Resort Politics Part 2: शाम तक सरकार नहीं बनी तो झारखंड मुक्ति मोर्चा का ये है प्लान बी
Resort Politics Part 2: हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद राज्यपाल का सरकार बनाने के लिए न बुलाना और भाजपा की लगातार बैठकें, प्रदेश प्रभारी की रांची में मौजूदगी से इंडिया ब्लॉक में बेचैनी है. डर यही है कि बिहार में भाजपा कोई बड़ा खेला न कर दे.
Resort Politics Part 2: झारखंड के मुख्यमंत्री पद से हेमंत सोरेन इस्तीफा दे चुके हैं और ईडी ने उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया है. थोड़ी देर में वे ईडी कोर्ट में पेश होने वाले हैं. हेमंत सोरेन के इस्तीफे के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक ने चंपई सोरेन को अपना नेता चुन लिया और उन्होंने 43 विधायकों के समर्थन पत्र के साथ सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया. हालांकि अभी राज्यपाल ने चंपई सोरेन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं किया है. झामुमो ने राज्य में तत्काल सरकार के गठन की मांग की है. अगर तत्काल सरकार नहीं बनती है तो फिर झामुमो विधायकों को चार्टर्ड प्लेन से हैदराबाद शिफ्ट करने की तैयारी चल रही है. उधर, भारतीय जनता पार्टी नेताओं की भी बैठक हो रही है और प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी रांची पहुंच गए हैं. भाजपा की रणनीति को लेकर अन्य दल सतर्क हो गए हैं. इस तरह एक बार फिर देश में रिजॉर्ट पॉलिटिक्स देखने को मिल सकती है.
हैदराबाद तेलंगाना की राजधानी है और वहां कांग्रेस की सरकार है. माना जा रहा है कि वहां विधायक इंटैक्ट रह सकते हैं. खबर यह भी है कि केवल झारखंड मुक्ति मोर्चा ही नहीं, महागठबंधन के सभी विधायकों को हैदराबाद शिफ्ट किया जा सकता है.
झारखंड विधानसभा में 80 विधायक हैं, जिनमें से सत्ताधारी गठबंधन के पास 48 नंबर है. चंपई सोरेन की ओर से सरकार बनाने का जो दावा किया गया था, उनमें केवल 43 विधायकों के हस्ताक्षर हैं. उधर भाजपा और एनडीए की बात करें तो उसके पास इस समय 32 विधायक हैं.
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हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद राज्यपाल का सरकार बनाने के लिए न बुलाना और भाजपा की लगातार बैठकें, प्रदेश प्रभारी की रांची में मौजूदगी से इंडिया ब्लॉक में बेचैनी है. डर यही है कि बिहार में भाजपा कोई बड़ा खेला न कर दे. यही कारण है कि विधायकों में किसी तरह की टूट को बचाने के लिए उन्हें हैदराबाद शिफ्ट करने की तैयारी चल रही है.
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2022 में भी झारखंड में रिजॉर्ट पॉलिटिक्स देखने को मिली थी. उस समय हेमंत सोरेन के खिलाफ आफिस आफ प्रॉफिट का केस आया था. तब भी राजनीतिक अनिश्चितता की स्थिति बन गई थी और तब झामुमो और गठबंधन के विधायकों को छत्तीसगढ़ भेज दिया गया था. तब छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की सरकार थी.