Bihar Politics: नए साल के 18 दिन में हीं INDIA में क्या-क्या बदल गया?
Bihar Politics: बिहार में राजद और जदयू भले एक दूसरे के साथ सामंजस्य और तालमेल होने की बात कर रही हो. लेकिन, जिस तरह की सियासी बयानबाजी दोनों दलों के नेता कर रहे हैं उसकी वजह से तस्वीरें कुछ और ही बयां कर रही हैं.
पटना: Bihar Politics: बिहार में राजद और जदयू भले एक दूसरे के साथ सामंजस्य और तालमेल होने की बात कर रही हो. लेकिन, जिस तरह की सियासी बयानबाजी दोनों दलों के नेता कर रहे हैं उसकी वजह से तस्वीरें कुछ और ही बयां कर रही हैं. दरअसल बिहार के रास्ते केंद्र की सत्ता पर काबिज होने की कवायद में विपक्षी दल एक गठबंधन की नीव रख चुके हैं. INDIA गठबंधन में देश के कई विपक्षी दल शामिल हैं जो NDA के खिलाफ मैदान में उतरने की तैयारी में है. ऐसे में अभी तक INDIA गठबंधन में सीटों का बंटवारा तक नहीं हो पाया है. जबकि बिहार में इस गठबंधन के दो प्रमुख दल राजद और जदयू पहले से ही बिहार में अपने लिए सीटों के दावे ठोंक रही है. आपको बता दें कि जदयू पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि जिन 17 सीटों पर वह 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ी थी उसपर उसके उम्मीदवार ही मैदान में होंगे. जबकि राजद भी 17 सीटों पर लड़ने का दावा कर रही है. यानी अगर 16-16 सीटों पर भी बात बन जाती है तो गठबंधन के बाकी सहयोगी दलों के लिए बिहार में कुछ ज्यादा बचेगा नहीं जबकि कांग्रेस 9 से 10 सीटों पर दावा पहले से ही ठोंक रही है.
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अब बात करते हैं नए साल के गुजरे 18 दिनों में बिहार की सियासत ने कैसे इशारा कर दिया कि गठबंधन में सबकुछ सामान्य नहीं है. महागठबंधन के घटक दल और नीतीश कुमार की पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद जैसे ही पार्टी की कमान ललन सिंह से नीतीश कुमार ने अपने हाथों में ली, उनकी पार्टी के लोग नीतीश के लिए इंडिया गठबंधन में पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर नाम घोषित किए जाने की मांग करने लगे. इधर लालू यादव और तेजस्वी यादव दोनों की सोच जिसका दावा जदयू के कई नेता दबी जुबान कर रहे थे वह चकनाचूर हो गया. जदयू के नेता दबी जुबान से कहने लगे थे कि तेजस्वी को बिहार का सीएम बनाने के लिए सारी कोशिश की गई थी लेकिन नीतीश के हाथ में पार्टी की कमान आते ही. नीतीश पार्टी भी बचा ले गए और अपना राजनीतिक भविष्य भी.
इसके बाद से ही नीतीश का बॉडी लैंग्वेज बदल गया. नीतीश दिल्ली से पार्टी की बैठक के बाद हाथ में पार्टी की कमान संभाले पटना लौटे तो उन्होंने तेजस्वी और लालू से दूरी बना ली. लंबे समय बाद नीतीश लालू के घर मकर संक्रांति के मौके पर दही-चूड़ा भोज में पहुंचे तो 10 मिनट रूककर वहां पीछे के दरवाजे से अपने स्वभाव के विपरीत बिना मीडिया से बात किए निकल गए. इधर 13 जनवरी को पटना के गांधी मैदान में जो नवनियुक्त शिक्षकों को नीतीश कुमार नियुक्ति पत्र प्रदान कर रहे थे उसके पोस्टर से तेजस्वी यादव गायब थे.
खबरों की मानें तो नीतीश का ही केवल बॉडी लैंग्वेज नहीं बदला है लालू और तेजस्वी भी बदले-बदले से नजर आ रहे हैं. नीतीश जब लालू आवास पहुंचे तो ना तो नीतीश को टीका लगाकर लालू ने उनका स्वागत किया ना ही ज्यादा बातचीत हुई. नीतीश से लालू दूर-दूर ही नजर आए.
वहीं जिस तरह से तेजस्वी यादव अपने विभाग में सक्रिय हो गए हैं और उनकी पार्टी सभी तरह के कामों का क्रेडिट लेने की होड़ में लगी है उससे तो साफ पता चल रहा है कि तेजस्वी यादव ने भी अपने अंदाज बदल लिया है. उनको पता चल गया है कि कुछ भी हो सकता है. ऐसे में नीतीश ने जैसे ही पार्टी की कमान संभाली थी तेजस्वी ने पूर्व निर्धारित अपना विदेश दौरा कैंसिल कर दिया था. जबकि अदालत से इस दौरे की उन्हें अनुमति मिल गई थी.
लालू यादव की पार्टी के नेता लगातार इस बात का दावा कर रहे हैं कि इंडिया गठबंधन में सब ठीक है और बिहार में इसके घटक दलों में सीट सीट शेयरिंग पर बात बन गई है. लेकिन, जदयू की तरफ से इससे साफ इनकार किया जा रहा है. वहीं सीतामढ़ी सीट को लेकर इंडिया गठबंधन में विवाद और गहरा गया है. जदयू के संभावित प्रत्याशी देवेश चंद्र ठाकुर को लेकर इस सीट पर दोनों दलों राजद और जदयू ने मोर्चा खोल रखा है.
इधर नीतीश कुमार के बारे में राजनीति के जानकार बता रहे हैं कि वह इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे में देरी और उनके लिए सम्मानजनक पद ना मिलने से जहां असहज हैं. वहीं वह नाराज भी नजर आ रहे हैं. यह उनके बॉडी लैंग्वेज से भी साफ झलक रहा है. नीतीश के लिए इंडिया गठबंधन में संयोजक पद का नाम आया तो उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया. इसके पीछे की भी बड़ी वजह है. एक तो नीतीश कुमार के ऊपर इस पद पर आते ही सभी दलों को समझाने और संभालने की जिम्मेदारी आ जाती. वहीं वह बिहार में जदयू के अलावा गठबंधन के अन्य घटक दलों के लिए बीच का रास्ता सीट शेयरिंग के दौरान निकालने की कोशिश करते, जिसमें उनकी पार्टी को नुकसान होता. वहीं दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन के कई दल नीतीश से ज्यादा संयोजक के तौर पर लालू प्रसाद यादव को चाह रहे थे. नीतीश को यह बात भी शायद बेहतर नहीं लगी. अब ऐसे में नए साल में जिस तरह से इतने कम समय में गठबंधन के दलों के बीच बयानबाजी हो रही है उससे तो साफ पता चल रहा है कि ऑल इज वेल वाली स्थिति तो अभी नहीं है.