Kemdrum Yog: ज्योतिष शास्त्र की मानें तो किसी भी व्यक्ति की जिंदगी यानी उसके जीवन का भूत वर्तमान या भविष्य कैसा होगा यहा उसकी कुंडली के ग्रहों की स्थिति पर ही निर्भर करता है. अगर ग्रहों की स्थिति अच्छी और कुंडली में उनकी पोजिशन भी बेहतर हो तो ऐसे जातक को जीवन में कभी किसी तरह की परेशानी नहीं होती है लेकिन दूसरी तरफ ग्रह कमजोर या मलिन अवस्था में हों और वह ऐसे भाव में पड़ा हो जिसके स्वामी के साथ उसकी नहीं बनती हो तो ऐसे जातक के जीवन में परेशानी के अलावा और कुछ नहीं मिलता. दुर्भाग्य उस जातक का कभी पीछा नहीं छोड़ता. कुंडली में कुल 5 ऐसे योग हैं जिसमें से कोई भी एक अगर जातक की कुंडली में बन रहा हो तो वह पूरे जीवन कष्ट में दरिद्रता की हालत में गुजारता है. 


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आपको बता दें कि ऐसा हीं एक अशुभ योग है केमद्रुम योग जो अगर किसी जातक की कुंडली में बन जाए तो उसकी जिंदगी तबाह हो जाती है. दुर्भाग्य उसका पीछा छोड़ने को तैयार नहीं होता.  
वैसे भी ज्योतिषी इस योग को दुर्भाग्य का प्रतीक ही मानते हैं. ऐसे में जिस जातक की कुंडली में ये योग बन रहा होता है उसकी जिंदगी परेशानियों का पिटारा बन जाती है. इसके बारे में कहा गया है कि...


“केमद्रुमे भवति पुत्र कलत्र हीनो देशान्तरे ब्रजती दुःखसमाभितप्तः.
ज्ञाति प्रमोद निरतो मुखरो कुचैलो नीचः भवति सदा भीतियुतश्चिरायु”


यह योग जातक की कुंडली में तब बनता है जब उसके कुंडली के चंद्रमी के स्थान से द्वादश और द्वितीय भाव में कोई ग्रह स्थित नहीं हो. इसके साथ ही चंद्रम की किसी अन्य ग्रह के साथ युति नहीं होने या चंद्रमा पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं होने पर भी ये योग बनता है. इस योग में राहु की गणना नहीं की जाती है. ऐसा जातक जीवन में संघर्ष और दरिद्रता को झेलता है. वह कम पढ़ा लिया या अशिक्षित भी होता है. इसके साथ ही वह व्यक्ति मूर्ख और निर्धन भी हो सकता है. ऐसे जातक को विवाह के बाद संतान पक्ष से भी उचित सुख नहीं मिलता है. ऐसे जातक जीवन बसर करने के लिए घर से दूर ही रहते हैं. वह ज्यादातर व्यर्थ की बातें करनेवाला होता है और उसके स्वभाव में कभी-कभी नीचता का भी भाव होता है. 


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मतलब साफ है कि चंद्र ग्रह के अशुभ प्रभाव ही केमद्रुम योग का कारण बनता है. ऐसे व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार भी हो सकता है. उसे हमेशा अज्ञात भय सताता रहता है. हालांकि यह योग हमेशा अशुभ फल नहीं देता है. इससे कुछ लक्षणों में शुभ फल की भी प्राप्ति होती है. अगर किसी जातक की कुंडली में किसी शुभ योग का स्थान नहीं बन रहा हो तो यह योग जातक को कुछ शुभ फल भी दे जाता है. यह योग व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने के साथ उसमें आत्मबल का विकास करता है और उसकी झंझावातों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है. 


इसके अशुभ प्रभावों को कम करने के भी कई उपाय हैं. 


इसके लिए शिव की पूजा का विधान है. ऐसे में शिव की पूजा और रुद्राभिषेक एक अंतराल पर करते रहना चाहिए. 


शनिवार की शाम को पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए. 


हाथ में सोमवार को चांदी का कड़ा धारण करना चाहिए. 


वहीं ऐसे जातक को एकादशी का व्रत भी रखना चाहिए.