Patna: आरसीपी सिंह (RCP Singh) को जेडीयू कोटे से केंद्र में मंत्री बनाने के बाद से बिहार की राजनीति में सियासी हलचल तेज हो गई है. पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि कुशवाहा ने सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पर हमला बोलते हुए कहा कि 'आरसीपी सिंह को मंत्री बनाकर सीएम नीतीश कुमार बिहार को कुर्मिस्तान बनाना चाहते हैं. 'साथ ही उन्होंने कहा की उनके इस फैसले से दूसरी जातियों का बहुत अपमान हुआ है.


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नागमणि के इन आरोपों को लेकर महागठबंधन में शामिल दलों के प्रवक्ताओं ने जेडीयू (JDU) पर जोरदार हमला बोला हैं, तो वहीं सत्ता पक्ष अपने सीएम का बचाव कर रही है. आईए जानते हैं कि नागमणि के कुर्मीस्तान वाली बयान  में कितनी सच्चाई है.


दरअसल, बीते विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने कुल 12 उम्मीदवार कुर्मी जाति से बनाए थे जिसमें से 7 उम्मीदवार चुनाव जीते और पांच उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा. 2015 के विधानसभा चुनाव में 16 कुर्मी जाति के उम्मीदवार विधायक बने थे लेकिन इस बार संख्या काफी घट गई है. जबकि बीजेपी (BJP) ने दो कुर्मी जाति के लोगों को टिकट दिया था. जिनमें से दोनों ने अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र से जीत दर्ज की.


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सीएम नीतीश के गृह जिले से लागातार 7वीं बार विधायक बनने वाले ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार जो कुर्मी जाति से आते हैं, उनका दबदबा पूरी तरह से सरकार में कायम रहता है. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्रीमंडल में जगह देकर एक बार फिर कुर्मी जाति को आगे किया गया है, जबकि सीएम के बेहद करीबी ललन सिंह (Lalan Singh) को मंत्री पद पाने की लालसा धरा-धरा ही रह गई. सीएम के इस फैसले से ललन सिंह काफी नाराज चल रहे हैं. जिससे पार्टी के अंदर आग सुलग सकती है.
 
वहीं, अफसर पोस्टिंग मामले में भी नेता प्रतिपक्ष पहले ही सीएम और आरसीपी सिंह के उपर जाति विशेष को ध्यान में रखते हुए तबादले करने का आरोप लगा चुके हैं. उन्होंने ने तो यहां तक कहा था कि सीएम नीतीश कुमार कुर्मी जाति को ज्यादा से ज्यादा बड़े पोस्ट पर तरजीह देते हैं. जब आर सीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था 
उस वक्त भी नीतीश कुमार पर जातिगत राजनीति करने का आरोप लगा था. यहां तक कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार के ऐसे कई विभाग हैं जहां ज्यादातर कुर्मी जाति के लोगों की ही बहाली की जाती है.


आखिर सीएम नीतीश के लिए क्यों अहम है कुर्मी सामाज
बिहार में कुर्मी समाज की जनसंख्या चार प्रतिशत है और सीएम नीतीश खुद कुर्मी जाति से आते हैं. उनपर हमेशा से ये आरोप लगता रहा है कि सीएम ने कुर्मी जाति को हर क्षेत्र में तरजीह देने का काम किया है. मात्र चार प्रतिशत जनसंख्या के बल पर सीएम नीतीश कुमार बिहार के सीएम की कुर्सी पर 16 सालों से विराजमान हैं.


बता दें कि 1994 में सीएम नीतीश कुमार के राजनैतिक काल का आरंभ भी गांधी मैदान में आयोजित कुर्मी चेतना रैली से हुआ था. तब इस रैली को लव-कुश एकता का प्रतिक बताया गया था. इसका मतलब लव को कुर्मी का प्रतिक तो वहीं कुश को कुशवाहा का प्रतिक कहा गया. लेकिन गत विधानसभा चुनाव में कई जगहों पर ऐसा देखने को मिला की रैलियों के दौरान भीड़ों से ये नारा गुंजता रहा था 'गर्व से कहो हम कुर्मी हैं.' लेकिन सीएम नीतीश कुमार  इन शब्दों से बचते दिखे.


लव-कुश समीकरण
नीतीश कुमार ने इसी नारे के सहारे रेल मंत्री रहते हुए 2003 में बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रुप में उपेंद्र कुशवाहा को स्थापित किया और प्रदेश में लव-कुश यानी कोईरी-कुर्मी समीकरण को मजबूती प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई. इस समीकरण से नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ गठबंधन करना मुनासिब समझा और उनकी ये सोच सफल रही.  2005 में इसी फार्मूले के जरिए नीतीश कुमार ने 88 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए बीजेपी (55) के साथ सत्ता की कमान संभाली.


इसी समीकरण के आधार पर एक बार फिर 2010 में नीतीश कुमार ने अपने नेतृत्व में एनडीए गठबंधन को विशाल जीत दिलाई और लव-कुश फार्मूले के सहारे खुद को सत्ता के करीब रखा. लेकिन जहां इस समीकरण में लव को बेहतर लाभ मिलता दिखाई दिया तो वहीं कुश को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा. कुशवाहा सामाज के लोगों में इस बात की भारी नाराजगी देखी गई की मात्र 2.5 प्रतिशत संख्या वाली जाति 11 प्रतिशतों वाली जातियों को वश में कर सीएम की कुर्सी पर विराजमान हैं. 1994 के कुर्मी चेतना रैली से लेकर 2005 तक कुर्मी सामाज ने अपना प्रभुत्व बिहार की सत्ता पर जमा लिया तो वहीं कुश समाज पिछ्लगू बनकर रह गया.


कुर्मी में समाई कई उपजातियां
कुर्मी जाति अवधिया, समसवार, जसवार जैसी कई उपजातियायों में विभाजित है. सीएम नीतीश कुमार खुद अवधिया हैं. गौरतलब है कि अवधिया जाति संख्या में कम है लेकिन नीतीश के शासन काल में सबसे ज्यादा लाभ पाने वाली उपजातियां है. एक ओर जसवार कुर्मी बांका, भागलपुर, खगड़िया के विधानसभा क्षेत्रों के सीटों पर अपना दबदबा बनाई हुई है, तो वहीं समसवार बिहारशरीफ, नालंदा में काफी मजबूत स्थिति में हैं. इस जाति के साथ धानुक को साधने की कोशिश जारी है. क्योंकि धानुक के वंशज भी कुर्मी जाति के ही माने जाते हैं. लेकिन ये अति पिछड़ा वर्ग में शामिल हैं और इस जाति की पकड़ लखीसराय, शेखपुरा और बाढ़ जैसे क्षेत्रों में काफी है.