मोतिहारी: बिहार में 2016 से पूर्ण शराबबंदी कानून लागू है, लेकिन कई जगहों से यदा कदा जहरीली शराब से मरने वालों का आंकड़ा हमें डरा देता है. अभी हाल ही मोतिहारी में जहरीली शराब कांड में 33 लोगों की जान जा चुकी है. पूर्ण शराबबंदी लागू होने के 7 साल बाद अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ऐलान किया है जहरीली शराब पीने से मरने वालों के परिजनों को 4-4 लाख रुपये मुआवजा दिए जाएंगे. सवाल यह है कि जब राज्य में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू है तो फिर हर 2-4 महीनों में जहरीली शराब क्यों मौत बनकर तांडव कर रही है. हकीकत यह है कि शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से गांव गांव देसी शराब बनने लगी हैं. इससे शराबबंदी का प्रभाव तो कम पड़ा ही है, लोगों की जान भी जा रही है. शराबबंदी के चलते बिहार में नशे के दूसरे विकल्पों का चलन भी बहुत तेजी से बढ़ा है. आलम यह है कि राज्य में गांजे की एक पुड़िया 30 से लेकर 50 तो चरस की पुड़िया 500 रुपये में उपलब्ध है.


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पहले कार्यकाल में शराब को बढ़ावा फिर 2016 में शराबबंदी 
नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल में शराब नीति को अधिक उदार बनाया गया, ताकि राज्य के राजस्व में जबर्दस्त तरीके से फायदा हो. सरकार की आमदनी तो बढ़ गई लेकिन इस उदार नीति ने ही पूर्ण शराबबंदी की नींव रखी. इसके जब दुष्परिणाम सामने आगे लगे तो विरोध प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया. महिलाएं शराब की उदार नीति की जगह शराबबंदी की मांग करने लगीं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस मौके को भुनाया और 2016 में पूर्ण शराबबंदी कानून को लागू कर दिया. शराबबंदी लागू होने के बाद बिहार में कुछ समय तक सब ठीक रहा लेकिन नशे के कारोबार ने उसके बाद जानें लेनी शुरू कर दीं.  


शराब पर प्रतिबंध तो बढ़ गया गांजा-स्मैक का कारोबार


एनसीबी की रिपोर्ट की मानें तो 2016 में 496.3 किलो गांजा पकड़ा गया था तो 2017 के फरवरी तक यह 6884.7 किलो तक पहुंच गया. एक रिपोर्ट की मानें तो राज्य में स्मैक के बदले खून बेचने के मामले के खुलासे भी हो चुके हैं. खुद बिहार पुलिस मुख्यालय के आंकड़े बताते हैं कि 2021 के अक्टूबर तक 38,72,645 लीटर शराब पकड़ी गई तो 62,140 लोगों को गिरफ्तार किया गया. नशे के कारोबार में प्रयुक्त 12,200 वाहनों को जब्त किया गया. राज्य के वैशाली जिले में सबसे अधिक शराब पकड़ी गई तो पटना में सबसे अधिक गिरफ्तारियां की गईं. राज्य में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से अब तक लगभग 3 लाख लोग पकड़े जा चुके हैं और 700 से अधिक पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया है. 


बिहार में पूर्ण शराबबंदी पर महाराष्ट्र से ज्यादा हो रहा सेवन 


नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की मानें तो बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाद भी महाराष्ट्र से ज्यादा शराब का सेवन किया जा रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार के शहरी क्षेत्र में 15 साल से अधिक आयु के 14 प्रतिशत लोग शराब पीते हैं तो ग्रामीण इलाकों में यह 15.8 प्रतिशत है. वहीं शहरी क्षेत्र की 0.5 प्रतिशत महिलाएं शराब पीती हैं तो ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 0.4 प्रतिशत है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि शराब के खिलाफ जो विरोध प्रदर्शन हुआ था, वो गांव गांव शराब की भट्ठियों को बंद कराने को लेकर था और आश्चर्य की बात यह है कि वो कारोबाद आज भी चल रहा है. पूर्ण शराबबंदी का इन भट्ठियों पर कोई असर नहीं हुआ है. पुलिस की मदद से ये भट्ठियां गांवों में आज भी चल रही हैं और यही कारण है कि आए दिन जहरीली शराब से मौत का तांडव देखने को मिलता है. 


पहले ठेके से खरीदते थे शराब, अब होती है होम डिलीवरी 


पूर्ण शराबबंदी से पहले ठेके से शराब की खरीद होती थी. जिसको जरूरत होती थी वो ठेके पर जाता था और शराब खरीदकर उसका सेवन करता था. शराबबंदी का असर यह हुआ कि ठेके बंद हो गए पर शराब की होम डिलीवरी शुरू हो गई. आज भी बिहार में |ऑन डिमांड आपको राशन का सामान भले न मिले, आॅन डिमांड शराब आपके दरवाजे तक पहुंच जाएगी. ऐसा सिस्टम तस्करों ने विकसित कर रखा है. एक और खास बात यह है कि शराब की होम डिलीवरी के लिए महिलाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि उन पर कोई शक न कर पाए. 


शराब आज भी पीते हैं लोग, बस रुपये अधिक खर्च करते हैं 


शराबबंदी से शराब की आवक या सप्लाई पर वैधानिक रूप से भले ही असर पड़ा हो, उपलब्धता में कोई फर्क नहीं पड़ा है. हां, कीमतें जरूर बढ़ गई हैं. पहले एक क्वार्टर शराब की बोतल 100 रुपये में मिलती थी तो अब उसी के लिए 400-500 रुपये खर्च करने होते हैं. हाफ के लिए जहां पहले 200-400 खर्च करने होते थे अब 750-1250 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. खंभा यानी पूरी की पूरी बोतल के लिए आपको अभी 1200 से 1500 रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं. ये कीमतें बेसिक ब्रांड की बताई जा रही हैं. अगर आपको प्रीमियम रेंज की दारू पीनी है तो उसके लिए दाम भी प्रीमियम चुकाने पड़ेंगे. एक बात और, होम डिलीवरी का खर्च भी आपको खुद उठाना होता है. 


