Emergency in India: राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर के साथ 25 से 26 जून की रात को आपातकाल लगा दिया गया. रेडियो के जरिए पूरे देश को इंदिरा ने अपनी आवाज में बताया कि देशभर में आपातकाल लागू किया गया है. हालांकि तब साथ ही यह घोषणा की गई कि सामान्य लोगों को इससे डरने या घबराने की जरूरत नहीं है. बता दें कि इसके बाद सरकार की तरफ से दमनकारी नीति चालू हो गई, सबसे पहले सरकार का विरोध कर रहे लोगों को सरकारी तंत्र का कोपभाजन बनना पड़ा. इसके बाद मीडिया पर सरकार ने अंकुश लगा दिया. 


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इसके साथ ही मीसा और डीआईआर जैसे दमनकारी कानून के जरिए पुलिस और अन्य एजेंसियों को दमन का असीमित अधिकार दे दिया गया. देशभर में सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा उबल रहा था और सरकार अपने विरोधियों के दमन के काम में लगी हुई थी. इंदिरा के इस आपातकाल को और भयावह संजय गांधी के कुछ फैसलों ने बना दिया. 


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संजय गांधी ने इसी दौरान देश को विकास के पथ पर आगे ले जाने के नाम पर पांच सूत्रीय एजेंडे को लागू करने का फैसला कर लिया. इसमें परिवार नियोजन(नसबंदी) से लेकर दहेज प्रथा का खात्म, वयस्कों की शिक्षा, पेड़-पौधों का लगाया जाना, जाति प्रथा का खात्मा जैसी बात को  रखा गया. 


इस सब में दो चीजों पर संजय गांधी का सबसे ज्यादा जोर रहा. पहला तो सौंदर्यीकरण के नाम पर झुग्गियों को उजाड़ा जाने लगा लोगों के आसियाने उजाड़ दिए गए. तुर्कमान गेट के पास की झुग्गियों को बुलडोजर से ढहा दिया गया. दिल्ली में ऐसा ऑपरेशान कई जगह चला और बेघर लोगों को दिल्ली की सीमा से बाहर धकेल दिया गया. 


वहीं संजय गांधी पूरे देश में बढ़ती जनसंख्या को विकास में बाधक मान रहे थे उनका गुस्सा फूटा तो ऐसा कि लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कराई जाने लगी. आपातकाल के 21 में से 19 महीने के दौरान ही देशभर में 83 लाख से ज्यादा लोगों की नसबंदी जबरन करा दी गई. पुलिस और अन्य एजेंसी के लोग भी जबरन नसबंदी के खेल में शामिल हो गए. फिर क्या था कोहराम मचा और खूब  विरोध भी हुआ लेकिन सरकार की दमनकारी नीति को इससे कोई अंतर नहीं पड़ा. आपको बता दें कि इंदिरा को लगता था कि देश की जनता को एक झटके वाली चिकित्सा यानी शॉक ट्रीटमेंट की जरूरत है जिसकी योजना 6 महीने पहले ही बन चुकी थी लेकिन इंदिरा के चुनाव में जीत के रद्द होने के फैसले के बाद इस योजना को अंजाम तक पहुंचाया गया.