Lok Sabha Election 2024: पीएम मोदी, पूरी भाजपा और एनडीए के तमाम नेता राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस पर परिवारवादी पार्टी होने का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन इसी राष्ट्रीय जनता दल में एक ऐसे नेता भी हैं, जिन्होंने अपने बेटे को विधानसभा का टिकट दिए जाने का विरोध कर दिया था. बेटा बागी हो गया और भाजपा में शामिल होकर चुनाव लड़ गया लेकिन पिता ने राजद प्रत्याशी का प्रचार किया और उनका बेटा चुनाव हार भी गया. वाकया 2009-10 का बताया जा रहा है. इस वाकये का जिक्र इसलिए कि आज मंगलवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने अपने बेटे के बारे में भी कुछ ऐसी ही राय जताई है. एके एंटनी का कहना है कि उनके बेटे अनिल एंटनी, जो अब भाजपा में शामिल हो गए हैं और केरल में पार्टी के प्रत्याशी भी हैं, उन्हें चुनाव हारना चाहिए. आपको बता दें कि अनिल एंटनी को दक्षिण केरल लोकसभा क्षेत्र से भाजपा ने टिकट दिया है और वे कांग्रेस प्रत्याशी एंटो एंटनी के सामने कड़ा मुकाबला पेश कर रहे हैं.


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एके एंटनी ने कहा, इंडिया ब्लॉक रोजाना आगे बढ़ रहा है और भाजपा नीचे जा रही है. यह हमारे लिए सरकार बनाने का बड़ा मौका है. हमारी पार्टी कांग्रेस, पीएम मोदी और उनकी भाजपा के अलावा आरएसएस की विचारधारा के खिलाफ लगातार लड़ रही है. पत्रकारों से बातचीत में अनिल एंटनी ने कहा, मेरे बेटे अनिल एंटनी के खिलाफ कांग्रेस प्रत्याशी एंटो एंटनी को जीत हासिल करनी चाहिए. एके एंटनी ने यह भी कहा कि कांग्रेस नेताओं के बच्चे को भाजपा में शामिल होना गलत है. कांग्रेस मेरा धर्म है और कांग्रेस नेताओं के बच्चों को भाजपा से जुड़ना गलत है. 


एके एंटनी की बात सुनकर जगदानंद सिंह और सुधाकर सिंह की 2009 वाली बात याद आ गई. हालांकि अब हम जिस ​जगदानंद सिंह और सुधाकर सिंह की बात कर रहे हैं, उनके बीच भी हालात बदल गए हैं. सुधाकर सिंह भाजपा से बाहर हैं और इस लोकसभा चुनाव में बक्सर से राजद के प्रत्याशी हैं. दूसरी ओर, पिता जगदानंद सिंह के विरोध के बदले मौन सहमति है और उनके सामने बेटे को जिताने की चुनौती भी है. ऐसा इसलिए क्योंकि जगदानंद सिंह राजद के प्रदेश अध्यक्ष हैं. 


2009 की कहानी पर आते हैं. तब राजद ने जगदानंद सिंह को बक्सर से प्रत्याशी घोषित किया था. जगदानंद सिंह कैमूर की रामगढ़ सीट से 6 बार के विधायक रहे थे. जगदानंद सिंह चुनाव में जीत गए पर रामगढ़ की सीट खाली रह गई. वहां 2009 में उपचुनाव में राजद चाहती थी कि जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को टिकट दे दिया जाएपर उस समय जगदानंद सिंह कर्पूरी ठाकुर और जेपी के आदर्श को लेकर चल रहे थे. जगदानंद सिंह कहते थे कि अगर हमने ऐसा किया तो इससे वंशवाद और परिवारवाद को बढ़ावा मिलेगा और आम कार्यकर्ता निराश होंगे. 


हालांकि सुधाकर सिंह ​राजद के टिकट की आस लगाए हुए थे. जगदानंद सिंह ने तब अंबिका यादव को टिकट दिलवा दिया था और ठाकुर बाहुल्य सीट पर उनकी विजय भी हो गई थी. फिर 2010 के विधानसभा चुनावों में भी सुधाकर सिंह चाहते थे कि उन्हें टिकट मिल जाए. पार्टी भी यही चाहती थी पर जगदानंद सिंह की असहमति के चलते सुधाकर सिंह बागी हो गए. उन्होंने निर्दलीय पर्चा भर दिया और बाद में भाजपा ने उन्हें टिकट थमा दिया. हालांकि लालू प्रसाद यादव जगदानंद पर बहुत भरोसा करते थे. पार्टी प्रत्याशी को जिताने के लिए जगदानंद सिंह ने रामगढ़ में कैंप कर दिया और सुधाकर सिंह चुनाव हार गए थे. इस कारण जगदानंद और सुधाकर में संबंध सामान्य नहीं रहे. 


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2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अशोक सिंह को चुनावी मैदान में उतार दिया. तब 2014 के लोकसभा चुनाव में हारने के बाद जगदानंद कुछ कमजोर पड़ गए थे. अंबिका प्रसाद चुनाव हार गए और अशोक सिंह ने वहां भाजपा का झंडा लहरा दिया. तब सुधाकर सिंह को लगा कि भाजपा में आकर वे गलती कर बैठे हैं. न सुधाकर भाजपा को पचा पाए और न ही भाजपा उनको पचा पाई. उधर, जगदानंद सिंह ने सुधाकर को नसीहत दी कि वे पहले पार्टी के लिए काम करें और फिर टिकट मांगें. केवल जगदानंद सिंह के बेटे के नाम पर टिकट नहीं मिलना चाहिए. 


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सुधाकर फिर से राजद के हिस्सा हो गए और 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्हें रामगढ़ से उम्मीदवार बनाया गया. फिर उन्होंने बेटे को टिकट दिए जाने का विरोध नहीं किया. अब सुधाकर सिंह बक्सर से लोकसभा के चुनाव में राजद प्रत्याशी हैं. लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव को लगता है कि बक्सर की सीट जगदानंद सिंह के परिवार का ही कोई व्यक्ति जीत सकता है.