पटना : हिंदी साहित्य के आसमान पर चमकते सितारों की कोई कमी नहीं, समय के साथ हिंदी साहित्य समृद्ध और समृद्ध होता गया. बता दें कि आंचलिक भाषा में कहानी हो या उपन्यास बिहार की धरती ने एक ऐसा लाल पैदा किया जिसकी कलम ने समाज को अपनी लेखनी के जरिए हमेशा आईना दिखाया. समाज में फणीश्वर नाथ रेणु की लिखे साहित्य आज बी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने पहले थे. 


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साहित्य के इतने मोती रेणु की कलम ने गढ़े
रेणु की कलम ने एक-एक कर इतने साहित्य लिख डाले की किसी को भरोसा ही नहीं हो रहा था. पहला आंचलिक उपन्यास मैला आँचल (1954) में जब उनकी कलम से निकलकर पाठकों के बीच पहुंचा तो मानो तब हंगामा मच गया था. आज भी इसे साहित्य को पसंद करनेवाले जरूर पढ़ते हैं. इसके बाद परती परिकथा, दीर्घतया, जुलूस, पलटू बाबू रोड (सभी उपन्यास) के साथ ठुमरी, अगिनखोर, आदिम रात्रि की महक, एक श्रावणी दोपहरी की धूप (सभी कहानी-संग्रह) उनकी कलमों को जरिए पन्नों पर अक्षरबद्ध होते चले गए साथ ही रेणु की लेखनी में ऋणजल-धनजल, वन तुलसी की गंध, श्रुत-अश्रुत पूर्व (संस्मरण)भी लोगों के सामने आई. 


1970 में रणु को मिला पद्मश्री अवार्ड
एकदम ठेठ अंदाज और गांव-ज्वार की भाषा में साहित्य का सृजन जो आम लोगों की समझ के लिए काफी था. आंचलिक साहित्य की इस नई विद्या का ईजाद रेणु के नाम रहा. लोगों ने उनकी रचनाओं को अपने हृदय से लगाया. रेणु की लिखी एक कहानी 'ठेस' ऐसी जिसे पढ़कर हर नन्हा मन रोया.  रेणु की किताबें हिंदी साहित्य के शोधकर्ताओं को आज भी सबसे ज्यादा पसंद आती हैं. रेणु को पहले आंचलिक उपान्यास 'मैला आंचल' के लिए ही उन्हें 21 अप्रैल, 1970 को तत्कालीन राष्ट्रपति वाराह वेंकट गिरि ने पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया था. 


रेणु ने इस वजह से पद्मश्री अवार्ड लौटाया 
रेणु को साहित्य में अपने योगदान के लिए पद्मश्री अवार्ड तो मिल गया लेकिन उनकी क्रांतिकारी सोच कहां बदलने वाली थी जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में पूरे देश में हुए छात्र आंदोलन में पुलिस की लाठी चार्ज के विरोध में उन्होंने अवार्ड वापस कर दिया था.  


फणीश्वरनाथ रेणु ने की थी तीन शादियां 
फणीश्वरनाथ रेणु का नाम वैसे तो फणीश्वरनाथ मंडल. बचपन की शिक्षा-दीक्षा बिहार के  फारबिसगंज में हुई. रेणु ने विराट नगर आदर्श विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की. बता दें कि फणीश्वरनाथ रेणु ने तीन शादियां की थी, उनकी पहली शादी रेखा से हुई और थोड़े ही समय बाद वह लकवाग्रस्त होकर मृत्युशैय्या पर चली गईं. 1950 में रेणु ने दूसरी शादी पद्मा से की. उसके बाद 1954 में उन्होंने लतिका से तीसरा विवाह रचाया. भाषा की सहजता, सरलता, चित्रात्मकता एवं काव्यात्मकता रेणु के साहित्य के विशेष गुण थे. उन्होंने समाज का वह सजीव चित्रण किया जिससे आज का समाज भी अछूता नहीं है. 


चुनाव भी लड़े थे फणीश्वरनाथ रेणु
साहित्य के साथ राजनीति में भी रेणु की खासी दिलचस्पी रही. रेणु अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने नेपाल तक पहुंच गये थे. राजनीतिक दलों मे उनकी खासी पैठ रही लेकिन 50 के दशक में सोशलिस्ट पार्टी के साथ वह राजनीति मं सक्रिय भी हुए.उन्हें सियासत रास नहीं आई. 1972 में फारबिसगंज विधानसभा से वह निर्दलीय चुनाव लड़े. हालांकि रेणु चुनाव हार गए थे. 


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