पटनाः Padma Ekadashi Vrat Katha: पद्मा एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और यह एकादशी समस्त पापों का नाश करने वाली मानी जाती है. इस एकादशी की कथा खुद भगवान कृष्ण ने अर्जुन आदि भाइयों को सुनाई थी. इसकी कथा वामन अवतार से जुड़ी हुई है. 


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राजा बलि से जुड़ा है प्रसंग
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि त्रेतायुग में बलि नाम का असुर था, लेकिन वह अत्यंत दानी, सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था. वह सदैव यज्ञ, तप आदि किया करता था. उसकी भक्ति के प्रभाव से राजा बलि प्रतापी हो गया और उसने शुक्राचार्य के कहने पर स्वर्ग से देवताओं का राज्य हटा कर खुद वहां का राजा बन गया. देवराज इन्द्र और देवता गण इससे भयभीत होकर भगवान विष्णु के पास गये. देवताओं ने भगवान से रक्षा की प्रार्थना की. इसके बाद भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की.


वामन अवतार की है कथा
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- वामन रूप लेकर मैंने राजा बलि से याचना की- हे राजन! यदि तुम मुझे तीन पग भूमि दान करोगे, इससे तुम्हें तीन लोक के दान का फल प्राप्त होगा. राजा बलि ने मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और भूमि दान करने के लिए तैयार हो गया. दान का संकल्प करते ही मैंने विराट रूप धारण करके एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग तथा पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया. अब तीसरे पांव के लिए राजा बलि के पास कुछ भी शेष नहीं था. इसलिए उन्होंने अपने सिर को आगे कर दिया और भगवान वामन ने तीसरा पैर उनके सिर पर रख दिया. राजा बलि की वचन प्रतिबद्धता से प्रसन्न होकर भगवान वामन ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया. इसके बाद भगवान ने राजा बलि को वरदान किया वह सदैव उसके साथ रहेंगे. परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान का एक स्वरूप राजा बलि के पास रहता है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करता रहता है. इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं.


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