Bihar Politics: लोकसभा चुनाव से पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पलटी मारने से विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. का खेल बिगड़ गया है. तो वहीं एनडीए की स्थिति मजबूत हुई है. 17 महीने के वनवास के बाद बीजेपी की एक बार फिर से सत्ता में वापसी हो चुकी है. बीजेपी की मदद से नीतीश कुमार 9वीं बार मुख्यमंत्री बने तो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को डिप्टी सीएम की कुर्सी मिली है. इस घटनाक्रम से कुछ लोगों का गणित पूरी तरह से बिगड़ गया है. जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष ललन सिंह, गिरिधारी यादव, रत्नेश सादा, विजेंद्र यादव और गुलाम रसूल बलियावी जैसे तमाम नेता अब इस गठबंधन में कैसे रहते हैं, ये देखने वाली बात होगी.


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दरअसल, इन नेताओं की छवि मोदी विरोधी के रूप में रही है. नए समीकरण में इन नेताओं ने भले ही चुप्पी साध रखी हो लेकिन ये मौनव्रत कब तक चलेगा, ये संसय पैदा कर रहा है. नीतीश कुमार का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो पता लगता है कि वह जहां जाते हैं, तो सबसे पहले वह अपनी पार्टी से उन नेताओं को बाहर करते हैं, जिनको बदले हुए साथियों से दिक्कत होती है. उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह जैसे दिग्गज नेता इसके उदाहरण हैं. नीतीश ने जब राजद से हाथ मिलाया था तब इन नेताओं ने विरोध किया था, नतीजतन इन्हें जेडीयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. नीतीश कुमार क्या फिर से ऐसा ही कोई फैसला लेंगे, ये भविष्य की गर्त में हैं. 


JDU में मोदी के कट्टर विरोधी नेता


ललन सिंह- नीतीश जब महागठबंधन का हिस्सा थे, तब मुंगेर से जेडीयू सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह की गिनती पीएम मोदी के धुरविरोधी नेताओं में होने लगी थी. लोकसभा के अंदर ललन सिंह सीधे पीएम मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पर वार करते थे. दिल्ली अध्यादेश पर हो रही चर्चा के दौरान उनकी अमित शाह के साथ हुई भिड़ंत काफी दिनों तक चर्चा का विषय रही थी. हालांकि, इसके बाद उनके सितारे गर्दिश में चले गए. बीजेपी से हाथ मिलाने के लिए नीतीश कुमार ने सबसे पहले ललन सिंह को ही पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी से उतारा था. 


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गिरधारी यादव- विपक्ष में बैठने के बाद बांका से जेडीयू सांसद भी पीएम मोदी के खिलाफ काफी आग उगलते दिखाई देते थे. महुआ मोइत्रा प्रकरण में गिरधारी यादव अकेले ही पूरे सरकार के खिलाफ मोर्चा संभाले नजर आए थे. बदली परिस्थितियों पर गिरधारी यादव ने कहा कि मेरी चिंता पार्टी करेगी. मैं नीतीश कुमार के साथ हूं. इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं बोल सकता हूं.


रत्नेश सादा- नीतीश सरकार में मंत्री रहे रत्नेश सादा भी बीजेपी और पीएम मोदी पर काफी हमलावर रहे हैं. आरजेडी के रंग में रंगते हुए रत्नेश सादा ने पीएम मोदी के अलावा सनातन विरोधी बयानबाजी भी शुरू कर दी थी. वह राम मंदिर के खिलाफ भी विवादित टिप्पणी कर चुके हैं. उन्होंने पीएम मोदी को सनातन विरोधी बताया था. उन्होंने कहा था कि पीएम मोदी ने अपनी मां के निधन पर न तो बाल कटवाए और न ही दाढ़ी, फिर कैसे सनातनी हैं? बदली परिस्थितियों में रत्नेश सादा का फिर से मंत्री बनना मुश्किल लग रहा है.


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विजेंद्र यादव- महागठबंधन में रहते हुए विजेंद्र यादव ने पीएम मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. वह पीएम मोदी की तुलना हिटलर से कर चुके हैं. कहा तो ये भी जा रहा है कि दोबारा बीजेपी के साथ दोस्ती करने से विजेंद्र यादव नाराज बताए जा रहे हैं. उनको साधे रखने के लिए नीतीश कुमार ने उन्हें अपनी कैबिनेट में शामिल किया है. 


गुलाम रसूल बलियावी- जेडीयू के पूर्व सांसद गुलाम रसूल बलियावी को भी पीएम मोदी फूटी आंख नहीं सुहाते हैं. जून 2023 में बलियावी ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए यहां तक कह दिया था कि देश को अब किसी चायवाले की जरूरत नहीं है. बीजेपी नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया था. हालांकि, जैसे ही नीतीश कुमार ने बीजेपी से दोस्ती करने की सोची तो उन्होंने मोदी विरोधी बलियावी के पर कतर दिए.