पटनाः Importance of Tilak: सनातन परंपरा और हिंदू धर्म में तिलक लगाना संस्कृति की पहली पहचान तो है ही, साथ ही यह हमारे जीवन में सौभाग्य लेकर आता है. तिलक को मनोवैज्ञानिक तौर पर भावनात्मक संबल से जोड़कर देखा जाता है. तिलक किसी को दिए जाने वाले आशीर्वाद का प्रत्यक्ष और भौतिक स्वरूप है. यानी जब हम पूजा के दौरान अपने माथे पर तिलक लगाते हैं, या फिर पुरोहित हमें तिलक करते हैं तो इसका अर्थ है कि ईश्वर का वरद हस्त सीधे तौर पर हमारे सिर पर आ रहा है. इसे आशीर्वाद दिए जाने के तौर पर लगाया जाता है.


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पराक्रम और विजय का प्रतीक है तिलक


सनातन परंपरा में तिलक का लगना, वीरता और विजय का आशीष का रूप है, जिसे सीधे तौर पर ईश्वर का चिह्न माना जाता है. जिस व्यक्ति के माथे पर तिलक लगा होता है तो उस पर एक तरीके भगवान की साक्षात छाप लग जाती है. तिलक को प्रेम और सम्मान,पराक्रम और विजय का भी प्रतीक माना गया है.यही वजह है कि जब भी कोई शुभ कार्य के लिए घर से बाहर जाता है, तो उसके काम के पूरा होने की कामना करते हुए, घर की महिलाएं पुरुषों का तिलक करती हैं.


तंत्रिकाओं को करता है प्रभावित


तिलक लगाने का वैज्ञानिक आधार भी है. हमारे मस्तक के बीच में आज्ञाचक्र होता है. यह स्थान वह है, जहां माथे के बीच दोनों भौंहें आकर मिलती हैं. इसे अग्नि चक्र का स्थान भी कहते हैं. तिलक लगाने पर जब माथे के ठीक बीच की नसों पर हल्का दबाव पड़ता है तो इससे पीयूष ग्रंथि सक्रिय हो जाती है. इसके अलावा तंत्रिका तंत्र पर भी सकारात्मक असर पड़ता है.तिलक हमारी स्मरण शक्ति को भी प्रबल करता है और बौद्धिक, तार्किक क्षमता पर भी असर डालता है. तिलक से बल और बुद्धि में भी वृद्धि होती है.


जरूर करें अक्षत का प्रयोग


तिलक के साथ चावल का प्रयोग भी किया जाता है. चावल को अक्षत भी कहते हैं. तिलक लगने के बाद उस पर चावल के दाने लगाने और अक्षत वारना, उस तिलक को और ईश्वरीय आशीष को अखंडित कर देता है. जिसका कभी क्षय न हो सके वह अक्षत है. ऐसे में तिलक हर मुश्किल को हरकर सफलता को तय कर देता है. इससे व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और बुरी शक्तियां भी उससे दूर रहती हैं.


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