Patna: बिहार (Bihar) में जातीय जनगणना पर सियासत तेज हो गई है. बिहार में जातीय जनगणना को लेकर राजनीतिक रस्साकशी का सिलसिला फिर शुरू हो गया है. सरकार में शामिल बीजेपी इसके खिलाफ है, तो RJD और JDU जैसे दल जातीय जनगणना की वकालत कर रहे हैं. बीजेपी पर वादे से मुकरने का आरोप लग रहा है. संभव है आनेवाले दिनों में इस मुद्दे को लेकर और राजनीतिक तल्खी देखने को मिलेगी.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

दरअसल, दशकों से जातीय जनगणना की मांग भारत में हो रही है. JDU और RJD भी चाहती है कि, 2021 में जातीय जनगणना हो. इस मुद्दे पर तेजस्वी ने साफ शब्दों में कहा है कि जातीय जनगणना के लिए हमारे दल ने लंबी लड़ाई लड़ी है और लड़ते रहेंगे. यह देश की बहुसंख्यक यानी लगभग 65 फीसदी से अधिक वंचित, उपेक्षित और प्रताड़ित वर्गों के वर्तमान और भविष्य से जुड़ा मुद्दा है. लेकिन केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में लिखित जवाब देकर साफ कर दिया है कि भारत में इस बार जातीय जनगणना नहीं होगी. सिर्फ SC-ST की गिनती होगी.


जबकि, बिहार विधानसभा से दो-दो बार प्रस्ताव पारित कर जातीय जनगणना कराने की मांग हुई. बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने जातीय जनगणना कराने का दबाव बनाने के लिए राज्य की विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेज दिया, तो उत्तर प्रदेश विधानसभा में भी जातीय जनगणना की गूंज सुनाई दी. केंद्र सरकार की ओर से उस समय इस पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया. जिसके बाद मानसून सत्र में इसे खारिज कर दिया गया.


ये भी पढ़ें: कुर्सी का मोह साजिश पर पड़ा भारी! घर के 'भेदी' के साथ सत्ता में क्यों है JDU?


वैसे इस मुद्दे पर BJP बिहार में अकेली पड़ती नजर आ रही है. पार्टी की तरफ से डैमेज कंट्रोल किया जा रहा है और पिछली सरकारों के फैसले का बीजेपी लगातार हवाला दे रही है. बिहार में अगर जातीय समीकरण की बात करें,तो इसका कोई आधिकारिक आकड़ा नहीं है, लेकिन वोटों के हिसाब से देखें तो अगड़ी जातियां 20 फीसदी के आसपास हैं. जिनमें राजपूत सबसे ज्यादा हैं. तो मुस्लिम 16 फीसदी के आसपास हैं. जबकि यादवों की संख्या 15 फीसदी. कोरी 8 फीसदी, कुर्मी 4 फीसदी, मुसहर 5 फीसदी हैं. जनजातियों की आबादी राज्य में 15.7 फीसदी है.


 



'