कहानी हिंदुस्तान के सबसे बड़े ठग की! जिसने बेच दिया था ताजमहल, लाल किला और राष्ट्रपति भवन
एक ऐसा ठग जिसके भारत के साथ-साथ देश दुनिया में भी खूब चर्चे थे. ऐसा ठग जिसने ना जाने कितनी बार ताजमहल बेच दिया, लाल किला बेच दिया और तो और राष्ट्रपति भवन तक को भी नहीं छोड़ा.
Patna: 'नहीं-नहीं किसने कहा कि मैंने ठगी की है? मैंने लोगों को कभी डराया-धमकाया नहीं है कि मुझे पैसे दो. लोगों ने तो हाथ जोड़कर मुझे पैसे दिए कि 'श्रीमान' पैसे ले लीजिए और मैंने ले लिए. इसमें अपराध क्या है?'
यह बात एक ठग द्वारा पुलिस वालों को कही गई थी. एक ऐसा ठग जिसके भारत के साथ-साथ देश दुनिया में भी खूब चर्चे थे. ऐसा ठग जिसने ना जाने कितनी बार ताजमहल बेच दिया, लाल किला बेच दिया और तो और राष्ट्रपति भवन तक को भी नहीं छोड़ा.
कहते हैं कि हर इंसान के पास अपना एक हुनर होता है. कोई अच्छा गाता है, तो कोई अच्छा नाचता है, कोई एक बेहतरीन खिलाड़ी है तो कोई एक कलाबाज जादूगर, कोई समुंदर की गहराई को नाप सकता है, तो कोई आसमान से छलांग लगा देता है. लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि एक हुनरमंद चोर हो भी हो सकता है?
इसका जवाब शायद ही हां हो. लेकिन इस सवाल में सच्चाई छुपी है. बिहार के सीवान जिले के बंगरा गांव में सन 1912 में एक लड़का पैदा हुआ, जिसका नाम था मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ मिस्टर नटवरलाल. नटवरलाल पढ़ लिख कर वकील बना. लेकिन उसकी किस्मत की लकीरें इतनी सरल नहीं थी.
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कहने को तो उसके ठगी के किससे विदेशों तक में मशहूर हैं लेकिन इन किस्सों की शुरुआत नटवरलाल के पड़ोस से ही हुई. हुआ कुछ यूं कि एक बार मिथिलेश को उनके पड़ोसी ने बैंक ड्राफ्ट जमा करने के लिए भेजा. वहां जाकर मिथिलेश ने पड़ोसी के हस्ताक्षर को हूबहू कॉपी कर दिया. इसके बाद उसने कई दिनों तक अपने पड़ोसी के सिग्नेचर को कॉपी कर उनके खाते से पैसे निकाले. जब पड़ोसी को इस बात की भनक लगी, तब तक मिथिलेश अकाउंट से 1000 रुपए निकाल चुका था.
घटना की जानकारी पड़ोसी ने मिथिलेश के पिता को दी जिसके बाद पिता ने मिथिलेश को खूब मारा पीटा और गुस्से में मिथिलेश कोलकाता चला आया. वहां जाकर उसने कॉमर्स से ग्रेजुएशन की. बाद में सेठ केशवराम नाम के एक व्यक्ति ने मिथिलेश को अपने बेटे को पढ़ाने के लिए रख लिया. इस दौरान जब मिथिलेश ने सेठ से अपनी स्नातक की पढ़ाई के लिए पैसे उधार मांगे तो सेठ ने मिथिलेश को पैसे देने से इनकार कर दिया. सेठ के इनकार करने से मिथिलेश इतना चिढ़ गया कि उसने रुई की गांठ खरीदने के नाम पर सेठ से 4.5 लाख रुपए ठग लिए.
बस फिर क्या था ठगी का किस्सा यहीं से शुरू होता चला गया. बड़े-बड़े नेताओं के नाम पर भी मिथिलेश उर्फ नटवरलाल ने बड़ी-बड़ी चोरियों को अंजाम दिया.
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प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर ठगी
दिल्ली के कनाट प्लेस स्थित एक घड़ी की दुकान में सफेद कमीज और पैंट पहने एक बूढ़ा आदमी प्रवेश करता है और खुद का परिचय वित्तमंत्री नारायण दत्त तिवारी के पर्सनल स्टाफ डी.एन. तिवारी रूप में देकर दुकानदार से कहता है कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पार्टी के सभी वरिष्ठ लोगों को समर्थन के लिए दिल्ली बुलाया है. इस बैठक में शामिल होने वाले सभी लोगों को वो एक-एक घड़ी भेंट करना चाहते हैं. तो मुझे आपकी दुकान से 93 घड़ी चाहिए. दुकानदार भी एक साथ इतनी घड़ियों को बेचने के लालच से खुद को रोक नहीं पाया.
