Nitish Kumar Tough Time: अगस्त 2022 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की पार्टी जेडीयू (JDU) एनडीए (NDA) से अलग होकर महागठबंधन (Mahagathbandhan) का हिस्सा बनी थी. यह दूसरी बार था जब नीतीश कुमार ने एनडीए से पाला बदलकर महागठबंधन का दामन थामा था. तब शायद नीतीश कुमार को यह डर था कि 2024 में अगर बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया तो हो सकता है कि उनकी कुर्सी को खतरा पैदा हो जाए और बीजेपी (Bihar BJP) बिहार में अपना सीएम देखना चाहे. इसी कारण उन्होंने समय रहते महागठबंधन में शामिल होना मुनासिब समझा. तब उन्हें इस बात का अहसास नहीं होगा कि आने वाले दिनों में उन्हीं की पार्टी से उनके खिलाफ आवाज मुखर होगी. तब उन्हें इस बात की भी लालच होगी कि पीएम पद के लिए वे विपक्ष की ओर से एक विकल्प हो सकते हैं. तभी पीएम प्रत्याशी बनने की प्रत्याशा में उन्होंने तेजस्वी यादव को 2025 के लिए महागठबंधन की ओर से सीएम पद का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया. नीतीश कुमार ने बीजेपी के डर से ऐसे ऐसे ऐलान कर दिए, जिससे उनकी पार्टी के नेताओं में ही आम सहमति नहीं थी और अब उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) उन्हीं फैसलों को लेकर सवाल उठा रहे हैं.


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नीतीश कुमार की अर्जी क्या सुनेगी कांग्रेस?


18 फरवरी को भाकपा माले के कन्वेंशन में सीएम नीतीश कुमार ने कांग्रेस से कुछ अर्ज किया. अर्ज ये था कि आप विपक्षी एकता के लिए आगे आएं. नीतीश कुमार ने कहा कि आप आगे आएंगे तो हम भी आपके साथ आएंगे और कायम हो जाएगी विपक्षी एकता और हम सब मिलकर एक झटके में बीजेपी को न ​केवल हरा पाएंगे, बल्कि उसकी सीटों की संख्या 100 से नीचे भी सिमटा सकते हैं. इन बातों से नीतीश कुमार की मुश्किलों को समझा जा सकता है. पिछले साल जब नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुहिम लेकर दिल्ली गए थे तो कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी उनसे नहीं मिली थीं. तब नीतीश और तेजस्वी की फोटो बहुत वायरल हुई थी. तब बिहार बीजेपी के नेताओं से यह प्रचार किया था कि सोनिया गांधी नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से नहीं मिलीं और यह बिहार का अपमान है. सोनिया गांधी नहीं मिलीं तो नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की मुहिम पर भी ब्रेक लग गया. उसके बाद अब नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तरीके से सलमान खुर्शीद की मौजूदगी में कांग्रेस से विपक्षी एकता की अर्जी डाली.


अपने हुए नाराज, क्या पार्टी होगी दोफाड़?


एनडीए से अलग होने के कुछ महीने बाद सीएम नीतीश कुमार ने सार्वजनिक रूप से यह बयान दे डाला कि तेजस्वी यादव 2025 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की ओर से सीएम मुख्यमंत्री के प्रत्याशी होंगे. नीतीश कुमार के इस बयान के बाद से तो उन्हीं की पार्टी में एक तरह से भूचाल आ गया. उपेंद्र कुशवाहा ने सार्वजनिक रूप से नीतीश कुमार की इस बात पर सवाल उठाए और खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के लिए बेहतर बताया. यहां तक कि उन्होंने नीतीश कुमार की सरकार में डिप्टी सीएम पद की दावेदारी ठोक दी. हालांकि नीतीश कुमार ने इस बात से इनकार कर दिया कि उपेंद्र कुशवाहा को डिप्टी सीएम बनाया जा रहा है. इस बात से उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी बढ़ गई. उनकी नाराजगी के बीच दिल्ली एम्स में भर्ती रहने के दौरान बिहार बीजेपी के कुछ नेताओं ने उनसे मुलाकात की थी, जिससे यह संदेश गया कि नीतीश कुमार की पार्टी में कुछ ठीक नहीं चल रहा है. नीतीश कुमार ने सार्वजनिक रूप से इस बात को लेकर काफी कुछ कहा, जिसका उपेंद्र कुशवाहा ने बिंदुवार जवाब भी दिया. उपेंद्र कुशवाहा बार बार नीतीश कुमार से यह मांग कर रहे हैं कि राजद के साथ जिस बात को लेकर डील हुई है, उसकी जानकारी पार्टी नेताओं को दी जानी चाहिए. उपेंद्र कुशवाहा का मानना है कि नीतीश कुमार गलत तरीके से पार्टी चला रहे हैं और असली कार्यकर्ताओं को इसका विरोध करना चाहिए. इसे लेकर उपेंद्र कुशवाहा पटना की सिन्हा लाइब्रेरी में पार्टी के असली कार्यकर्ताओं की दो दिवसीय बैठक भी कर रहे हैं.


