पटना: क्रांतिकारी सिपाही मंगल पाण्डेय के नेतृत्व में 10 मई 1857 को प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन की शुरूआत की गई थी.बिहार में 1857 ई. की क्रान्ति की शुरूआत 12 जून,1857 को देवधर जिले के रोहिणी नामक स्थान से हुई थी.स्वतंत्रता आंदोलन की आग में पूरा बिहार जल उठा था.बात 1857 की है,जब प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में आजादी के दीवाने जंग में कूद पड़े थे.उस दौरान बिहार में हजार की संख्या में लोग मारे गए थे. अंग्रेजों ने सबसे पहले पटना में 4 क्रांतिकारियों को सरेआम फांसी की सजा दी थी.तो वही कुछ को गोली से निशाना बनाया.इस से भी जब स्वतंत्रता आंदोलन पर काबू नहीं पाया गया तो कई गांवों को जलाकर राख कर दिया गया. बिहार का क्षेत्र उस समय पश्चिम बंगाल का हिस्सा था.स्थानीय सैनिक और बिहार के स्थानीय नेता इस विद्रोह के लिए आगे आये थे.


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बिहार के 7 शहीद 
बिहार के वो 7 युवा जिन्होने असहयोग आदोंलन के समय आजादी के संघर्ष का बेड़ा उठाया था. उमाकांत प्रसाद सिंह, रामानंद सिंह, सतीश चंद्र झा, जगपति कुमार, देवीपद चौधरी, राजेन्द्र सिंह और राम गोविंद सिंह.सतीश चंद्र झा बिहार के सबसे युवा शहीद है.क्रूर अंग्रेजो ने असहयोग आदोंलन के समय पर पटना में सचिवालय के ऊपर झंड़ा फहराने पर 7 युवाओं को गोलियों से भून दिया था.


बिहार का 'सिंह'
जहां पूरे बिहार से क्रांतिकारी वीरों ने भारत को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण योगदान वहीं एक वीर ''बाबू कुँअर सिंह परमार'' राजपूत भी थे.उनके पूर्वज उज्जैन से आकर शाहाबाद जिले में बस गये थे.बाबू कुँअर सिंह साहबजादा सिंह के बड़े बेटे थे.उन्होने कभी अंग्रेजो से समझौता नहीं किया. 2 अगस्त 1857 और 23 अप्रैल 1858 को उन्होने अंग्रेजो से महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी .23 अप्रैल की उस आखिरी लड़ाई में वह बूरी तरह घायल हो गए थे.लड़ाई के दौरान उनकी एक बांह कट गई थी और जाँघ में गंभीर चोट लगी थी.26 अप्रैल, 1858 उनका स्वर्गवास हो गया था.साहस, वीरता और सेनानायकों जैसे महान गुणों के कारण उन्हें बिहार का सिंह कहा जाता है.


पूर्वजों के बलिदान को नहीं भूलना चाहिए
दूसरे विश्व युद्ध में अंग्रेजों को भयंकर जान माल की हानि हुई.आखिरकार अंग्रेजों ने भारत को सभी बंधनों से मुक्त करने का फैसला किया.लेकिन भारत को अपनी स्वतंत्रता हिंदू और मुसलमानों के बीच संघर्ष की भयानक कीमत पर मिली.जिसके कारण पाकिस्तान अस्तित्व में आया. हमें उन सभी वीर पूर्वजों और नेताओं,महिलाओं और बच्चों के बलिदान को कभी नहीं भूलना चाहिए जो उन्होनें हमारे लिए ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए दिया है.यह उन सभी का सामूहिक योगदान हैं जो आज हमें स्वतंत्र रूप से और सम्मान के साथ जीने की इज़ाज़त दे रहा है.आजादी हमारी वो विरासत है जिसे हमें एक साथ मिलकर अपनी आने वाली पीढ़ी को देनी है.


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