अगले दिन वो बूढ़ा आदमी घड़ी लेने दुकान पहुंचा. दुकानदार को घड़ी पैक करने की बात कह एक स्टाफ को अपने साथ लेकर वहां पहुंचा जहां प्रधानमंत्री से लेकर बड़े-बड़े अफसरों का ऑफिस होते हैं. वहां उसने स्टाफ को भुगतान के तौर पर 32,829 रुपए का बैंक ड्राफ्ट दे दिया. दो दिन बाद जब दुाकनदार ने ड्राफ्ट जमा किया तो बैंक वालों ने बताया कि वो ड्राफ्ट फर्जी है. इसके बाद दुकानदार को समझते हुए देर नहीं लगी कि वह शख्स कोई और नहीं बल्कि हिंदुस्तान का सबसे बड़ा ठग नटवरलाल था. इसके बाद कभी वित्तमंंत्री वीपी सिंह तो कभी यूपी के सीएम के नाम पर नटवर लाल अलग-अलग शहर में दुकानदारों का चूना लगाता रहा.
बेच डाला राष्ट्रपति भवन, लाल किला और ताज महल
एक बार नटवरलाल के पड़ोसी गांव में उस समय के राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद आए हुए थे. जब नटवरलाल को डा. राजेंद्र प्रसाद से मिलने का मौका मिला तो उसने उनके सामने भी अपने हुनर का प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति के भी हुबहू हस्ताक्षर करके सबको हैरान कर दिया.
इस दौरान नटवरलाल ने राष्ट्रपति से कहा था कि 'यदि आप एक बार कहें तो मैं भारत के ऊपर विदेशियों का पूरा कर्ज चुका सकता हूं और वापस कर उन्हें भारत का कर्जदार बना सकता हूं.'
इस पर प्रधानमंत्री ने नटवरलाल को समझाते हुए कहा कि तुम बहुत प्रतिभावान हो, इसका उपयोग सकारात्मक कामों में करो. लेकिन उस समय भी नटवरलाल के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था. उसने राष्ट्रपति के फर्जी हस्ताक्षर करके देश के राष्ट्रपति भवन को बेच डाला. हैरानी की बात तो यह है कि जब उसने संसद को बेचा था, तब सारे सांसद वहीं उपस्थित थे. कुछ इसी तरह नटवरलाल ने दो बार लाल किले और तीन बार ताजमहल को भी बेचा.
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ठगी कई नामी हस्ती
अपने खास हुनर के जरिए नटवरलाल ने सैकड़ों लोगों को धोखा दिया. इनमें टाटा, बिडला और धीरू अम्बानी जैसे लोग भी शामिल थे. वह इन उद्योगपतियों से समाजसेवी बनकर मिलता था और समाज के कार्यों के लिए बहुत मोटा चंदा लेकर गायब हो जाता था.
नटवरलाल का कहना था कि 'मुझे अपनी बुद्धि पर इतना भरोसा है कि मुझे कोई नहीं पकड़ सकता है. यह तो परमपिता परमेश्वर की मर्जी है. मैं नहीं जानता उसने मेरे भाग्य में क्या लिखा है.'
ऐसे हुआ जेल से आखरी बार फरार
पुलिस नटवरलाल को 8 राज्यों में 100 से ज्यादा मामलों को लेकर ढूंढ रही थी. 9 बार नटवरलाल को गिरफ्तार किया गया था, जिसमें से 8 बार वो पुलिस वालों को चकमा देकर फरार हुआ था.
नटवरलाल को आखिरी बार जून 24, 1996, को देखा गया था जब वृद्धावस्था होने के कारण उसका स्वास्थ्य खराब रहने लगा तो अदालत के आदेश पर तीन पुलिस वाले नटवरलाल को इलाज के लिए एम्स-दिल्ली ले जा रहे थे. इससे पहले करीब 2-3 हफ्तों से नटवरलाल व्हीलचेयर पर था. ठीक से उठने के लिए भी नटवरलाल को सहारे की जरूरत होती थी.
खैर, तीन पुलिस वालों के साथ नटवरलाल दिल्ली स्टेशन पहुंचता है. स्टेशन पर उतरकर चारों लोग एंबुलेंस का वेट कर रहे होते हैं. इस दौरान दो हवलदार स्टेशन पर ही किसी काम के चलते वहां से चले जाते हैं. इससे कुछ ही वक्त पहले तीनों पुलिस वालों ने मिलकर नटवरलाल को स्टेशन की बेंच पर लिटाया था. दोनों पुलिसवालों के जाने के बाद नटवरलाल ने तीसरे पुलिस वाले को चाय पीने की इच्छा जताते हुए पास ही में चाय लेने भेज दिया. थोड़ी देर बाद तीनों पुलिस वाले जब बेंच के पास लौटे तो तीनों की सांसे थम गई. कई हफ्तों से दूसरों के सहारे खड़े होने वाला नटवरलाल बेंच से गायब था. इसके बाद नटवरलाल कहां गया किसी को उसके बारे में पता नहीं चला.