राष्ट्रीय राजनीति के नए सितारे बनने जा रहे हैं नीतीश कुमार, बनाए जा सकते हैं यूपीए के संयोजक
यूपीए के गठन से लेकर अभी तक सोनिया गांधी यूपीए का चेयरपर्सन का पद संभाल रही थीं. अब नीतीश कुमार को यूपीए का संयोजक बनाने की बात हो रही है और कहा तो यहां तक गया है कि उन्हें इस बात के लिए आफर भी दे दिया गया है.
पटना: बिहार की राजनीति में अगस्त 2022 में यूटर्न लेकर महागठबंधन में आने का फैसला नीतीश कुमार के लिए सही प्रतीत होता दिख रहा है. अरसे इंतजार के बाद नीतीश कुमार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का बुलावा आया तो वे मंगलवार को दिल्ली पहुंचे और बुधवार को उनकी राहुल गांधी के अलावा खड़गे से मुलाकात हुई. मुलाकात के बाद प्रेस कांफ्रेंस भी हुई. महागठबंधन में री एंट्री के बाद जब नीतीश कुमार कांग्रेस के दिल्ली दरबार में आए थे तो न फोटो सेशन हुआ था और न ही प्रेस को संबोधित किया गया था, लेकिन इस बार दोनों हुआ. कहना पड़ेगा कि जो काम लालू प्रसाद यादव न करवा पाए थे, वो उनके बेटे तेजस्वी यादव ने करके दिखा दिया. अब खबर आ रही है कि नीतीश कुमार को यूपीए का संयोजक बनाया जा सकता है.
दरअसल, यूपीए के गठन से लेकर अभी तक सोनिया गांधी यूपीए का चेयरपर्सन का पद संभाल रही थीं. अब नीतीश कुमार को यूपीए का संयोजक बनाने की बात हो रही है और कहा तो यहां तक गया है कि उन्हें इस बात के लिए आफर भी दे दिया गया है. हालांकि अभी यह पता नहीं चल पाया है कि नीतीश कुमार ने इसके लिए हामी भरी है या नहीं. अगर नीतीश कुमार यूपीए के संयोजक का पद पा जाते हैं तो वे पहले समाजवादी नेता होंगे, जिनको यह जिम्मेदारी दी जाएगी.
अगर नीतीश कुमार यपीए का संयोजक बनाए जाते हैं तो उनकी जिम्मेदारी अलग अलग विचारधारा वाले दलों से बातचीत कर एंटी मोदी या एंटी बीजेपी फ्रंट के लिए अलग अलग दलों को लाना होगा. जैसे ओडिशा में नवीन पटनायक की पार्टी, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर की पार्टी, तेलंगार में केसीआर की पार्टी, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी, दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी, यूपी में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को एक बैनर के नीचे आने के लिए तैयार करना होगा. नीतीश कुमार के लिए जाहिर तौर पर यह आसान काम नहीं है. ऐसा इसलिए है कि पीएम पद के लिए इनमें से कई नेता नीतीश कुमार को अपना प्रतिद्वंद्वी मानते हैं और वे कभी नहीं चाहेंगे कि नीतीश कुमार उनसे बाजी मार जाएं.
हालांकि बदले राजनीतिक माहौल में जिस तरह से राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता चली गई है, उससे कांग्रेस तो परेशान है ही, अन्य कई दल भी उतने ही परेशान हैं. तभी तो केसीआर ने राहुल गांधी की सदस्यता खत्म होने के बाद उनके समर्थन में कई बैठकों में शामिल नजर आई थी, जो कभी कांग्रेस को फुटे आंख नहीं सुहाती थी. इसी तरह आंध्र प्रदेश के वाईएसआर जगहनमोहन रेड्डी की पार्टी भी कांग्रेस को देखना पसंद नहीं करती, क्योंकि वो कांग्रेस से अलग हुई पार्टी है और वाईएसआर का आरोप है कि उनके पिता की विरासत की कांग्रेस ने अनदेखी की. ममता बनर्जी, नवीन पटनायक के साथ भी ऐसा ही है. ऐसे में नीतीश कुमार की चुनौती काफी बड़ी हो जाती है. देखना यह होगा कि नीतीश कुमार को यूपीए संयोजक का पद मिलता है या नहीं और अगर मिल जाता है तो वे इसके साथ कितना न्याय कर पाते हैं.
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