Patna: बिहार (Bihar) में राजग के घटक दल वीआईपी (VIP) ​के अध्यक्ष और पशुपालन एवं मत्स्य पालन मंत्री मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) ने अपनी पार्टी वीआईपी (VIP) को विस्तार करने का मन बना लिया है. आगामी यूपी विधानसभा चुनाव को देखते हुए उन्होंने कहा कि 25 जुलाई को वाराणसी में फूलन देवी ( Poolan devi) के शहादत दिवस मनाने जा रहे हैं. उन्होंने फूलन देवी को निषाद समाज के संघर्ष का प्रतीक बताया हैं. 


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उन्होंने कहा कि हम निषाद समाज को एक करने के लिए फूलन देवी की 20 मूर्तियां बनाने जा रहे हैं. जिसे यूपी के 18 प्रमंडलों में लगाया जाएगा. इस दौरान उन्होंने कहा कि काफी प्रताड़ना सहकर भी फूलनदेवी ने हार नहीं मानी और सांसद बनी. अगर आज वह जिंदा रहती, तो निषाद समाज की भी राजनीति में भागीदारी अच्छी होती. फूलन देवी के कारण ही निषाद समाज को पहचान मिली है. 


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मुकेश सहनी ने कहा कि 25 जुलाई को हम कार्यकर्ताओं के साथ वाराणसी में रहेंगे और वहां भव्य कार्यक्रम का आयोजन होगा.  उन्होने कहा की हम असली गंगा पुत्र हैं, हमें भी गंगा बुला सकती है. वैसे इस कार्यक्रम को राजनीतिक पंडित आगामी विधानसभा से जोड़ रहे हैं. क्योंकि यूपी में निषाद, मल्लाह और कश्यप वोट बैंक करीब चार फीसद है. इससे पहले मुकेश सहनी ने करीब 150 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कहीं हैं. 


कौन थी फूलन देवी


फूलन देवी का जन्‍म 10 अगस्त 1963 को यूपी के एक छोटे से गांव गोरहा के एक निषाद परिवार में हुआ था. गांव के कुछ विशेष वर्ग के लोगों ने उन्हें शारारिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया था. जिसके बाद वो किसी तरह से दबंगों के चंगुल से भागने में सफल रही थी. जिसके बाद वो डकैतों की गैंग में शामिल हो गई थी. इसके बाद उन्होंने बदला लेने अपने बनाए गिरोह के साथ वापस बेहमई गांव पहुंची थी. यहां उन्होंने  गांव वालों को प्रताड़ित करने वाले दो लोगो को सामने लाने की बात कही थी. जब वो लोग नहीं आये, तो उन्होंने विशेष वर्ग के सभी युवकों को लाइन में खड़ा कर गोली मार दी थी. इस नरसंहार में 22 युवकों की जान चली गई थी.


इसके बाद इंदिरा गांधी की पहल की वजह से उन्होंने आत्मसमर्पण किया  था. जेल से रिहा होने के बाद 1996 में फूलन देवी मिर्जापूर - भदोही से सपा की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ी थी, जिसमे उन्हें जीत हासिल हुई थी. हालांकि 25 जुलाई 2001 के शेरसिंह राणा ने दिल्ली में फूलन देवी के आवास पर ही उनकी हत्या कर दी थी. 


UP चुनाव में अहम है निषाद वोट बैंक


मुकेश सहनी की इस घोषणा ने बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है क्योंकि आरक्षण के मुद्दे पर यूपी की निषाद पार्टी पहले से ही खफा है. ऐसे में अब वीआईपी के आने से लड़ाई और दिलचस्प हो गई है क्योंकि दोनों ही दल अपनी-अपनी ओर से निषादों को साधने की कोशिश करेंगे. यूपी के आबादी में 14 फीसदी हिस्सेदारी निषाद समाज रखता है. दोनों पार्टी अपनी पूरी ताकत से यूपी की उन 70 सीट पर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करेगा, जहां निषाद समाज के लोग ज्यादा हैं. 


'संजय निषाद चुनावी मैदान में आएंगे नजर'


वहीं, यूपी के निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद (Sanjay Nishad) BJP के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरेंगे, लेकिन वह पहले ही बीजेपी से डिप्टी सीएम पद की मांग कर चुके हैं. वो 2022 में कम से कम 50 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं.


वीआईपी को लाना BJP की पैतरा


निषाद पार्टी की ओर से एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि आगामी विधानसभा में वीआईपी को मोहरे की तरह बीजेपी प्रयोग कर सकती हैं. अपने विरोधियों को हराने के लिए ही बीजेपी बिहार से वीआईपी को यहां पर बुलाया है.  अगर हमारी मांगो को बीजेपी पूरा नहीं करती है तो उसे विधानसभा चुनाव में काफी नुकासान होगा क्योंकि वीआईपी की यूपी में कोई मौजूदगी नहीं है. हालांकि, मुकेश सहनी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है.



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