बिहार के इस विश्वविद्यालय में 35 कर्मचारियों के वेतन पर रोक, हुआ चौंकाने वाला खुलासा
पहले अरबी एवं फारसी विवि का बजट 25 करोड़ का था लेकिन अब इसका सालाना बजट 18 करोड़ ही है यानि बजट में 7 करोड़ की कटौती उच्च शिक्षा विभाग की तरफ से कर दी गई.
पटना: बिहार के सरकारी विश्वविद्यालयों पर वित्तीय धांधली के गंभीर आरोप लग रहे हैं. कई बार इन आरोपों को सही भी पाया गया है बावजूद बिहार के विश्वविद्यालय सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं. ताजा मामला पटना के मीठापुर स्थित मौलाना मजहरूल हक अरबी एवं फारसी विश्वविद्यालय का है.
शर्तों का नहीं किया गया पालन
दरअसल, साल 2014 में यहां 40 कर्मचारियों को बहाल किया गया. इन्हें वेतन शिक्षा विभाग से मिलने लगा लेकिन बाद में 40 में 35 कर्मचारियों का वेतन शिक्षा विभाग ने रोक दिया. शिक्षा विभाग को लगा कि जिन शर्तों के साथ इनकी बहाली होनी चाहिए थी, उन शर्तों का पालन नहीं किया लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा एक तरफ शिक्षा विभाग ने जिन नियुक्तियों को संदिग्ध मान रहा है दूसरी ओर ऐसे 35 कर्मचारियों को लगातार वेतन मिल रहा है.
इस मामले पर विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रोफेसर ईद मोहम्मद भी आश्वास्त नहीं दिखते हैं. ईद मोहम्मद के मुताबिक, यूनिवर्सिटी की तरफ से कई बार सरकार को लिखा गया है. यूनिवर्सिटी ने मांग की है कि संदिग्ध बहाली के मामले में विभाग ठोस फैसला ले.
दरअसल, पहले अरबी एवं फारसी विवि का बजट 25 करोड़ का था लेकिन अब इसका सालाना बजट 18 करोड़ ही है यानि बजट में 7 करोड़ की कटौती उच्च शिक्षा विभाग की तरफ से कर दी गई. बजट कटौती की एक वजह 35 बहालियों का संदिग्ध माना जाना भी है. बिहार में विश्वविद्यालयों को वेतन, पेंशन देने का काम उच्च शिक्षा विभाग का होता है. लिहाजा हमने उच्च शिक्षा विभाग से ही संपर्क साधा. उच्च शिक्षा विभाग की निदेशक प्रोफेसर रेखा कुमारी भी इन 35 नियुक्तियों को पहली नजर में संदिग्ध मानती है.
35 बहालियों को संदिग्ध माना गया
साल 2014 में मौलाना मजहरूल हक अरबी एवं फारसी विश्वविद्यालय में 40 कर्मचारी बहाल होते हैं. बहाली के बाद इन्हें वेतन मिलना शुरू हो जाता है लेकिन उच्च शिक्षा विभाग की बजट समीक्षा बैठक में 35 बहालियों को संदिग्ध माना गया, जिसके बाद 35 कर्मचारियों के वेतन को शिक्षा विभाग की तरफ से रोक दिया गया.
शिक्षा विभाग को जांच में पता चला कि नियुक्ति में तयशुदा मापदंडों का पालन नहीं हुआ है. हालांकि, 35 कर्मचारियों को आंतरिक स्रोत से वेतन मिल रहा है. ऐसे में सवाल ये है कि क्यों नहीं 35 कर्मचारियों का वेतन रोक दिया जाए?
नियुक्ति संदिग्ध है लेकिन वेतन मिलना जारी है. दरअसल विश्वविद्यालयों के मामले में शिक्षा विभाग के पास विकल्प कम बचते हैं. लिहाजा इसका बेजा फायदा बिहार के विश्वविद्यालयों में उठाया जा रहा है. शिक्षा विभाग अपनी तरफ से अपनी हैसियत के मुताबिक कार्रवाई करता है लेकिन आगे वो भी बेबस नजर आता है. बिहार के विश्वविद्यालयों में जिस तरह धांधली की बात सामने आ रही है उस पर अब लगाम लगाने का वक्त आ चुका है.