पटनाः Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary: 15 अगस्त 2018 को एक तरफ देश स्वतंत्रता दिवस के जश्न में डूबा था तो वहीं भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपनी जिंदगी की जंग दिल्ली के एम्स में लड़ रहे थे. 15 अगस्त का जश्न उस साल अटल बिहारी वाजपेयी के अस्वस्थ होने की खबरों की वजह से फीका लग रहा था. आजादी के जश्न का उत्साह कम हुआ और 16 अगस्त की सुबह सूर्य की किरणें एक नई ऊर्जा के साथ उदयमान ही हुई थी कि अटल बिहारी की मौत की खबर ने सबको शोकग्रस्त कर दिया. पूरा देश अपने इस महान नेता को खोकर शोकाकुल हो गया था. वाजपेयी केवल अपनी पार्टी के ही नहीं बल्कि विपक्ष के भी चहेते नेता थे. उनकी विशालता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनके ओज को देखकर एक बार संसद में कह दिया था कि यह नौजवान एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा.


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नेहरू ने अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने की थी भविष्यवाणी
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी भले ही अलग राजनीतिक पार्टियों से संबंध रखते हो, लेकिन उन दोनों के बीच कई ऐसी चीजें थी जो समान थी. दोनों ही अपनी-अपनी पार्टियों की ओर से प्रधानमंत्री बनने वाले पहले नेता थे. आजादी के बाद नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने. इसी दौरान अटल बिहारी वाजपेयी भी पहली बार संसद में पहुंचे, तो उनका भाषण सुनकर नेहरू जी ने कहा था कि यह नौजवान नहीं, मैं भारत के भावी प्रधानमंत्री का भाषण सुन रहा हूं. नेहरू का ये बयान आज भी याद किया जाता है.


जब हिंदी की ताकत पूरी दुनिया को अटल जी ने बताई
कविताओं और किताबों के शौकीन अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 की जनता सरकार में जब वह विदेश मंत्री थे, तो उन्होंने पूरी दुनिया को भारत की सादगी, सच्चाई, धर्मनिरपेक्षता और यहां के लोकतंत्र से अवगत कराया. यूएन में पहली बार किसी नेता ने हिंदी में भाषण दिया और इसका असर ऐसा कि सभी प्रतिनिधियों ने वाजपेयी के लिए खड़े होकर तालियां बजाई थी. अटल बिहारी वाजपेयी ने यूएन में हिंदी भाषा में अपने भाषण को देने का विचार इसलिए रखा था कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय पटल पर हिंदी को उभारना था. जबकि अटल धारा प्रवाह, अंग्रेजी बोलते थे. 1977 में संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर हिंदी की गूंज पूरी दुनिया ने सुनी थी. 'वसुधैव कुटुंबकम' का संदेश देते अपने भाषण में उन्होंने मूलभूत मानव अधिकारों के साथ- साथ रंगभेद जैसे गंभीर मुद्दों का जिक्र किया था. 


किन-किन पदों पर दायित्व संभाल चुके थे अटल
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अटल बिहारी वाजपेयी 1951 में भारतीय जनसंघ से जुड़ गए. वह पार्टी के संस्थापक और अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी के राजनीतिक सचिव थे. 1953 में मुखर्जी की मौत के बाद वो पूरी तरह से पार्टी के सदस्य बन गए. भारतीय जनसंघ में वाजपेयी के बढ़ते दबदबे को देखते हुए, 1955 के उपचुनाव में उन्हें लखनऊ लोकसभा सीट के लिए पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर उतारा गया, जो पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजया लक्ष्मी पंडित के इस्तीफे के बाद खाली हो गई थी. हालांकि उस चुनाव में वाजपेयी हार गए थे. उन्होंने तीसरा स्थान हासिल किया था. वाजपेयी के उस चुनावी अभियान को उनके प्रभावशाली व्याख्यात्मक कौशल के लिए याद किया जाता है. इसके दो साल बाद 1957 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने तीन जगहों से चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें बलरामपुर से जीत मिली, जबकि लखनऊ संसदीय क्षेत्र से वो दूसरे नंबर पर और मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई. पंडित नेहरू की कांग्रेस के खिलाफ एक छोटी पार्टी से आने के बावजूद वाजपेयी ने पहली बार एक सांसद के रूप में असाधारण प्रदर्शन किया था. इसके बाद वाजपेयी द्वारा लोकसभा में उठाए गए सवालों और उनके भाषण ने पंडित नेहरू का भी ध्यान आकर्षित किया.


वाजपेयी का बिहार के मुंगेर जिले से था करीबी रिश्ता
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का बिहार के मुंगेर जिले से करीबी रिश्ता था. वाजपेयी जब भी मुंगेर आते, पुराने परिचित लोगों से मुलाकात करना नहीं भूलते थे. वाजपेयी सबसे पहले 1956 में मुंगेर जिले आए थे. इसके बाद 1972 में दोबारा वो मुंगेर आए थे, लेकिन मुंगेर के विकास के लिए वाजपेयी ने अहम योगदान दिया. मुंगेर में गंगा नदी पर बना पुल अटल बिहारी वाजपेयी की ही देन है.


पटना में अटल बिहारी वाजपेयी की देन है एम्स
अटल बिहारी वाजपेयी ने 2004 में अपने प्रधानमंत्रित्व काल में पटना समेत देश के अन्य भागों में कुल छह एम्स खोले जाने की योजना की परिकल्पना की थी. 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान 350 करोड़ परियोजना (2004 अनुमान) के लिए आधारशिला रखी गई थी. 25 दिसंबर 2012 को पटना AIIMS का उद्घाटन हुआ था.


अटल वाजपेयी और नीतीश का साथ बिहार के लिए बना वरदान
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 1996 में नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन किया. इस वक्त पार्टी का पूरा नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के हाथों में हुआ करता था. इस गठबंधन का नीतीश कुमार को फायदा हुआ और साल 2000 में वह पहली बार मुख्यमंत्री बने, हालांकि ये पद उन्हें महज सात दिन के लिए ही मिला. इसके बाद मई 2001 से 2004 तक नीतीश कुमार वाजपेयी सरकार में केंद्रीय रेल मंत्री रहे. इसी दौरान 6 जून 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इस दिशा में पहल की और कोसी नदी पर रेल पुल की नींव रखी गई.


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