Patna: सीबीएसई, आईसीएसई बोर्ड के रिजल्ट घोषित होने के बाद विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में गहमागहमी बनी है. इंटर और स्नातक में दाखिले के लिए दौड़ शुरू हो गई है. लेकिन बिहार के टॉप स्टूडेंट सूबे में नहीं बल्कि बाहर जाकर पढ़ाई करना चाहते हैं. जिस तरह से प्रतिभा का पलायन हो रहा है. उससे बिहार में शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक बार फिर सवाल खड़े हो रहे हैं. 


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बिहार के कॉलेजों को टॉपर्स की ना


सीबीएसई या आईसीएसई बोर्ड के टॉपर्स की पसंद दिल्ली यूनिवर्सिटी, जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी या फिर जामिया मिलिया इस्लामिया हैं.  छात्र इन्ही जगहों को प्राथमिकता दे रहे हैं. बिहार के कॉलेज और संस्थान उनकी लिस्ट से गायब दिखाई देते हैं. दरअसल छात्रों का मानना है कि बिहार में पढ़ाई के लिए बेहतर माहौल नहीं है. तमाम सरकारी विश्वविद्यालयों के सेशन देरी से चल रहे हैं इसलिए राज्य में पढ़ाई कर उन्हें अपना कीमती साल बर्बाद नहीं करना है. 


शिक्षा को मिला बजट का 20 फीसदी 


ये स्थिति उस वक्त है जब बिहार में शिक्षा का बजट 40 हजार करोड़ रूपये यानि सूबे के बजट का 20 फीसदी है. ऐसे में सवाल यही उठता है कि क्या विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की शैक्षणिक स्थिति इतनी बुरी है. जो स्थानीय छात्र बाहर का रूख कर रहे हैं. सवाल ये भी है कि ऐसे में क्या ये मान लिया जाएं कि बिहार के शैक्षणिक संस्थानों में औसत दर्जे के ही छात्र पढ़ाई कर रहे. 


'सिर्फ डिग्री देने वाले संस्थान' 


इस मामले में पटना कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर अशोक कुमार की अपनी दलील है. अशोक कुमार के मुताबिक कॉलेजों की स्थिति पहले से बेहतर नहीं है. पटना कॉलेज की गिनती देशभर के ऐसे कॉलेजों में होती है. जहां आर्ट्स की बेहतर पढ़ाई होती रही है. शिक्षाविद् नवल किशोर चौधरी की भी इसपर अपनी राय है. उनके मुताबिक बिहार के विश्वविद्यालय और कॉलेज सिर्फ डिग्री देने वाले संस्थान रह गए हैं. जब तक सरकार की मानसिकता नहीं बदलेगी कुछ नहीं बदलने वाला. 


शिक्षा, आर्थिक तंत्र पर भी खतरा!


उधर, इस सबका असर सिर्फ शिक्षा जगत पर ही नहीं बल्कि बिहार के विकास, आर्थिक तंत्र पर भी पड़ता दिखता है क्योंकि अगर सर्वश्रेष्ठ छात्र बिहार से पलायन कर जाता हैं तो फिर सूबे के हिस्से में क्या रह जाता है ?


(रेनू-न्यूज़ डेस्क)