History of Nalanda University: 3 महीने तक धधकता रहा था नालंदा विश्वविद्यालय, 9 मिलियन पांडुलिपियां हो गई थीं स्वाहा
Nalanda University: नालंदा विश्वविद्यालय गणित और खगोल विज्ञान की पढ़ाई के लिए भी बहुत प्रसिद्ध था. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय गणित के जनक माने जाने वाले आर्यभट्ट छठी शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख थे. इतिहासकार बताते हैं कि नालंदा में सिखाई गई गणित और खगोल विज्ञान की कई महत्वपूर्ण थ्योरी दुनिया के अन्य हिस्सों में भी पहुंचीं और वहां के विद्वानों ने इन्हें अपनाया.
History of Nalanda University: नालंदा विश्वविद्यालय भारतीय शिक्षा और संस्कृति का अद्वितीय केंद्र था, जिसे 427 ईस्वी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम ने स्थापित किया था. यह विश्वविद्यालय लगभग 700 साल तक शिक्षा का प्रमुख स्थल रहा, जहां दुनिया भर से विद्यार्थी अध्ययन करने आते थे. लेकिन 1193 में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस ऐतिहासिक विश्वविद्यालय पर हमला किया और इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया.
9 मिलियन पांडुलिपियां हो गई थीं स्वाहा
इतिहासकार बताते हैं कि नालंदा की सबसे अनमोल धरोहर उसकी विशाल पुस्तकालय थी, जिसमें लगभग 90 लाख (9 मिलियन) पांडुलिपियां और ग्रंथ संग्रहित थे. ये पांडुलिपियां धर्म, विज्ञान, गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा और अन्य अनेक विषयों पर आधारित थीं. जब खिलजी ने आक्रमण किया, उसने इस पुस्तकालय में आग लगा दी. आग इतनी भयंकर थी कि यह लगभग तीन महीने तक धधकती रही. उस समय की सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध और हिंदू धर्म से संबंधित दुर्लभ पांडुलिपियां इस आग में स्वाहा हो गईं.
3 महीने तक धधकता रहा था नालंदा विश्वविद्यालय
इतिहासकार बताते हैं कि इस हमले का मुख्य उद्देश्य बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के ज्ञान को मिटाना था, क्योंकि खिलजी को लगता था कि नालंदा में इस्लाम के विरुद्ध शिक्षा का प्रचार हो रहा है. इसके परिणामस्वरूप न केवल विश्वविद्यालय को भारी नुकसान हुआ, बल्कि हज़ारों विद्वान और बौद्ध भिक्षु भी मारे गए. नालंदा के ध्वस्त होने के साथ ही भारत के प्राचीन शिक्षा तंत्र का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया. नालंदा विश्वविद्यालय की इस त्रासदी को इतिहास में ज्ञान और शिक्षा के विरुद्ध एक क्रूर आक्रमण के रूप में देखा जाता है. तीन महीने तक जलने वाली इन पांडुलिपियों के साथ, दुनिया ने अनमोल ज्ञान का खजाना खो दिया.
नालंदा विश्वविद्यालय आए थे चीन के विद्वान ह्वेन सांग
साथ ही सातवीं शताब्दी में चीन के विद्वान ह्वेन सांग नालंदा विश्वविद्यालय आए और यहां पढ़ाई भी की. जब वह अपने देश लौटे, तो बौद्ध धर्म से जुड़े कई ग्रंथ लेकर गए और उनका चीनी भाषा में अनुवाद किया. उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय के विशाल और संरचित परिसर का वर्णन किया, जिसमें स्तूप, मंदिर और एक विशाल पुस्तकालय था. इस स्तूप को सम्राट अशोक द्वारा भगवान बुद्ध के एक प्रमुख शिष्य की स्मृति में बनाया गया था.
यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में शामिल नालंदा विश्वविद्यालय
इतिहासकार बताते हैं कि नालंदा की खुदाई में लगभग 14 हेक्टेयर में इसके अवशेष मिले हैं, जो इस ऐतिहासिक स्थल की भव्यता को दर्शाते हैं. खुदाई में गौतम बुद्ध की कांस्य मूर्तियां, हाथी दांत की कलाकृतियां और प्लास्टर की मूर्तियां भी मिली हैं. वर्तमान में नालंदा को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में शामिल किया गया है. 2006 में नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्स्थापित करने की योजना बनाई गई थी और अब इसका नया परिसर बनकर तैयार हो गया है. यह विश्वविद्यालय एक बार फिर से शिक्षा का केंद्र बनने की दिशा में अग्रसर है. नालंदा का इतिहास हमें यह बताता है कि ज्ञान और शिक्षा का महत्व कितना बड़ा है. यह स्थान भारत के शिक्षा और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है और इसका पुनरुत्थान इस बात का सबूत है कि समय चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, ज्ञान और शिक्षा की ज्योति कभी बुझती नहीं.
ये भी पढ़िए- Bihar Weather: इन 24 जिलों में होगी झमाझम बारिश, वज्रपात को लेकर मौसम विभाग ने जारी किया अलर्ट