पटना : भारी बारिश और उसके बाद बाढ़ का भारत से बहुत पुराना रिश्ता रहा है. भारत के कई राज्य भारी बारिश के बाद बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं. अगर बाढ़ की बात की जाये तो सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य बिहार है, हर साल बाढ़ का कहर यहां देखने को मिलता है. करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुकसान होता है, कई मासूम लोग मारे जाते हैं. जिस पर सरकारों द्वारा मुआवजे का मरहम लगाया जाता है और फिर अगले साल का इंतजार शुरू होता है कि फिर बाढ़ आएगी फिर सरकारें मुआवजे का मरहम लगाएंगी लेकिन बाढ़ के स्थायी समाधान के लिए सरकारें काम करते हुए नहीं दिखती हैं.


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बाढ़ में डूबता बिहार 
बिहार का लगभग 73.06% हिस्सा बाढ़ की मार झेलने को मज़बूर रहता है. भारत की कुल बाढ़ प्रभावित आबादी की बात करें तो केवल बिहार से 22.1% हिस्सा बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है. बाढ़ का सबसे ज्यादा प्रभाव उत्तरी बिहार पर होता है. नेपाल की सीमा से जुड़े होने के कारण बिहार को बाढ़ का ज्यादा प्रकोप झेलना पड़ता है. सरकार ने 1979 से बाढ़ के आंकड़े देना शुरू किया था. तब से देखा जाये तो बाढ़ के कारण लगभग 10 हजार लोगों को अपनी जिंदगी खोनी पड़ी है. औसतन लगभग 100 करोड़ से ज्यादा का नुकसान होता है. आंकड़े पुराने हैं लेकिन हर साल का यही हाल है. सरकारें रोड मैप तैयार करती हैं. करोड़ों रुपये खर्च करके विभाग बनाये जाते हैं, लेकिन हर साल की कहानी जस-की-तस बनी हुई है. सरकारों को इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है और गंभीर रूप से इस पर काम करने की जरूरत है. 


करोड़ों रुपये का नुकसान, लाखों लोगों को जान का जोखिम 
बाढ़ से बर्बादी का अलाम ये है कि सरकार को करोड़ों रुपये का फंड का आवंटन बाढ़ राहत कोष के नाम पर करना पड़ता है. हर साल लगभग 19 जिलों के 136 प्रखंडों के लगभग 4.5 हजार गांव बाढ़ से प्रभावित होते हैं. जिसमें औसतन 130 करोड़ से ज्यादा निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचता है. जिसमें लगभग 1 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं. औसतन 350 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है. 


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बिहार में बाढ़ हर साल आएगी लेकिन अगर सरकार इस पर कुछ ठोस कदम उठाये तो शायद हर साल होने वाली जनहानि और धनहानि को कम किया जा सकता है.