबर 2020
सातवीं बार 16 नवंबर 2020 से अब तक...