Motihari: जन सुराज अभियान के 98वें दिन प्रशांत किशोर ने मोतिहारी में मीडिया से बातचीत की. प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उन्होंने विस्तार से जन सुराज अभियान के बारे में बताया और पदयात्रा के दौरान हुए अबतक के अपने अनुभवों को साझा किया. प्रशांत किशोर पदयात्रा के माध्यम से अबतक पश्चिम चंपारण, शिवहर और पूर्वी चंपारण में 1200 किमी से अधिक पैदल चल चुके हैं. आगामी 14 जनवरी को जन सुराज पदयात्रा गोपलागंज जिले में प्रवेश कर जाएगी. कल 8 जनवरी को पूर्वी चंपारण जिले के जन सुराज पदयात्रा का जिला अधिवेशन होने जा रहा है. इस अधिवेशन में जिले के सभी प्रखंडों से जन सुराज से जुड़े लोग आएंगे और तीन सवालों पर मतदान करेंगे. पहला - जन सुराज एक पार्टी बननी चाहिए अथवा नहीं? दूसरा - अगर जन सुराज पार्टी बनती है, तो क्या 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ना चाहिए अथवा नहीं? और तीसरा - जन सुराज पदयात्रा के दौरान अबतक बेरोजगारी व पलायन, किसानों की बदहाली और भ्रष्टाचार में सबसे बड़ी समस्या क्या है?


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'महात्मा गांधी की कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का अभियान है जन सुराज' 


प्रशांत किशोर ने मोतिहारी में मीडिया से संवाद के दौरान कहा कि जन सुराज अभियान महात्मा गांधी वाली कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का अभियान है, जिसमें बिहार के हर जिले की जनता बैठकर विचार करेगी कि जन सुराज को पार्टी बनना चाहिए या नहीं. हमारा प्रयास है कि देश के 10 अग्रणी राज्यों में बिहार शामिल हो. विकास के ज्यादातर मानकों पर अभी बिहार 27वें या 28वें स्थान पर है. 50 के दशक में बिहार की गिनती देश के अग्रणी राज्यों में होती थी. बिहार के हर पंचायत, गांव और नगर क्षेत्र के स्तर पर समस्याओं और समाधान का एक ब्लूप्रिंट बनाया जा रहा है. पदयात्रा खत्म होने के 3 महीने के भीतर हम इसे जारी करेंगे. साढ़े 8 हजार ग्राम पंचायत और 2 हजार नगर पंचायत की विकास की योजनाओं का खाका हम तैयार कर रहे हैं. हर पंचायत की समस्याओं को हम संकलित कर रहे हैं, हमारा उद्देश्य है कि आने वाले 10 से 15 सालों में बिहार विकास के तमाम मापदंडों पर देश के अग्रणी राज्यों में शामिल हो."


'अखबार पढ़कर सरकार चलाते हैं नीतीश कुमार'


नीतीश कुमार की समाधान यात्रा पर तंज कसते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि यात्रा के मुल अर्थ को मैं जितना समझता हूं, और नीतीश कुमार जो जिलों में आकर प्रशासनिक मीटिंग कर रहे हैं उसे यात्रा कैसे कहा जा सकता है. वो तो गाड़ी से चल रहे हैं न की पैदल चल रहे हैं. पटना से आते हैं, सरकारी अफसरों के साथ समीक्षा बैठक करते हैं, तो इसे यात्रा नहीं कहा जाना चाहिए. हर मुख्यमंत्री का काम होता है राज्य के दूसरे जिलों में जाना. 'किसी को कुछ पता है, इसको कुछ आता है' ये नीतीश कुमार का नया तकिया कलाम बन गया है. पूर्वी-पश्चिम चंपारण जिले जिसमें 1 करोड़ लोग रहते हैं और जिसकी यात्रा 5 घंटे में पूरी कर ली जाए और उसे यात्रा कैसे कहा जा सकता है. नीतीश कुमार अखबार पढ़कर सरकार चलाते हैं. नीतीश कुमार यात्रा के नाम पर कम से कम बंगले से तो बाहर निकले हैं, यही बड़ी बात है.


प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार पर महागठबंधन के खिलाफ एक बड़ा आरोप लगाते हुए कहा, "नीतीश कुमार 2025 में राजद की सरकार इसलिए चाहते हैं, दोबारा फिर से जब जंगलराज आए तो लोग कहें कि इससे अच्छा तो नीतीश कुमार थे. नीतीश कुमार को मैं जितना जानता हूं उन्हें तेजस्वी यादव से कोई सहानुभूति नहीं है. वो तो नीतीश कुमार की सोची समझी राजनीति है. राजद ने जिस तरीके से 40 सीटों पर जदयू को समेट दिया है, कहीं न कहीं उसकी कसक नीतीश कुमार में रह गई है जिसका बदला वो तेजस्वी को गद्दी देकर लेना चाहते हैं. नीतीश कुमार की सोची समझी राजनीति है कि 2025 तक तेजस्वी के साथ रहो उसके बाद राजद नाम के भस्मासुर को जनता के हवाले कर दो ताकि बिहार की जनता भोगे और देख सके कि नीतीश कुमार कितने अच्छे थे."


राहुल गांधी से नहीं है तुलना 


राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के सवाल पर प्रशांत किशोर ने कहा कि कांग्रेस बड़ी पार्टी है और राहुल गांधी बड़े लोग हैं. वो देश के स्तर पर बड़ा प्रयास कर रहे हैं. राहुल गांधी जो भारत जोड़ों पदयात्रा कर रहे वो कन्याकुमारी से कश्मीर की 3500 किलोमीटर की पदयात्रा है जिसे उन्हें 6 महीने में पूरा करना है. मैं जो पदयात्रा कर रहा हूं उसमें किलोमीटर कोई महत्व नहीं रखता है. मैंने कोई दिन भी फिक्स नहीं किया है. मेरे लिए यात्रा माध्यम है समाज को निचले स्तर पर समझने का प्रयास करना, लोगों की समस्यायों को जानना और उसका समाधान भी लोगों के माध्यम से ही निकालना. सड़क पर चलने का मुझे ओलिंपिक रिकॉर्ड नहीं बनाना है, न ही मुझे यह दिखाना है कि मैं कितना फीट हूं. मुझे जनता की समस्या को समझना है इसलिए मेरी यात्रा की उनसे कोई तुलना ही नहीं है.