Patna: उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया और कहा कि यह संविधान प्रदत्त सूचना के अधिकार और बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है. SC के इस फैसले का JDU और कांग्रेस ने स्वागत किया है. 


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कांग्रेस की विधायक प्रतिमा कुमारी ने कहा कि यह फैसला जो है सही है. सुप्रीम कोर्ट ने सही किया है जो भी लोग किसी भी पार्टी को चंदा देते हैं तो वह सार्वजनिक होना चाहिए और एक लिमिट होना चाहिए. हम इस फैसले का स्वागत करते है.


RJD के विधायक भाई बीरेंद्र ने कही ये बात


चुनावी बांड पर सुप्रीम कोर्ट के रोक लगाने के बाद RJD के विधायक भाई बीरेंद्र ने कहा चंदा लेने और देने वाला जाने. भाई वीरेंद्र को आज तक चंदा नहीं मिला तो मुझे कोई जानकारी नहीं है. मैं ऊंची चीज नहीं हूं, मैं एक आम कार्यकर्ता हूं, मुझे जानकारी नहीं है. 


कोर्ट ने कही ये बात 


प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अलग-अलग लेकिन सर्वसम्मत फैसले सुनाए. इस फैसले को केन्द्र सरकर के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है. पीठ ने कहा कि नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार में राजनीतिक गोपनीयता, संबद्धता का अधिकार भी शामिल है. फैसले में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और आयकर कानूनों सहित विभिन्न कानूनों में किए गए संशोधनों को भी अवैध ठहराया गया. फैसले में कहा गया कि संबद्व बैंक चुनावी बॉन्ड जारी नहीं करेगा और एसबीआई 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉन्ड के ब्योरे निर्वाचन आयोग को देगा. 


शीर्ष अदालत ने पिछले वर्ष दो नवंबर में इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. चुनावी बॉन्ड योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था. इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था. योजना के प्रावधानों के अनुसार चुनावी बॉन्ड भारत के किसी भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है. आलोचकों का कहना था कि इससे चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता समाप्त होती है और सत्तारूढ़ दल को फायदा होता है. 


(इनपुट भाषा के साथ)