Pandit Jawahar Lal Nehru Jayanti: इस अंतरराष्ट्रीय नेता से प्रभावित थे पं. नेहरू, यूं ही नहीं बन गए भारत निर्माता
Pandit Jawahar Lal Nehru Jayanti: देश के प्रथम प्रधानमंत्री के तौर पर पद भार संभालने के बाद नेहरू के सामने पहली और सीधी चुनौती तो यही थी कि जिस देश की सत्ता की बागडोर उनके हाथ में दी गई है, उस देश की सत्ता के लोकतांत्रिक ढांचे को कैसे बनाया जाए.
नई दिल्लीः Pandit Jawahar Lal Nehru Jayanti: पं. जवाहर लाल नेहरू. भारत के आधुनिक इतिहास, इसके सामाजिक ढांचे, आजादी के बाद बने बुनियादी स्वरूप और आज दिख रहे किसी भी मशीनी माहौल की जब-तब चर्चा होगी, पं. नेहरू का नाम कहीं से भी निकलकर हमारे सामने आ जाएगा. देश के प्रथम प्रधानमंत्री के तौर पर पद भार संभालने के बाद नेहरू के सामने पहली और सीधी चुनौती तो यही थी कि जिस देश की सत्ता की बागडोर उनके हाथ में दी गई है, उस देश की सत्ता के लोकतांत्रिक ढांचे को कैसे बनाया जाए. इसकी नींव को कैसे मजबूत रखा जाए ताकि जिसपर टिककर लोकतंत्र की मीनारें और कलीरें सज सके. उनके सामने एक ऐसे लोकतांत्रिक-गणतांत्रिक राज्य/राष्ट्र के निर्माण की चुनौती थी, जिसे विश्व पटल पर उस समय के आधुनिक देशों की ऊंचाई तक ले जाना सक्षम हो. पं. नेहरू की बात इसलिए क्योंकि आज देश प्रथम प्रधानमंत्री की जयंती मना रहा है, जिसे भारत में बाल दिवस के तौर आयोजित किया जाता है.
भारत निर्माण में आधुनिकता
लेकिन, आज बाल दिवस की बात नहीं लिखेंगे, आज बात होगी पं. नेहरू के उस दौर की, जब उनके कंधे पर अभी-अभी ही गुलामी की बेड़ियों से मुक्त होकर भारत नाम की चिड़िया बैठी थी. नेहरू उहा-पोह की स्थिति में थे कि नए भारत के निर्माण में किस तरह की विचारधारा को अपनाया जाए. असल में नेहरू इसके लिए राजी नहीं थे कि नए भारत का निर्माण सिर्फ और सिर्फ गांधीवादी विचारों से हो, बल्कि इसके लिए उन्होंने यूरोपीय तौर-तरीकों को भी अपनाया.
वीर सावरकर से मिली प्रेरणा
इसकी प्रेरणा उन्हें वीर विनायक दामोदर सावरकर से मिली. असल में गांधी और सावरकर दोनों ही समकालीन थे और सामाजिक दायरों को देखें तो जहां गांधी की बातों-विचारों में आस्था का आधार होता था तो सावरकर किसी भी विचार को तर्क की कसौटी पर कसना जरूरी समझते थे. अपने एक लेख में इस बात का जिक्र प्रख्यात ब्रिटिश-भारतीय अर्थशास्त्री लॉर्ड मेघनाद देसाई ने भी किया है. देसाई लिखते हैं कि आजाद भारत के निर्माण में नेहरू ने सावरकर की विचारधारओं को अपनाया. उन्होंने महात्मा गांधी को भी परे रखते हुए यूरोपीय तौर तरीकों के साथ आधुनिक भारत का निर्माण किया. सीधी बात है कि नेहरू सावरकर के रास्ते पर चले.
असल में गांधी के सपने का भारत नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक आधार पर बनना था, जबकि नेहरू इस आधार से बिल्कुल अलग तर्क रखते थे. उनका मत था कि नए भारत में आधुनिक वैज्ञानिक और राजनीतिक खासियतें भी शामिल हों, लेकिन गांधी घबराते थे कि कहीं इस लिहाज में नया भारत सिर्फ पश्चिम का अंधा अनुसरण न करने लगे. लिहाजा अपनी किताब हिंद स्वराज लिखते हुए भी महात्मा गांधी के विचार नैतिक-आध्यातमिक
थे.
सावरकर ने अनुवाद की थी माजिनी की जीवनी
पं. नेहरू के पास सावरकर से आकर्षित होने के पीछे भी वजह थी. दरअसल सावरकर ने बहुत पहले इटली के महान क्रांतिकारी और विचारक ज्यूत्स्पे माजिनी की आत्मकथा का अनुवाद किया था. इसे लिखते हुए सावरकर इटली की उन दशाओं का जिक्र करते हैं जैसी आजादी के वक्त भारत की स्थिति थी.माजिनी को इटली के एकीकरण के लिए जाना जाता है. इसी एकीकरण के साथ राष्ट्रवाद शब्द का जन्म होता है. आज राष्ट्रवाद महज शब्द नहीं बल्कि भारतीय लोकतंत्र की आत्मा भी है. सावरकर के द्वारा अनुवादित की गई इसी किताब के जरिए पं. नेहरू माजिनी से प्रभावित थे.
इटली में है माजिनी का अहम स्थान
Giuseppe Mazzini का स्थान इटली के इतिहास में काफी अहम है. 1805 में जन्मे इटली को राष्ट्रीय-एकीकरण का आदर्श देने वाले नेता मैजिनी ही थे. घर में क्रांतिकारी माहौल, फ्रांस की क्रांति से प्रभाव को बताने वाली किताबों ने माजिनी पर गहरा असर डाला था. पढ़ाई खत्म होते-होते वह कार्बोनरी (इटली के एकीकरण की कोशिश में जुटी समितियां) में शामिल हुए. विद्रोह और विरोध के कारण 1830 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. बाहक आकर उसने इटली की जनता को सन्देश दिया तथा राष्ट्रीय जीवन में चेतना जाग्रत की. 1830 ई. तक की अपनी यात्रा और उसे असफल मानते हुए मेजिनी ने दो निष्कर्ष निकाले. पहला तो यह कि इटली का सबसे प्रबल शत्रु ऑस्ट्रिया है. एकीकरण को पूरा करने के लिए कार्बोनरी अपर्याप्त है.
माजिनी ने 'यंग इटली' नाम से दल बनाया. उन्होंने राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा दिया. तीन साल में यंग इटली के 60 हजार सदस्य हो गए. इस तरह माजिनी इटली की स्वाधीनता और उसकी एकता के अग्रदूत बन गए. पं. नेहरू इसीलिए उनसे प्रेरित होते रहे और राष्ट्र निर्माण की उनकी सोच पर माजिनी की नीतियों की भी छाप रही है.
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