पटनाः Ravan Dahan: नवरात्रा के दसवें दिन को विजयदशमी के पर्व के रूप में मनाते हैं. इस दिन एक तरफ माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था तो दूसरी ओर श्रीराम ने रावण को मारा था. हालांकि ये दोनों घटनाएं अलग-अलग कालखंड में घटित हुई थीं. इन दोनों घटनाओं की तिथि एक ही होने से इसे विजय का पर्व और विजय का दिन माना जाता है. इसीलिए इसे विजयदशमी और दशहरा दोनों नाम से जाना जाता है. विजयादशमी को महिषासुर वध से जोड़ कर देखते हैं तो दशहरा का तात्पर्य दस सिरों वाले की हार से है. 


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रावण ने मांगा था अमरता का वरदन
रावण के दस शीष बताए जाते हैं. इसके अलावा उसे वेदों सहित अन्य विषयों का भी काफी ज्ञान था. लेकिन उसे इस ज्ञान का घमंड बहुत था. इसलिए वह कई बार अहंकार में आकर लोगों को परेशान कर देता था. इसीलिए वह राजा बलि, सुग्रीव के भाई बाली, सहस्त्रार्जुन और अन्य कई राजाओं से युद्ध हार गया था. इसके बाद रावण अपने आप को अमर और शक्तिशाली बनाने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या में जुट गया. उसे देख बाद में उसके भाई कुम्भकर्ण और विभीषण भी उसके साथ तपस्या में आ गये. ब्रह्मा जी फिर रावण के पास आये रावण ने कहा पितामह मुझे अमरता का वरदान चाहिये. 


रावण ने की ब्रह्मदेव की तपस्या
ब्रह्मदेव ने कहा वो मेरे लिये देना सम्भव ही नहीं है लेकिन रावण नहीं माना ब्रह्मा जी चले गये. रावण पुन: तप में लगा रहा और वर्षों बाद घोर तपस्या से ब्रह्मा जी फिर रावण के पास आये उसको समझाया कि, अजर–अमरता  वाला वरदान मत माँगो तुम ज्ञानी हो, संसार के नियम को फेरने की शक्ति मुझ में नहीं, मैं मर्यादा में ही काम कर सकने की शक्ति रखता हूँ, पुत्र तुम मेरी तपस्या बार–बार कर रहे हो और मुझे व्यवधान हो रहा है इसलिये जितना हो सकता है मैं ऊतना तुम्हें आज दे देता हूँ. तुम्हारी नाभि में, मैं एक अमृत कुंड प्रदान करता हूँ और जब तक यह अमृत कुंड तुम्हारी नाभी में रहेगा तब तक तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी. 


ब्रह्मा जी ने दिया यह और वरदान
अगर तुम इस पर भी संतुष्ट नहीं हो और अजर-अमर होना चाहते हो, तो बेहतर है तुम महादेव की शरण में जाओ. महादेव की मैं नहीं जानता वो अमर होने का वरदान देंगे या नहीं, किंतु मेरे वश में तो नहीं है. रावण ने फिर ब्रह्मा जी से पूछा कि पितामह यह अमृत कुंड नाभि में कब तक रहेगा? तब ब्रह्मा जी ने कहा अग्नि बाण के अतिरिक्त इस अमृत कुंड को कोई नहीं सुखा सकता है रावण ने सोचा लगभग अमर होने जैसी बात है, क्युँकि अग्नि बाण का प्रयोग भगवान विष्णु के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं कर सकता है. उसने ब्रह्मा जी से कहा पितामह अब आप अजर अमर होने का वरदान तो नहीं दे रहे हैं इसलिये मैं इसे स्वीकार कर लेता हूँ पर आपको और भी कुछ देना होगा. ब्रह्मा जी ने कहा तुम अमर होने के अतिरिक्त अन्य जो माँगो मैं देने को तैयार हूँ तब रावण ने वरदान ऐसे माँगा कि उसको देव, दनुज, नाग, यक्ष, किन्नर, गंधर्व कोई भी युद्द में न मार सके. ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह दिया. 


इसी घटना के बाद रावण की नाभि में अमृत स्थापित हो गया था. ब्रह्मदेव ने कहा था कि अग्निबाण के अलावा इसे कोई सुखा नहीं सकता है. अग्निबाण का ज्ञान केवल श्रीहरि को था. इसलिए जब तक नारायण खुद आकर नहीं मारते तब तक रावण का अंत नहीं होना था. 


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