जयंती विशेष: रामविलास पासवान, जिन्होंने `नजाकत` को पहचानते हुए ताउम्र की राजनीति
केंद्रीय मंत्री रहे रामविलास पासवान ने अपने सियासी करियर में 11 चुनाव लड़े, जिनमें से 9 चुनाव जीतने में सफल भी रहे. इस दौरान पासवान ने 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया.
Patna: बिहार ही नहीं देश के बड़े सियासी दिग्गजों में शुमार स्वर्गीय रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) की पहचान एक ऐसे नेता की रही, जो सूझबूझ के साथ राजनीति करने के लिए जाने जाते थे. उन्होंने वक्त की नजाकत को पहचानते हुए ताउम्र राजनीति की. चुनाव से पहले वो हवा का रुख भांपने में माहिर थे.
6 प्रधानमंत्रियों के साथ किया काम
5 जुलाई 1946 को जन्मे रामविलास पासवान का 8 अक्टूबर 2020 को महज 74 बरस की उम्र में इंतेकाल हो गया. केंद्रीय मंत्री रहे रामविलास पासवान ने अपने सियासी करियर में 11 चुनाव लड़े, जिनमें से 9 चुनाव जीतने में सफल भी रहे. इस दौरान पासवान ने 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया. पहली बार वह 1989 में वीपी सिंह (VP Singh) की सरकार में मंत्री बने थे. दूसरी बार 1996 में देवगौड़ा और गुजराल सरकार में रेल मंत्री बने. 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की सरकार में रामविलास पासवान संचार मंत्री थे. 2004 में वह यूपीए से जुड़े और मनमोहन (Manmohan Singh) सरकार में रसायन मंत्री बने. 2014 में एनडीए (NDA) में शामिल हुए और नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री बने.
'सरकार किसी भी दल की बनें, मगर पासवान मंत्री जरूर बनते रहे'
राम विलास पासवान के बारे में कहा जाता है कि सरकार किसी भी दल की बनें, मगर पासवान मंत्री जरूर बनते थे. इसके पीछे की वजह बिहार की सियासत में उनकी मजबूत पकड़ थी. साल 2000 में उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को कयाम किया था. पहले वे जनता पार्टी से होते हुए जनता दल और उसके बाद जनता दूल यूनाइटेड (JDU) का हिस्सा रहे, लेकिन जब बिहार की सियासत के हालात बदल गए तो उन्होंने अपनी पार्टी बना ली. दलितों की सियासत करने वाले पासवान ने 1981 में दलित सेना संगठन का भी कायम किया था.
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बिहार पुलिस से शुरू किया सफर
हालांकि, बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि छात्र राजनीति में सक्रिय रामविलास पासवान ने बिहार पुलिस (Bihar Police) की नौकरी से अपने करियर की शुरूआत की थी. 1975 में इमरजेंसी की घोषणा के बाद उन्हें गिरफ्तार भी किया गया और पासवान को इमरजेंसी के दौरान पूरी अवधि जेल में ही गुजारनी पड़ी. कुछ संघर्ष भरे पल के बाद पासवान ने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. यही वह वजह है कि आज भी उनके विरोधी उन्हें 'मौसम वैज्ञानिक' का नाम से पुकारते हैं.
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