Chirag Paswan: सुबह महागठबंधन ने लोजपा रामविलास पासवान को 8 सीटों का आफर दिया और शाम को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चिराग पासवान से मुलाकात कर ली. मतलब साफ है, चाहे एनडीए हो या फिर महागठबंधन, सभी चिराग पासवान को अपने पाले में रखना चाहते हैं. जबकि चिराग पासवान अपनी पार्टी के अकेले लोकसभा सदस्य हैं और विधानसभा में उनकी पार्टी की सदस्य संख्या आज की तारीख में 0 है. फिर भी चिराग पासवान के लिए एनडीए और महागठबंधन में इतनी बेचैनी क्यों है. तेजस्वी यादव ने तो विधानसभा चुनाव 2020 और उसके बाद 2021 में भी चिराग पासवान से महागठबंधन में आने की अपील की थी. हालांकि चिराग पासवान ने इस पर कोई रिएक्शन नहीं दिया था. यह जगजाहिर है कि चिराग पासवान खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताते रहे हैं पर यह भी कड़वा सच है कि पीएम मोदी की बिहार में पिछली 3 रैलियों से उन्होंने दूरी बना रखी है. इससे चिराग पासवान के नाराज होने की खबरें आने लगीं और इसी मौके का फायदा उठाकर महागठंधन के नेताओं की ओर से चिराग पासवान को बिहार में 8 और यूपी में 2 यानी कुल 10 सीटों का आफर दिया गया. 


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विधानसभा चुनाव 2020 में दिखाई थी ताकत


चिराग पासवान की पार्टी लोजपा बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में 137 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और केवल एक सीटों पर उसके प्रत्याशी को विजयश्री हासिल हुई थी. 9 विधानसभा क्षेत्रों में लोजपा उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे. 4 निर्वाचन क्षेत्रों में तो भाजपा के तो 2 विधानसभा क्षेत्रों में जेडीयू के बागियों को को लोजपा ने टिकट दिया था. लोजपा ने विधानसभा चुनाव 2020 में 5.66 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. इस तरह चिराग पासवान और लोजपा की अपनी तो कोई खास उपलब्धि चुनावों में नहीं दिख सकी, लेकिन नीतीश कुमार की पार्टी को बहुत नुकसान पहुंचाया. 2020 के विधानसभा चुनावों में चिराग पासवान ने एक तरह से नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था और बिहार की बदहाली के लिए लालू प्रसाद के बाद नीतीश कुमार को ही जिम्मेदार ठहरा रहे थे. लोजपा ने तब उन्हीं सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जहां जेडीयू के प्रत्याशी मैदान में थे. भाजपा प्रत्याशियों के खिलाफ चिराग पासवान की लोजपा ने अपने उम्मीदवार नहीं खड़े किए थे.


नीतीश कुमार ने लिया था चिराग से बदला!


यह संयोग था या इत्तेफाक, बिहार विधानसभा चुनाव के बाद लोजपा में बड़ा विभाजन हुआ और उसके 6 में से 5 सांसदों ने विद्रोह कर दिया. लोकसभा में इन बागी नेताओं को अलग गुट के रूप में मान्यता मिल गई और उनके नेता पशुपति कुमार पारस पीएम मोदी की सरकार में मंत्री भी बन गए. चिराग पासवान को इससे बहुत आघात लगा था और एक समय ऐसा आया, जब वे बहुत अकेले हो गए थे. बाद में उन्होंने खुद को संभाला और पार्टी को फिर से खड़ी की. बाद में चुनाव आयोग ने चिराग पासवान की पार्टी को लोजपा आर यानी लोजपा रामविलास के नाम से मान्यता दे दी. राजनीतिक हलकों में यह कहा गया कि लोजपा में विभाजन जेडीयू ने करवाई है और ऐसा करके जेडीयू ने 2020 के विधानसभा चुनावों में हुए नुकसान का बदला लिया है. लेकिन राजनीति में ऐसे आरोप प्रत्यारोप लगते रहते हैं और इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती.


तेजस्वी यादव ने की थी साथ आने की अपील


राजद नेता और पूर्व डिप्टी सीएम ने जून 2021 में चिराग पासवान की तन्हाई के दिनों में साथ आने की अपील की थी. तेजस्वी यादव ने तब यह भी याद दिलाया था कि कैसे एक भी विधायक और सांसद न रहने पर भी लालू प्रसाद यादव ने कैसे रामविलास पासवान को राज्यसभा भिजवाने में मदद की थी. तेजस्वी यादव ने चिराग पासवान को यह आफर तब दिया था जब पशुपति कुमार पारस ने भतीजे के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद  कर दिया था. तब चिराग अपनी खोई राजनीतिक जमीन पाने के लिए हाजीपुर से बिहार यात्रा पर निकलने वाले थे. तेजस्वी यादव ने चिराग पासवान को साथ आने का निमंत्रण देकर बड़ा दांव चला था. तेजस्वी यादव ने उस समय कहा था, चिराग भाई तय करें कि उन्हें आरएसएस के बंच आफ थॉट्स के साथ रहना है या संविधान निर्माता बाबा साहब के आदर्शों पर चलना है.


चिराग पासवान की इतनी डिमांड क्यों


अब सवाल यह है कि आखिर चिराग पासवान की बिहार की सियासत में इतनी डिमांड क्यों है. तेजस्वी यादव भी उन्हें अपने साथ लाना चाहते हैं तो पीएम मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा अपने हाथ से छिटकने नहीं देना चाहती. आखिर ऐसा क्या है चिराग पासवान में, जो एनडीए को भी ललचा रहा है और महागठबंधन भी लार टपका रहा है. चिराग पासवान की सबसे मजबूती उनके साथ पासवान वोटरों का इंटैक्ट रहना है. बिहार में पासवान वोटर की संख्या 7 प्रतिशत बताई जाती है और इन वोटरों पर चिराग पासवान का एक तरह से होल्ड है. इसके अलावा चिराग पासवान ने यूथ में भी अपनी एक अलग इमेज बनाई है और बिहार के कई युवा उन्हें अपना आदर्श मानते हैं. यही कारण है कि चिराग पासवान की इतनी डिमांड है.


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