पटनाः Mauni Amavasya 2023: माघ मास के कृष्णपक्ष अमावस्या की तिथि का हिंदू महात्म्य में बहुत महत्व रहा है. यह तिथि दान, धर्म, तप और स्नान के लिए बहुत शुभ मानी जाती है. इसके साथ ही इस दिन मौन का बहुत महत्व है. मौन का यह महत्व हमें जीवन परिस्थिति में जीने का सलीका सिखाता है. यह मौन सिर्फ पाप-पुण्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आज के आधुनिक जीवन में भी बहुत प्रासंगिक है.


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मौन धारण करते हैं श्रद्धालु


धार्मिक आधार पर बात करें तो मौनी अमावस्या, माघ की अमावस की तिथि को पड़ने वाला एक व्रत है. इस व्रत में सामान्यत: लोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार व्रत धारण करते हैं कि वह एक निश्चित समय के लिए मौन रहेंगे. यह समय कुछ मिनट, घंटे से लेकर पूरे एक दिन तक का हो सकता है. कई धार्मिक श्रद्धालु गंगा स्नान का व्रत लेते हैं और ब्रह्म मुहूर्त से लेकर जब तक स्नान नहीं कर लेते हैं, मौन रहते हैं. मौन की यह अवधारणा सनातन परंपरा से चली आ रही है, जिसमें इसका महत्व शब्द से भी ऊंचा बताया गया है.


कैसे हुई मौन की शुरुआत?


मौन रहने की शुरुआत वास्तव में किसने की होगी, इसके लिए कोई एक सत्य घटना नहीं है. हालांकि महाभारत के लिखे जाने का एक प्रसंग काफी चर्चित है. कहते हैं कि भगवान गणेश महाभारत लिखने के लिए तैयार हो गए, लेकिन शर्त रखी कि वह बोलेंगे नहीं. मौन रहेंगे, महर्षि वेद व्यास मान गए. कई वर्षों तक ग्रंथ के लेखन का कार्य होता रहा. महाभारत के शांति पर्व में इस मौन की व्याख्या भी है. श्रीगणेश कहते हैं कि जब किसी महान कृति का निर्माण होना होता है तो सारी इंद्रियों का ध्यान उसी कार्य में होना चाहिए. बार-बार बोलना या वाचलता आपका ध्यान भटका सकती है. श्रीगणेश मौन को मन की आवाज कहती हैं. मन की आवाज यानि शांति और इस शांति से आती कहीं दूर आत्मा के चेतना के स्वर को सुनना ही मौन है. मौन इस लोक से उस लोक के गमन का मार्ग भी है.


कहते हैं कि सृष्टि के निर्माण के साथ ही मौन का जन्म हुआ. क्योंकि ब्रह्मा ने जब सृष्टि बनाई तो यह आवाज और संवेदना से हीन थी. बाद में देवी सरस्वती की वीणा ने इसमें रस का समावेश किया. तबसे ही सृष्टि में स्वर आया. इस तरह से मौन को धारण करना एक तरह से अपने प्रारंभ की ओर जाना है, जहां से शुरुआत हुई थी. कई बार कठिन संकटों के हल प्रारंभ में देखने से मिल जाते हैं.


आधुनिक युग में मौन की अवधारणा


अब अगर आधुनिक युग की बात करें, तो मौन को लेकर कई तरह की अवधारणाएं सामने आती हैं. इस मौन का अर्थ चुप्पी लगा जाना बिल्कुल नहीं है, बल्कि सिर्फ वक्त पर जरूरी बात बोलने की समझ होना भी एक अर्थ है. अंग्रेजी में भी कहते हैं कि Silence is the best Answer. यानी कई बार कोई उत्तर देने के बजाय चुप रहना अधिक बेहतर होता है. कार्पोरेट जगत में यह काफी काम का नुस्खा है. अगर आप जरूरत से अधिक बोल रहे हैं तो यकीन मानिए आप स्मार्ट बिल्कुल भी नहीं हैं, बल्कि आप अपने लिए गहरी खाई खोद रहे हैं. इसे ऐसे भी कहा जाता है, कि बोलो कम, सुनो ज्यादा. इस मंत्र को सफलता की कुंजी बताया जाता है और यह सही भी है. कई लोग सिर्फ अधिक बोलने की वजह से अपनी विश्वसनीयता खो देते हैं. इससे बचना चाहिए.


