Bihar Political Crisis: मोदी सरकार की ओर से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पिछड़ों के मसीहा जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न की घोषणा का असर अब प्रदेश की सियासत में साफ देखने को मिल रहा है. कर्पूरी ठाकुर के राजनीतिक चेले यानी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दिल एक बार फिर से बीजेपी पर आ गया है. नीतीश कुमार के बदले रुख के कारण लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार में सियासी भूचाल आया हुआ है. नीतीश कुमार के अब फिर से पलटी मारने की अटकलें काफी जोर पकड़ चुकी हैं. जिसकी वजह से पटना से लेकर दिल्ली तक बैठकों को दौर जारी है. 


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चर्चा है कि नीतीश कुमार एक बार फिर से एनडीए ज्वाइन करने वाले हैं और बिहार में बीजेपी सत्ता में लौटने वाली है. दिल्ली में दोनों दलों के नेता डील का फाइनल खाका खींचने में लगे हुए हैं. अगर बात बन जाती है तो महागठबंधन सरकार भरभराकर गिर जाएगी और लालू यादव के पार्टी राजद को एक बार फिर से विपक्ष में बैठना पड़ेगा. मतलब साफ है कि अगर महागठबंधन सरकार गिरती है तो लालू यादव के दोनों लाल अर्थात डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव और मंत्री तेज प्रताप यादव फिर से महज विधायक ही बचेंगे. यही कारण है कि लालू इतनी जल्दी हार नहीं मानेंगे और राबड़ी आवास पर उन्होंने विधायकों की गुणा-गणित का हिसाब-किताब करना शुरू कर दिया है. 


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बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं. सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों की जरूरत है. विधानसभा में राजद सबसे बड़ी पार्टी है. उसके पास 79 विधायक हैं. दूसरे नंबर पर बीजेपी है, उसके पास 77 विधायक हैं. वहीं 45 विधायकों के साथ जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी है. कांग्रेस के पास 19, भाकपा माले के 12, HAM के 4, माकपा के 2 और एक निर्दलीय विधायक है. ये नीतीश कुमार की पॉलिटिकल पॉवर ही है कि वह तीसरे नंबर की पार्टी के नेता होने के बाद भी सीएम की कुर्सी पर बैठे थे. नीतीश अलग होते हैं तो संख्याबल के हिसाब से तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनने के लिए सिर्फ 8 विधायकों की जरूरत है. 


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यह किसी से छिपा नहीं है कि लालू प्रसाद यादव तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं. इसके लिए वह जेडीयू को तोड़ने की साजिश रच रहे थे. हालांकि, नीतीश कुमार को सही समय पर इसकी भनक लग गई. उन्होंने तत्काल इस साजिश में शामिल अपनी पार्टी के नेताओं कड़ी कार्रवाई की. इस तरह से लालू यादव का प्लान फेल हो गया. हालांकि इसके बाद से लालू-नीतीश के बीच मतभेद ज्यादा बढ़ गए. राजद के पास 114 विधायकों का इंतजाम है और अगर लालू प्रसाद यादव 8 विधायकों का इंतजाम कर लेते हैं, तो तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि नीतीश कुमार भले ही लालू-तेजस्वी के षड़यंत्रों से बच गए हों और अपनी पार्टी को टूटने से बचा लिया है, लेकिन क्या वह अब भी अपनों के घात से बच पाएंगे?