नीतीश कुमार पर इस हद तक है राजद का प्रेशर?


नीतीश कुमार की समस्या यही खत्म नहीं होती. नीतीश कुमार ने राजद के साथ मिलकर सरकार बनाई है. आपको ध्यान होगा कि राजद नेता तेजस्वी यादव बहुत पहले से यह कहते आ रहे हैं कि नीतीश कुमार को दिल्ली पर ध्यान देना चाहिए और बिहार उन्हें सौंप देना चाहिए. विपक्ष में रहते हुए तेजस्वी जब यह बात कहते थे तो तंज में कहते थे और नीतीश कुमार की बढ़ती उम्र का भी हवाला देते थे. लेकिन जब दोनों दल एक साथ आ गए तो तेजस्वी यादव ने इस बात को नसीहत के रूप में कहना शुरू कर दिया. उपेंद्र कुशवाहा जिस डील की बात कर रहे हैं, वो शायद यही डील है कि पटना में तेजस्वी और दिल्ली में नीतीश कुमार. अब तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता इस बात को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं. बयानबाजी होने से नीतीश कुमार पर एक स्वाभाविक दबाव तो बनता ही है. वहीं उनके विरोधियों खासतौर से बीजेपी को आलोचना का मौका मिल जाता है. खास बात यह है कि तेजस्वी यादव अपने नेताओं और विधायकों की इन बातों पर विराम नहीं लगाते. राजद के कई वरिष्ठ नेताओं ने भी खुलकर यह बात कही है. राजद नेता सुधाकर सिंह ने तो सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा भी खोल दिया है और लालू यादव का संदेश भी काम नहीं आ रहा है. नीतीश कुमार किस हद तक प्रेशर में हैं, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब पत्रकारों ने कैबिनेट विस्तार को लेकर सवाल पूछे तो नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव की ओर इशारा करते हुए कहा कि इनसे पूछिए.


2005 के बाद से सबसे मुश्किल वक्त


2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने ऐलान किया था कि यह उनका अंतिम चुनाव है. इस लिहाज से नीतीश कुमार अपने करियर के उत्तरार्ध में हैं और सबसे बड़ी मुश्किल में भी. एनडीए से निकल चुके हैं और बीजेपी ने उनकी एनडीए में वापसी की संभावनाओं पर विराम लगा दिया है. कांग्रेस उनकी सुन नहीं रही है. अन्य विपक्षी दलों में से केसीआर ने अपने बड़े जलसे में नीतीश कुमार को बुलाया नहीं. शरद पवार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल नीतीश कुमार को पीएम पद प्रत्याशी बनाने को राजी होंगे, ऐसा भी नहीं लग रहा है. उनकी अपनी ही पार्टी में घमासान मचा है और सहयोगी दल राजद की ओर से उन पर लगातार दबाव डाला जा रहा है. इस लिहाज से नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. मुश्किलें इस कदर कि खुद की मर्जी से मंत्री भी नियु​क्त नहीं कर सकते. वो फैसला तेजस्वी यादव को लेना है. उपेंद्र कुशवाहा ने नाक में दम कर रखा है और आरसीपी सिंह के अलावा अजय आलोक और प्रशांत किशोर भी नीतीश कुमार को लगातार निशाने पर लिए हुए हैं. देखना यह होगा कि इन सब मुश्किलों से नीतीश कुमार कैसे उबरते हैं.