इसे लेकर संस्कृत में भी एक श्लोक है, सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात, मा ब्रूयात सत्यम् प्रियम्. यानि सत्य बोलो, प्रिय बोलो, लेकिन अप्रिय सत्य मत बोलो. यानी ऑफिस प्लेस जैसे मामले में हर तरह के सच बोलने की जरूरत नहीं होती है. इसका यह मतलब नहीं कि आप झूठे हो जाएं और झूठ बोलते रहें, लेकिन कुछ बोलने के बजाय आप चुप तो रह ही सकते हैं.


संसार को दिया गया सबसे महत्वपूर्ण दर्शन है मौन


मौन, संपूर्ण विश्व को भारत की ओर से दिया गया सबसे महत्वपूर्ण दर्शन है. इसे आज के समय में सारा विश्व ही अपना रहा है. इस दर्शन के प्रणेता बाबा कबीर से लेकर रहीम तक और, सूफी परंपरा भी रही है. कबीर अपनी साखी में कहते हैं कि-


'कबीरा यह गत अटपटी, चटपट लखि न जाए. जब मन की खटपट मिटे, अधर भया ठहराय.' कबीर कहते हैं कि होंठ वास्तव में तभी ठहरेंगें या तभी शान्त होंगे, जब मन में जारी उद्वेग यानी खटपट मिट जायेगी. हमारे होंठ भी ज्यादा इसीलिए चलते हैं क्योंकि मन अशान्त है और जब तक मन अशान्त है आप कभी भी सत्य को नहीं पा सकते हैं. शरीर की और अधरों की वाचाल गति ही बाहर की ओर उत्पन्न हो रहा शोर है.


मन की शांति है मौन


मौन का अर्थ है. मन का शान्त हो जाना यानी मन कल्पनाओं की व्यर्थ उड़ान न भरे. आन्तरिक मौन में लगातार शब्द मौजूद भी रहें तो भी, मौन बना ही रहता है. उस मौन में आप कुछ बोलते भी रहो तो भी मौन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है. एक 15 वर्ष का किशोर पढ़ने बैठा है. अचानक उसके मन में कौंधा कि जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो इतने पैसे कमाऊंगा. फिर मैं बड़ा घर खरीदूंगा, या फिर कोई भी ऐसी इच्छा जो उसके मन में पनप जाए वह उसके बारे में सोचने लगता है. दूर से देखें तो लगेगा कि वह पड़ने बैठा है, लेकिन नहीं वह मन में कुछ और ही बोल रहा है. उसके मन में कल्पनाएं शोर मचा रही हैं और इसका परिणाम वह पढ़ाई नहीं कर रहा है. यह समस्या हर बढ़ती उम्र के साथ आम है.


इंद्रिय जय का पहला चरण है मौन


मौन को जैन परंपरा में इंद्रिय जय का पहला चरण बताया गया है. महात्मा बुद्ध भी ध्यान से पहले मौन को जरूरी बताते हैं. वह कहते हैं 'मौन से संकल्प शक्ति की वृद्धि तथा वाणी के आवेगों पर नियंत्रण होता है. मौन आन्तरिक तप है इसलिए यह आन्तरिक गहराइयों तक ले जाता है. मौन के क्षणों में आन्तरिक जगत के नवीन रहस्य उद्घाटित होते हैं. मौन से सत्य की सुरक्षा होती है और वाणी पर नियंत्रण होता है. वाणी पर नियंत्रण कितना जरूरी है, इसे महाभारत के द्रौपदी-दुर्योधन प्रसंग से भी समझा जा सकता है, जहां द्रौपदी ने, लड़खड़ा कर गिर पड़े दुर्योधन पर कटाक्ष किया, अंधे का पुत्र अंधा. इस एक वाक्य ने महाभारत का युद्ध होना और तय कर दिया था.


सदियों से भारतीय ऋषियों-मुनियों ने हमें कई उपहार दिए हैं. मौन का दर्शन इनमें बहुत महत्वपूर्ण है. इस मौनी अमावस्या पर आप इसे सिर्फ एक व्रत-पूजा का नियम न समझें, बल्कि इसे अपने जीवन में उतारी जाने वाली अच्छी आदत में शुमार करें, वाकई मौन आपकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में बहुत काम आएगा.


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