दरभंगा: कार्तिक शुक्ल षष्टी को छठ व्रत (Chhath Puja) की परंपरा बहुत पुरानी है. इसका प्रमाण प्राचीनतम धर्म ग्रंथ स्कंद पुराण में विस्तार से मिलता है. यह कहना है कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर प्रो. सर्वनारायण झा का. कुलपति के नेतृत्व में संस्कृत विश्वविद्यालय कई दशक से विश्वविद्यालय पंचांग का प्रकाशन करता है. इसी पंचांग के अनुसार मिथिलांचल की इलाकों में हिंदू धर्म के व्रत-त्योहार और शुभ कार्य होते हैं.


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कुलपति ने बताया कि विश्वविद्यालय पंचांग के अनुसार, इस बार षष्टी को शाम 5:30 बजे सूर्यास्त होगा. उसके पहले सायंकालीन अर्घ्य देना है. जबकि सप्तमी को सुबह 6:32 में सूर्योदय होगा. उसी समय प्रातः कालीन अर्घ्य देना है.


कुलपति ने स्कंद पुराण के अनुसार छठ व्रत की महिमा और पूजा करने की विधि बताई. उन्होंने बताया कि छठ व्रत में भगवान सूर्य की आराधना की जाती है. इससे कोई भी असाध्य रोग ठीक हो जाता है. इसके अलावा दीर्घायु होने का आशीर्वाद भी मिलता है. उन्होंने कहा कि चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व बहुत कठिन होता है. खरना के दिन एक ही बार अन्न और जल ग्रहण करने का विधान है. उसके बाद वर्ती को निर्जला रहना होता है. नीचे जमीन पर सोना होता है.


वहीं, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि के धर्म शास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रो. श्रीपति त्रिपाठी ने छठ से जुड़ी रोचक जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि आखिर सूर्य भगवान की आराधना के पर्व को छठ क्यों कहा जाता है. प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि प्राचीन काल में यह पर्व स्कंद षष्टी कहा जाता था. छठी मइया के संबंध कथा प्रचलित है कि गंगा ने एक छह स्कन्द वाले बालक को जन्म देकर उसे सरकंडा के वन में छोड़ दिया. उस वन में छह कृतिकाएं रहती थीं, जिन्होंने इस बालक का पालन-पोषण किया. वे छह माताएं कहलायीं. इस वजह से इसे छठी मइया भी कहा जाता है. वे कृतिकाएं थीं इसलिए इस मास का नाम कार्तिक पड़ा. वह शुक्ल षष्टी तिथि थी इस लिए इसे कार्तिक षष्टी कहा जाता है. एक दूसरी मान्यता के अनुसार, सूर्य की शक्ति षष्टी देवी हैं, जिन्हें कात्यायनी भी कहा जाता है. इसलिए इसे छठी मइया भी कहा जाता है.