शराबबंदी से होटल और पर्यटन उद्योग को नुकसार 


शराबबंदी से बिहार के पर्यटन और होटल उद्योग को भी बहुत नुकसान हुआ है. हालांकि सरकार की ओर से हमेशा इसे नकारा जाता रहा है. बिहार में जो भी पर्यटन स्थल हैं, उनके आसपास के लोगों का कहना है कि शराबबंदी से पहले अच्छे खासे पर्यटक आते थे और होटलों में ठहरते थे. अब शराबबंदी के बाद से होटल उद्योग को खासा नुकसान हुआ है. हालांकि बिहार सरकार की रिपोर्ट बताती है कि 2015 में जहां 2,89,52,855 पर्यटक आए, वहीं 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 350,83,179 पर्यटकों ने बिहार में आकर सैर किया. 


शराबबंदी से हिल गई बिहार की अर्थव्यवस्था


शराबबंदी से बिहार के राजस्व को भी भारी नुकसान हुआ है. शराबबंदी से पहले बिहार की अर्थव्यवस्था को 93 प्रतिशत राजस्व उत्पाद शुल्क से मिलता था, जिसमें बिक्री कर, निबंधन शुल्क, माल एवं यात्री कर और वाहन कर शामिल हैं. 2010-11 में बिहार को उत्पाद शुल्क के रूप में 1523 करोड़ रुपये, 2011-12 में 1981 करोड़ रुपये, 2012-13 में 2430 करोड़ रुपये, 2013-14 में 3217 करोड़ रुपये, 2014-15 में 3217 करोड़ रुपये, 2015-16 में 3142 करोड़ रुपये, 2016-17 में केवल 30 करोड़ राजस्व की प्राप्ति हुई. इस तरह आप देख सकते हैं कि 2016-17 में कैसे बिहार के उत्पाद शुल्क वसूली में जबर्दस्त तरीके से गिरावट दर्ज की गई. इसी साल शराबबंदी लागू की गई थी. 


बिहार में शराबबंदी से पड़ोसी राज्यों की चांदी 


शराबबंदी से जहां बिहार के राजस्व में भारी गिरावट दर्ज की गई तो वहीं दूसरी तरफ पड़ोसी राज्यों की चांदी हो गई. जैसे पश्चिम बंगाल, झारखंड और उत्तर प्रदेश के राजस्व में इजाफा हुआ है. इन राज्यों का 2017-18 का राजस्व अपने अधिकतम स्तर को छू गया था. बिहार में शराबबंदी के बाद झारखंड का कोडरमा, जिसे खनिज भंडार के लिए जाना जाता था, उसे बिहार के लोगों ने गोवा मान लिया. शराबबंदी से झारखंड के कोडरमा सहित बोकारो, हजारीबाग, धनबाद और रामगढ़ में शराब की बिक्री में बहुत उछाल देखने को मिली. 


शराबबंदी से नेपाल तो मालामाल हो गया 


बिहार की शराबबंदी से तो नेपाल की किस्मत ही चमक गई. राज्य के पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सहरसा आदि जिले नेपाल से सटे हुए हैं. नेपाल के बारे में कहते हैं, सूरज अस्त नेपाल मस्त. बिहार में शराबबंदी का प्रभाव यह हुआ कि वहां सीमावर्ती इलाकों में जबर्दस्त तरीके से शराब के ठेके खुल गए. बिहार के लोग नेपाल में जाकर शराब पीने लगे. इससे जहां बिहार का राजस्व घट गया, वहीं नेपाल के लोग आज भी मालामाल हो रहे हैं. 


अदालतों पर बढ़ा मुकदमों का बोझ 


सितंबर 2016 में पटना हाई कोर्ट ने शराबबंदी कानून के तहत मिली सजा को गैरकानूनी करार दिया था. हालांकि सीएम नीतीश कुमार ने उसी साल गांधी जयंती पर नया कानून लाकर फिर उस कानून को जिंदा कर दिया था. इसका असर यह हुआ कि शराबबंदी कानून के उल्लंघन के ढाई लाख से अधिक मामले न्यायपालिका पर बोझ साबित हो रहे हैं. शराबबंदी के केसों की सुनवाई के लिए राज्य के सभी जिलों में लोक अभियोजक बनाए गए हैं. उन्हें 2200 रुपये हर सुनवाई के लिए भुगतान किए जाते हैं. 


शराबबंदी के कुछ अच्छे परिणाम भी 


ऐसा नहीं है कि शराबबंदी से कोई फायदा नहीं हुआ. फायदे हुए हैं और उन्हें नकारा नहीं जा सकता. पश्चिम चंपारण, समस्तीपुर, कैमूर, पूर्णिया के करीब 20 गांवों पर किए गए एक अध्ययन में यह पता चला है कि शराबबंदी से महिलाओं के खिलाफ घरेलु हिंसा, यौन हिंसा और आर्थिक हिंसा में कमी आई है. शराबबंदी के बाद परिवार के खान-पान पर खर्च पहले 1005 रुपये से बढ़कर 1331 रुपये हो गया. दूध से बने उत्पादो की खपत 17.5 प्रतिशत बढ़ी है तो रेप, हत्या और सड़क हादसे की घटनाओं में भी गिरावट दर्ज की गई है.


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