Pashupati Paras: पशुपति पारस को महागठबंधन में क्यों लेना चाहते हैं लालू यादव? ये रही बड़ी वजह
Pashupati Paras News: राजद सुप्रीमो लालू यादव के बड़े बेटे और पूर्व मंत्री तेज प्रताप यादव ने कहा कि अगर वह (पशुपति पारस) महागठबंधन में आते हैं तो मैं उनका स्वागत करूंगा.
Pashupati Paras News: पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस को लेकर बिहार की राजनीति में अटकलों का दौर जारी है. पारस ने जिस तरह से मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दिया है, उससे माना जा रहा है कि अब एनडीए में उनका सफर समाप्त होने वाला है. हालांकि, पशुपति पारस ने अभी तक अपने भविष्य को लेकर पत्ते नहीं खोले हैं. वह आगे की राजनीति के लिए मंथन करने में जुटे हैं और अपनी पार्टी के नेताओं से सलाह-मशविरा लेने के बाद ही कोई कदम उठाएंगे. वहीं महागबंधन के द्वार उनके लिए खुल गए हैं. लालू परिवार भी पारस का स्वागत करने के लिए तैयार बैठा है. राजद सुप्रीमो लालू यादव के बड़े बेटे और पूर्व मंत्री तेज प्रताप यादव ने कहा कि अगर वह (पशुपति पारस) महागठबंधन में आते हैं तो मैं उनका स्वागत करूंगा. तेज प्रताप ने कहा कि पशुपति पारस के साथ एनडीए में नाइंसाफी हुई है. उन्होंने अच्छा किया कि एनडीए को छोड़ दिया. बहुत अच्छा डिसीजन है.
पशुपति पारस को अपने खेमे में लाने के लिए महागठबंधन बेचैन है. इससे पहले बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह भी पारस को महागठबंधन में आने का निमंत्रण दे चुके हैं. उन्होंने कहा था कि पशुपति पारस अगर कांग्रेस के साथ हाथ मिलाना चाहें तो उनका स्वागत है. सूत्रों के मुताबिक, राजद अध्यक्ष लालू यादव और उनके छोटे बेटे एवं पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की ओर से भी पशुपति पारस को अपने खेमे में शामिल करने की कोशिश चल रही है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, राजद की ओर से पारस को दो सीटें देने का प्रस्ताव रखा गया है. महागठबंधन में आने पर पारस को हाजीपुर और समस्तीपुर सीट दी जा सकती है, लेकिन नवादा को लेकर पेंच फंस रहा है. इसे राजद अपने पास रखना चाहती है, जबकि इस सीट से अभी पारस की पार्टी रालोजपा के चंदन सिंह सांसद हैं.
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महागठबंधन के नेताओं का मानना है कि पशुपति पारस के रूप में उनको एक बड़ा दलित चेहरा मिल जाएगा, जिसके सहारे दलितों का वोट हासिल किया जा सकता है. उनका मानना है कि अगर पारस ने महागठबंधन का हाथ थाम लिया तो इससे तेजस्वी को फायदा ही होना है, नुकसान नहीं. हालांकि, एनडीए को पारस कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं, ये भी नहीं कहा जा सकता. क्योंकि पारस ने अभी तक कभी अपनी ताकत का प्रदर्शन नहीं किया है. मोदी सरकार में मंत्री बनने के अलावा उनके पास कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है. केंद्र में मंत्री बनने के बाद से पारस का बिहार से संबंध भी खत्म हो गया. उन्होंने ना तो कोई रैली की ना ही अपने जाति के वोटरों का सम्मेलन, जिसमें आई भीड़ उनकी ताकत को दिखाती. इतना ही नहीं पारस ने अलग पार्टी तो बना ली लेकिन उनकी पार्टी ने अभी तक कोई चुनाव नहीं लड़ा.
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दूसरी ओर बीजेपी के नेता पारस को जल्दबाजी नहीं करने की सलाह दे रहे हैं तो वहीं एनडीए के ही साथी जीतन राम मांझी हमलावर हैं. मांझी ने इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पशुपति पारस ने इस्तीफा देकर साबित कर दिया है कि वे एनडीए के सच्चे सिपाही नहीं है. मांझी ने आगे कहा कि पारस बयान देते थे कि हम एनडीए के सच्चे सिपाही हैं. अगर वे सच्चे सिपाही होते तो इस्तीफा नहीं देते. मांझी ने आगे कहा कि जब हमें नीतीश कुमार ने महागठबंधन से बाहर किया था तो हम अमित शाह से मिलने गए थे. हमने कोई शर्त नहीं रखी थी, लेकिन उन्होंने हमें एक सीट दी. इससे हम संतुष्ट हैं.