Patna: कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द किए जाने के बाद विपक्षी दलों में उबाल आ गया है. विपक्ष के नेता इसे मोदी सरकार की ओर से विपक्ष की आवाज दबाने की रणनीति करार दे रहे हैं. विपक्षी खेमों में भी एक दूसरे के धुर विरोधी अब एक साथ एक ही आवाज बुलंद कर रहे हैं. आलम यह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के समर्थन में बयान दिया है, जबकि हाल तक जब मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार किया गया था, तब कांग्रेस उसका समर्थन कर रही थी. अब राहुल गांधी के समर्थन में एक आवाज उठी है कि सभी विपक्षी सांसद एक साथ सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दें. बिहार में राजद विधायक भाई वीरेंद्र ने पूर्व केंद्रीय मंत्री रामलखन सिंह यादव की जयंती पर आयोजित समारोह में इसे लेकर आवाज बुलंद की है.


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राजद विधायक भाई वीरेंद्र ने कहा, मेरे विचार में राहुल गांधी के साथ जो भी हुआ, वह अंत नहीं है बल्कि यह शुरुआत हो सकती है. हमारे नेता डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पहले से ही उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं. कतार में अगला व्यक्ति मैं भी हो सकता हूं. लोकतंत्र पर खतरे के खिलाफ इस लड़ाई में पूरा विपक्ष कूद पड़ा है. उन्होंने कहा कि मेरे ख्याल से विपक्ष के सभी सांसदों को एक साथ इस्तीफा देकर इस लड़ाई को मजबूत करनी चाहिए. फिर उन्होंने नीतीश कुमार का नाम लिए बिना कहा, सामूहिक इस्तीफे के बाद हमारे सीएम इस लड़ाई में देश की अगुवाई कर सकते हैं. 


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ऐसा नहीं है कि राजद विधायक भाई वीरेंद्र ने ही यह आइडिया दिया है, इससे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की बैठक में भी सामूहिक इस्तीफे को लेकर चर्चा हो चुकी है. कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने सामूहिक इस्तीफे का आइडिया दिया. उसके बाद और भी कई नेताओं ने सामूहिक इस्तीफे के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद की. हालांकि कांग्रेस इस मसले पर नफा नुकसान तौल रही है. कांग्रेस ही नहीं, बाहर से भी सामूहिक इस्तीफे को लेकर कई तरह की बात कही जा रही है. बता दें कि आजाद भारत के इतिहास में एक बार ऐसा हो चुका है, जब राजीव गांधी की सरकार और उस समय विपक्ष ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया था. 24 जून 1989 का दिन भारतीय राजनीति में भूचाल लाने वाले दिन के रूप में दर्ज है, जब विपक्ष के सभी सदस्यों ने एक साथ इस्तीफा दे दिया था. 


उस समय बोफोर्स तोप घोटाले का मसला बहुत गर्म था और विपक्षी दल प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार से इस्तीफे की मांग कर रहे थे. राजीव गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया तो सामूहिक विपक्ष ने यह कदम उठाया था. उसी तर्ज पर आज की तारीख में सामूहिक इस्तीफे की मांग की जा रही है. रवनीत सिंह बिट्टू के अलावा आचार्य प्रमोद कृष्णम और पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के नाती विभाकर शास्त्री ने भी कुछ ऐसी ही मांग की है. आचार्य प्रमोद कृष्णम का तो यहां तक कहना है कि बीजेपी का इलाज अदालत नहीं, बल्कि जनता की अदालत है. विभाकर शास्त्री ने ट्वीट कर कहा कि आज अगर मैं किसी सदन का सदस्य होता तो अपने नेता राहुल गांधी के सम्मान में पद छोड़ चुका होता. 


विभाकर शास्त्री के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए आचार्य प्रमोद कृष्णम ने लिखा, सामूहिक इस्तीफे के लिए कलेजा चाहिए. उन्होंने लिखा, वफादारी का तकाजा तो यही है, लेकिन इसके लिए कलेजा चाहिए. 24 जून 1989 को जब विपक्ष के 106 सांसदों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दिया था, तब बीजेपी के केवल 2 सांसद थे. उस समय जनता पार्टी के 10, वामपंथी दलों के 22, तेलुगुदेशम के 30, एआईएडीएमके के 12 सांसद थे. उस समय विपक्षी एकता के नायक वीपी सिंह थे और वे अपने संबोधनों में अकसर कहा करते थे कि राजीव गांधी के खिलाफ सबूत उनके दाहिने पॉकेट में मौजूद है.