अडाणी मुद्दे पर क्लीनचिट के बाद इंडी गठबंधन देश से माफी मांगे: सुशील मोदी
पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि संसदीय चुनाव के लिए सीट साझेदारी पर कोई निर्णय होने से पहले जदयू के अरुणाचल में प्रत्याशी घोषित करने और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस-टीएमसी के बीच बढती खटास से तय है कि इंडी गठबंधन में घमासान मचा है.
पटना: पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि संसदीय चुनाव के लिए सीट साझेदारी पर कोई निर्णय होने से पहले जदयू के अरुणाचल में प्रत्याशी घोषित करने और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस-टीएमसी के बीच बढती खटास से तय है कि इंडी गठबंधन में घमासान मचा है. इधर, हिंडनबर्ग मामले में अडाणी ग्रुप को सुप्रीम कोर्ट से क्लीनचिट मिलने के बाद विपक्ष के हाथ से यह मुद्दा भी छिन गया.
राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि राहुल गांधी के नेतृत्व में जिन विपक्षी दलों ने अडाणी के विरुद्ध जेपीसी जांच की मांग करते हुए संसद का पूरा एक सत्र बर्बाद कर दिया था, उन सबको सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश की जनता से क्षमा याचना करनी चाहिए. न्यायालय न केवल इस मामले में सेबी की जांच से संतुष्ट है, बल्कि न्यायपीठ ने एसआइटी या अन्य किसी एजेंसी से जांच की मांग खारिज कर दी.
उन्होंने कहा कि 2019 के संसदीय चुनाव से पहले जब राहुल गांधी ने 36 राफेल विमानों की खरीद में कथित अनियमितता का शोर मचा कर सरकार को बदनाम करने की कोशिश की थी, तब भी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से क्लीनचिट मिली थी और राहुल गांधी को "चौकीदार चोर है"जैसे बयान के लिए माफी मांगनी पड़ी थी.
राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि एक तरफ झूठ और दुराग्रह से गढे गए विपक्ष के सारे मुद्दे ध्वस्त होते जा रहे हैं, दूसरी तरफ इंडी गठबंधन के दल खुल कर एक-दूसरे के विरुद्ध मैदान में आ गए हैं.
उन्होंने कहा कि जिस समय बिहार प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व नीतीश कुमार को गठबंधन का संयोजक बनाने की पैरवी कर रहा था, उसी समय जदयू अध्यक्ष ने कांग्रेस के प्रभाव वाली अरुणाचल (पश्चिम) सीट से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया. यह एकतरफा फैसला कांग्रेस पर दबाव बनाने लिए किया गया.
राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा ऊपर से एकजुट दिखने का नाटक करते इंडी गठबंधन के सभी दल अपने-अपने क्षेत्र में दूसरे दलों के खिलाफ कमर कस कर खड़े हैं. ऐसे में ये लोग मतदान के दिन तक सीट साझेदारी पर कोई फैसला नहीं कर पाएंगे और "दोस्ताना संघर्ष" बता कर चेहरा बचाएँगे. ये लोग प्रधानमंत्री मोदी की स्थिर, मजबूत और कल्याणकारी सरकार का विकल्प क्या बनेंगे?