NDA में न लेने के अमित शाह के ऐलान के बाद भी क्यों नीतीश कुमार के पलटी मारने की लगाई जा रही अटकलें
बिहार में नीतीश के 17 सालों के समय में जीतन राम मांझी के कार्यकाल को छोड़ दें तो यहां केवल गठबंधन बदली सरकार में डिप्टी सीएम और मंत्री बदले लेकिन मुख्यमंत्री केवल और केवल नीतीश कुमार ही रहे. मतलब बिहार की राजनीति के केंद्र में केवल नीतीश रहे चाहे भाजपा के साथ या फिर महागठबंधन के साथ मिलकर उन्होंने सरकार चलाई हो.
पटना : बिहार में 17 साल से ज्यादा सत्ता के शिखर पर बैठे नीतीश कुमार को यहां की राजनीतिक, सामाजिक, भौगोलिक और नागरिक शास्त्र की पूरी समझ हो गई है. नीतीश बिहार की जनता की नब्ज को बेहतर तरीक से पहचानते हैं. बिहार में नीतीश के इन 17 सालों के समय में जीतन राम मांझी के कार्यकाल को छोड़ दें तो यहां केवल गठबंधन बदली सरकार में डिप्टी सीएम और मंत्री बदले लेकिन मुख्यमंत्री केवल और केवल नीतीश कुमार ही रहे. मतलब बिहार की राजनीति के केंद्र में केवल नीतीश रहे चाहे भाजपा के साथ या फिर महागठबंधन के साथ मिलकर उन्होंने सरकार चलाई हो. बिहार में 6 महीने से भी कम वक्त हुआ है जब महागठबंधन का दामन थाम नीतीश सीएम पद पर काबिज हुआ हैं और अब वहां महागठबंधन में भी दरार देखने को मिल रही है.
इस सब के बीच अब एक बार फिर से कयास लगाए जाने लगे हैं कि बिहार की राजनीति में कुछ बड़ा होनेवाला है. दरअसल बिहार में महागठबंधन के दलों के बीच ही सियासी उठापटक और बयानबाजी तेज हो गई है. नीतीश कुमार को कमजोर होता देख राजद ने उनपर हावी होने की कोशिश की तो राजनीति के खिलाड़ी माने जानेवाले सुशासन बाबू को सब समझ आ गया. दरअसल नीतीश के महागठबंधन में शामिल होने से पहले उनके सबसे करीबी माने जाने वाले प्रशांत किशोर का उनसे साथ छूटा तो वहीं महागठबंधन में शामिल होकर सरकार बनाने के बाद दूसरे सबसे करीबी आरसीपी सिंह अलग हो गए. नीतीश कमजोर हो रहे थे तो एक तरफ से उन्हें ललन सिंह सहारा दे रहे थे और दूसरी तरफ से उपेंद्र कुशवाहा. कुशवाहा से भी नीतीश की नहीं बनी तो उन्होंने भी पार्टी छोड़ दी. अब नीतीश के लिए मुश्किलें बड़ी हो गई.
कुशवाहा के निकलते ही आरा से जदयू की पूर्व सांसद मीना सिंह ने भी पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होने का मन बना लिया, भाजपा की तरफ से मीना के पार्टी में आने का ऐलान भी कर दिया गया. अब नीतीश के पास ऑप्शन की क्या बचा था. ऐसे में सुशासन बाबू ने एक बार फिर अपनी राजनीति का रंग दिखाया. इस बीच नीतीश पर राजद की तरफ से तेजस्वी को बिहार की सत्ता सौंपने का दबाव भी बढ़ने लगा. आरजेडी के नेता यह दावा करने लगे कि नीतीश होली के बाद तेजस्वी को सत्ता सौंप देंगे. ऐसे में नीतीश ने एक ऐसा राजनीतिक खेला किया कि सभी राजद नेताओं की बोलती बंद हो गई है.
दरअसल अमित शाह ने साफ कह दिया था कि अब नीतीश कुमार की भाजपा के साथ गठबंधन में एंट्री संभव नहीं है लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह से नीतीश की नजदिकियां बढ़ रही है उसने राजद नेताओं को परेशान कर दिया है. राजद के नेता इस बात को समझने लगे हैं कि नीतीश कुमार कभी भी पलटी मार सकते हैं. महागठबंधन के घटक दलों के बीच भी सबकुछ सामान्य नहीं है, ऐसे में नीतीश की हाल में भाजपा नेताओं के संग बढ़ रही नजदीकियां राजद के नेताओं के लिए परेशानी का कारण बन गई है और अब वह इस मुद्दे पर एकदम चुप्पी साधे हुए हैं.
बिहार के राज्यपाल को जब बदला गया तो केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को खुद फोन किया. इसके बाद नीतीश कुमार के जन्मदिन पर पीएम मोदी ने उन्हें ट्वीट कर बधाई दी तो वहीं उन्हें अमित शाह और राजनाथ सिंह की तरफ से फोन के जरिए जन्मदिन की बधाई मिली. गलवान के शहीद के पिता के साथ हुई हरकत के बाद राजनाथ सिंह ने नीतीश कुमार से एक बार और फोन पर बात की. वहीं तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों के साथ हिंसा के मामले में भाजपा नेता नीतीश से उनके कैबिन में मिले तो उन्होंने तत्काल तमिलनाडु टीम भेजने का आदेश दे दिया. ऐसे में राजद नेताओं को समझ में आ गया कि नीतीश कुमार धीरे-धीरे भाजपा के नजदीक जा रहे हैं. वह समझ गए कि एनडीए में अभी भी नीतीश के लिए जगह है. वहीं जमीन के बदले नौकरी मामले में सीबीआई की तरफ से लालू और राबड़ी के साथ मीसा भारती से पूछताछ ने तो मानो राजद नेताओं को एकदम खामोश ही कर दिया.
ये भी पढ़ें- तेजस्वी यादव, उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान और आरसीपी सिंह को किस बात का डर सता रहा है?