Patna: बिहार की राजनीति के धुरंधर लालू प्रसाद की एक आदत है कि वे मुश्किल से मुश्किल वक्त में भी सहज रहते हैं. कितनी भी कठिनाई हो, अपने अंदाज से निपट लेना लालू प्रसाद का अंदाज है. ये भी सच है कि लालू प्रसाद की जिंदगी में मुश्किलों की भी कोई कमी नहीं है. लेकिन कम ही लोग इस बात को जानते हैं कि लालू प्रसाद जब अपनी जिंदगी के सबसे मुश्किल दौर में थे तब उन्होंने अपनी पार्टी बनाई थी 'राष्ट्रीय जनता दल'.


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लालू की बात शरद यादव नहीं मानें
जुलाई 1997 में जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो रहा था. पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के सामने दिग्गज समाजवादी नेता शरद यादव चुनाव लड़ रहे थे. लालू प्रसाद सियासत के माहिर खिलाड़ी थे, वे जानते थे कि आने वाले वक्त में चारा घोटाले का मामला उन्हें मुश्किलों में डाल सकता है और मुख्यमंत्री की उनकी कुर्सी जा सकती है. इसलिए वे पार्टी अध्यक्ष बने रहना चाहते थे, चूंकि उस वक्त देश में जनता दल की सरकार थी इसलिए पार्टी अध्यक्ष का पद काफी महत्वपूर्ण था. लालू प्रसाद ने शरद यादव को रोकने की पूरी कोशिश की लेकिन शरद यादव नहीं माने.


इंद्र कुमार गुजराल के घर पर जनता दल की बैठक
4 जुलाई 1997 की शाम तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के आवास पर जनता दल के नेताओं की एक महत्वपूर्ण मीटिंग हो रही थी. इस बैठक में पार्टी के सभी बड़े नेता मौजूद थे. पार्टी चाहती थी कि चारा घोटाले में नाम आने के बाद लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष दोनों पद से इस्तीफा दे दें. लेकिन लालू प्रसाद का कहना था कि वे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने को तैयार हैं. लेकिन पार्टी का अध्यक्ष रहने दिया जाए. तब लालू प्रसाद के मुश्किल भरे दिन शुरू हो गए थे. 


5, जुलाई 1997 को हुआ RJD का गठन
हालांकि, बिहार में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी. लेकिन चारा घोटाले का मामला दिन ब दिन रफ्तार पकड़ रहा था. केंद्र में उसी पार्टी की सरकार थी जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू खुद थे. लेकिन इसके बावजूद वे चारा घोटाले की आंच से बच नहीं सके. मीटिंग में ज्यादातर लोग इस बात पर सहमत थे कि लालू प्रसाद को संगठन की बात मान लेनी चाहिए. लेकिन लालू प्रसाद यादव ने इसे मंजूर नहीं किया और अगले ही दिन यानी 5 जुलाई 1997 को जनता दल में विभाजन हो गया. लालू प्रसाद ने अपनी पार्टी बना ली 'आरजेडी' यानी 'राष्ट्रीय जनता दल'.


कैसे पड़ा 'राष्ट्रीय जनता दल' नाम?
आरजेडी के नाम को लेकर भी एक दिलचस्प कहानी है, लालू प्रसाद ने जब ये फैसला कर लिया कि उन्हें जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी बनानी है तो वो ये सोचने लगे कि नाम क्या रखा जाए. हालांकि, सबकुछ इतना जल्दी में हुआ कि बहुत तैयारी नहीं हो पाई. तब लालू प्रसाद ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज समाजवादी रामकृष्ण हेगड़े को पार्टी का नाम सुझाने को कहा, उस वक्त रामकृष्ण हेगड़े ने ही लालू प्रसाद को जनता दल से अलग होकर बनाई जा रही पार्टी का नाम आरजेडी यानी राष्ट्रीय जनता दल सुझाया था. पार्टी के नाम को लेकर अक्सर लालू प्रसाद चुनावी मंचों पर कहते हैं कि आरजेडी मतलब 'रियल जनता दल'.


कमजोर होता गया समाजवादी धड़ा
कहने वाले ये भी कहते हैं कि लालू प्रसाद अगर अध्यक्ष पद की जिद पर नहीं अड़े होते, तो जनता दल में विभाजन नहीं होता. और अगर जनता दल में विभाजन नहीं होता, तो बाद के दिनों में जिस तरीके से देश की राजनीति में समाजवादी धड़ा कमजोर हुआ वो भी नहीं होता. इतिहास में अगर-मगर की गुंजाइश नहीं होती, लेकिन एक सच ये भी है कि लालू प्रसाद की जिद के पीछे कुछ ठोस कारण भी था.


