Patna: Lok Sabha Elections 2024: तेजस्वी यादव ने लोकसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तैयार कर लिया है. इस फॉर्मूले के अनुसार, राजद खुद 30 सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो कांग्रेस को 7 और वामदलों को 3 सीटें दी जा सकती हैं. हालांकि अंतिम फैसला क्या होता है, यह देखना अभी बाकी होगा. तेजस्वी यादव के फॉर्मूले को देखें तो राजद के पास वो सारी सीटें जाती दिख रही हैं, जो नीतीश कुमार के महागठबंधन में रहते जेडीयू को मिलनी थी. तब राजद और जेडीयू के 15—15 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात की जा रही थी और बाकी सीटें वाम दल और कांग्रेस को बंटनी थीं. इस तरह अगर तेजस्वी यादव का फॉर्मूला कायम रहा तो नीतीश कुमार एनडीए में शामिल होने का फायदा कांग्रेस और वामदलों को नहीं मिलने जा रहा है. माना जा रहा है कि कांग्रेस को तेजस्वी यादव का यह फॉर्मूला मंजूर नहीं है और पार्टी ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा किया है. बता दें कि 2019 में कांग्रेस महागठबंधन के बैनर तेल केवल 9 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 8 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. किशनगंज के रूप में एक सीट कांग्रेस ने जीती थी और एनडीए ने 40 में से 39 सीटें जीतकर एक तरह से क्लीन स्वीप किया था. अब बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या तेजस्वी यादव ने 2020 की गलती से सबक सीख लिया है. आखिर वो कौन सी गलती है, जिसका हम जिक्र कर रहे हैं, इसके लिए आपको पूरी खबर पढ़नी होगी. 


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2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जिद करके अपने लिए 70 सीटें लड़ने के लिए ले ली थी. जब चुनाव परिणाम आया तो वो 19 सीटें ही जीत पाई. कांग्रेस का तब स्ट्राइक रेट 27.14 प्रतिशत रहा था. महागठबंधन में सबसे खराब स्ट्राइक रेट कांग्रेस का ही था. बाद में राजद नेताओं ने यह दावा भी किया था कि अगर कांग्रेस कम सीटों पर चुनाव लड़ती तो भाजपा और जेडीयू को सत्ता में आने से रोका जा सकता था. 


बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होने के बाद कांग्रेस खुद के लिए 15 सीटें मांग रही है, लेकिन लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव कांग्रेस की मांग मानने के मूड में नहीं दिखाई दे रहे. नीतीश कुमार के महागठबंधन में रहते कांग्रेस की डिमांड 10 से 12 सीटों पर चुनाव लड़ने की थी पर अब जब नीतीश कुमार गठबंधन से आउट हो गए हैं तो नीतीश कोटे की सीटों में कांग्रेस अपनी हिस्सेदारी चाह रही है. देखना होगा कि लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव कैसे कांग्रेस को 7 सीटों पर चुनाव लड़ने को राजी कर पाते हैं. 


2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद राजनीतिक जानकारों का कहना था कि तेजस्वी यादव ने कांग्रेस को उसकी योग्यता से ज्यादा सीटें दे दी थी. अगर ऐसा नहीं होता और राजद और अधिक सीटों पर फाइट में होती तो मुकाबला और कड़ा हो सकता था और तेजस्वी यादव की सरकार बिहार में बन गई होती. 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद 144, कांग्रेस 70, सीपीएम 4, सीपीआई 6 और सीपीआई एमएल को 19 सीटें दी गई थीं. 


10 लाख लोगों को सरकारी नौकरियां देने का वायदा कर तेजस्वी यादव जनता की नजर में हीरो बन गए थे. उनकी रैलियों में भारी भीड़ साबित कर रही थी कि उन्होंने जनता का नब्ज पकड़ लिया है. दूसरी ओर, राहुल गांधी की रैलियों में भीड़ नही आ रही थी. देश ने एक साल पहले ही 2019 में राहुल गांधी को एक तरह से नकार दिया था. हालत यह हो गई थी कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से शत्रुघ्न सिन्हा, तारिक अनवर और रंजीत रंजन जैसे उम्मीदवार भी मात खा गए थे. 


जानकार कहते हैं कि समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी 2017 के चुनाव में यही गलती की थी. अखिलेश यादव ने उस समय कांग्रेस के साथ गठबंधन कर उत्तर प्रदेश की 403 में से 105 सीटें कांग्रेस को लड़ने के लिए दी थी और कांग्रेस ने अपनी सीटों पर बहुत खराब प्रदर्शन किया और समाजवादी पार्टी की हार का प्रमुख कारण साबित हुआ था. उपचुनावों में भी कांग्रेस ने खराब प्रदर्शन किया था.


अगर तेजस्वी यादव ने 2020 की गलती से सबक सीखा है और राजद अधिक से अधिक लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ता है तो एनडीए से महागठबंधन की अच्छी टक्कर देखने को मिल सकती है. यह भी हो सकता है कि 2019 में बिहार में रिजल्ट आया था, उसमें बदलाव देखने को मिले.