इमरजेंसी के वो काले दिन: जब इंदिरा गांधी ने टाइप करा लिया था अपना इस्तीफा, फिर क्यों लिया इतना बड़ा फैसला?
25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने आज से ठीक 48 साल पहले अचानक देश में आपातकाल की घोषणा कर दी. इसकी घोषणा आकाशवाणी के जरिए हुई और फिर सबसे पहले इंदिरा ने प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी.
Emergency in India: 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने आज से ठीक 48 साल पहले अचानक देश में आपातकाल की घोषणा कर दी. इसकी घोषणा आकाशवाणी के जरिए हुई और फिर सबसे पहले इंदिरा ने प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी. बता दें कि इसे लोकतंत्र का काला अध्याय कहकर संबोधित किया गया और इसे इसकी संज्ञा दी लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने जिन्होंने इंदिरा की इस इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया. वह इंदिरा की नीतियों के खिलाफ छात्रों के समूह को लेकर सड़कों पर उतर आए थे.आपको बता दें कि इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाइकोर्ट के एक फैसले जिसमें उनके चुनाव में धांधली के आरोप को सही पाया गया था और उन पर 6 साल तक किसी भी पद पर बने रहने का अधिकार नहीं होने की बात कही गई थी उसके खिलाफ उठाया गया एक कदम था.
इंदिरा गांधी ने जब 25-26 जून की रात को भारत में इस दमनकारी फैसले का ऐलान किया तो लोकतंत्र मानो शर्मसार हो उठा हो. 21 महीने दमन की वह काली छाया हिंदुस्तान की आवाम को झेलनी पड़ी. छात्र सड़कों पर थे. प्रेस पर ताला लगा हुआ था. बोलने की आजादी छीन ली गई थी. विरोध के स्वर उठने से पहले दबा दिए जा रहे थे. भारत की जेलें विरोधियों से अटी पड़ी थी. यह सब नतीजा था इंदिरा गांधी के एक गलत फैसले का. बता दें कि इस सब के बीच इंदिरा गांधी क बेटे संजय गांधी ने नसबंदी भी चला दी.
मतलब साफ था कि अपनी सत्ता जाने का डर इंदिरा गांधी को सता रहा था और कोर्ट के फैसले को लेकर वह असहज महसूस कर रही थीं. उनका चुनाव अदालत के फैसले की वजह से रद्द हो चुका था. वहीं इस सब के बीच इंदिरा के तब के निजी सचिव रहे आर के धवन ने बताया था कि वह इस्तीफा देने को तैयारी थीं तो फिर आखिर उन्होंने इससे उलट आपातकाल का फैसला क्यों लिया और उनका मन इस्तीफे के फैसले को लेकर कैसे बदल गया.
कहते हैं कि 12 जून 1975 को जैसे-जैसे कोर्ट के द्वारा इंदिरा के खिलाफ 285 पन्नों का फैसला पढ़ा जा रहा था देश की सियासत में भी उबाल देखने को मिल रहा था. तब पीएम का आवास एक सफदरगंज रोड हाता था जहां करीबियों की भीड़ जमा होने लगी थी. ऐसे में इंदिरा के तब के निजी सचिव रहे आर के धवन ने यह भी बताया था कि तब पश्चिम बंगाल के सीएम रहे सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा को अपने द्वारा लिखे 8 जनवरी 1975 के खत की याद दिलाई जिसमें उन्होंने देश में आपातकाल लगाने का सुझाव दिया था और उनपर खूब दवाब भी बढ़ाया. इस सब के बीच इंदिरा गांधी ने अपना त्यागपत्र भी टाइप करवा लिया था लेकिन उसपर वह हस्ताक्षर कभी नहीं कर पाईं. उनके इस्तीफे के फैसले को बदले को लेकर आर के धवन ने साक्षात्कार में यह भी बताया था कि उनसे उनके पूरे कैबिनेट ने इस्तीफा नहीं देने की बात कही थी. बी.जेड. खासरू ने अपनी किताब में आपातकाल को लेकर जो लिखा उसकी मानें तो इंदिरा ने अपना उत्तराधिकारी चुनने के लिए कांग्रेस की बैठक बुलाई. जिसमें जगजीवन राम ने उनका विरोध किया, वह चाहते थे कि इस तरह चुनाव ना हो बल्कि उत्तराधिकारी के चुनाव के लिए वोटिंग हो. बैठक में कोई हल नहीं निकला. इसके बाद इंदिरा का मन बदल गया.