'मेरे लिए ये समझना मुश्किल था कि...
लालू प्रसाद ने अपनी ऑफिशियल ऑटोबायोग्राफी गोपालगंज टू रायसिना में लिखा है कि, 'मेरे लिए ये समझना मुश्किल था कि आखिर क्यों शरद जी ने एकाएक अपना पाला बदल लिया था, और वह भी मेरे खिलाफ. आखिर वह मैं ही था, जिसने पार्टी को एक के बाद एक जीत दिलाई थी. इतना ही नहीं, बतौर मुख्यमंत्री यह मेरा ही नेतृत्व था, जिसकी बदौलत मैंने राज्य विधानसभा चुनाव में जनता दल को लगातार दूसरी जीत दिलाई थी.'


चुनावों ने दी लालू की लोकप्रियता की गवाही
लालू प्रसाद को जिस वक्त जनता दल में मुख्यमंत्री और अध्यक्ष दोनों पद से हटने को कहा जा रहा था उस वक्त वे अपनी लोकप्रियता के चरम पर थे. 1997 में जनता दल का विभाजन हुआ और 1995 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव और 1996 में हुए लोकसभा चुनाव लालू प्रसाद की लोकप्रियता की गवाही भी दे रहे थे. 1995 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद ना केवल अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहे बल्कि विधानसभा में जनता दल को बहुमत भी आ गया. इस चुनाव में 324 की विधानसभा में जनता दल के 167 विधायक चुन कर आए, बीजेपी के 41 और कांग्रेस के 29 विधायक चुनकर सदन पहुंचे थे, इसके अलावा 26 विधायक सीपीआई के थे.


इतना ही नहीं, विधानसभा चुनाव के 1 साल बाद हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम से भी लालू की लोकप्रियता का साफ पता चलता है. बिहार की 54 सीटों के परिणाम की अगर बात करें तो जनता दल को सबसे ज्यादा 22 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि बीजेपी को 18 और समता पार्टी को 6 सीटें मिली थीं.


लालू का साथ रहे रघुवंश, जगदानंद और अब्दुल बारी सिद्दीकी 
लालू प्रसाद ने जब जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया तो पार्टी के ज्यादातर नेता लालू प्रसाद के साथ हो लिए. जनता दल के 21 सांसद और 137 विधायक लालू प्रसाद के पाले में चले गए. बिहार में पार्टी के ज्यादातर दिग्गज जैसे रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह और अब्दुल बारी सिद्दीकी मजबूती से लालू प्रसाद के साथ रहे.


कई भागों में टूटी 'जनता दल'
इस के बाद क्या हुआ वो सबकुछ इतिहास में दर्ज है. लालू प्रसाद की बनाई पार्टी 'राष्ट्रीय जनता दल' सरकार में बनी रही, जबकि जनता दल लगातार कमजोर होता चला गया. बाद के दिनों में जब जनता दल का विलय समता पार्टी में हुआ तो एक नई पार्टी 'जनता दल यूनाइटेड' बनी. और जनता दल के ही एक मजबूत नेता रामविलास पासवान ने अपनी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी बना ली.


15 साल लालू परिवार के हाथ में रही सत्ता
राष्ट्रीय जनता दल बिहार विधानसभा के अगले चुनाव यानी 2000 में भी सरकार बनने में सफल रही और राबड़ी देवी (Rabri Devi) ने बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा भी किया. 2005 में नीतीश कुमार जब बीजेपी के साथ सरकार बनाने में कामयाब रहे तो उससे पहले ही यानी 2004 में लालू प्रसाद केंद्र में रेल मंत्री बन चुके थे. यानी बिहार में सरकार गई तो केंद्र में लालू प्रसाद मंत्री हो गए. बीच के अगर 20 महीने को छोड़ दें तो 2005 से लेकर अब तक लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल बिहार की सत्ता से दूर है. लेकिन बावजूद इसके पिछले दो विधानसभा चुनाव 2015 और 2020 में राष्ट्रीय जनता दल बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है.


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RJD मना रही 25वां स्थापना दिवस
फिलहाल आरजेडी के कार्यकर्ता और नेता धूमधाम से अपना 25वां स्थापना दिवस मना रहे हैं. 25 सालों की ये अवधि पार्टी के लिए कई उपलब्धियां लेकर आई तो मुश्किलों की एक लंबी लिस्ट भी है जिसका सामना पार्टी ने पिछले 25 सालों में किया है.


 



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