लालू-नीतीश को सत्ता दिलाने वाले शरद यादव, अंतिम समय तक करते रहे संघर्ष
शरद यादव (Sharad Yadav) की सबसे बड़ी उपलब्धि समाजवाद को लेकर उनकी निष्ठा ही मानी जाएगी. मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कराने में शरद यादव का बड़ा योगदान रहा. इसके लिए वो वीपी सिंह पर लगातार दबाव बनाते रहे.
पटना: Sharad Yadav: समाजवादी नेता, 10 बार सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव अपने अंतिम यात्रा पर निकल पड़े है. शरद यादव का जन्म भले ही बिहार में नहीं हुआ लेकिन उनकी कर्मभूमि बिहार ने उन्हे हमेशा के लिए अपना बना लिया. वैसे तो शरद यादव का जन्म मध्य प्रदेश में हुआ लेकिन वह चार बार बिहार के मधेपुरा से सांसद बने. वह अपने राजनीतिक जीवन में भले ही किंग नहीं बन पाए, लेकिन बिहार से लेकर केंद्र तक वह किंग मेकर की भूमिका में रहे.
शरद यादव का योगदान
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि समाजवाद को लेकर उनकी निष्ठा ही मानी जाएगी. मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कराने में शरद यादव का बड़ा योगदान रहा. इसके लिए वो वीपी सिंह पर लगातार दबाव बनाते रहे. वहीं, बिहार की राजनीति की बात करें तो शरद यादव (Sharad Yadav) लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन में ही नहीं इन दोनों नेताओं की सरकारों में लंबे समय तक केंद्र बिंदु बने रहे. ऐसा माना जाता है कि लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री बनाने में शरद यादव का बड़ा योगदान रहा है.
बिहार के ही होकर रहे शरद यादव
राजद के नेता शिवानंद तिवारी के मुताबिक शरद यादव बिहार आए और बिहार के ही होकर रह गए. उनके मुताबिक बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार की सरकार में शरद यादव ने अहम भूमिका निभाई. लालू के मूख्यमंत्री बनने को लेकर तिवारी कहते हैं कि पार्टी के बड़े नेताओं में से कुछ लोग रामसुंदर दास को सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे. वहीं, रघुनाथ झा भी मुख्यमंत्री की रेस में कूद गए लेकिन इस सब के बावजूद वो शरद यादव ही थे जिसके कारण लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बन पाए.
लालू के साथ शरद यादव की तल्खियां
हालांकि, समय के साथ लालू प्रसाद यादव के साथ शरद यादव (Sharad Yadav) की तल्खियां बढ़ने लगीं. बिहार में जब समाजवादी नेता दो धड़ों में बंट गए, तब शरद यादव जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार के साथ हो लिए. 1999 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव लालू प्रसाद के खिलाफ मैदान में उतरे और लालू को हरा दिया. यहां तक कि 2005 में बिहार में नीतीश कुमार को सत्ता की कुर्सी पर बैठाने में भी शरद यादव का अहम योगदान रहा.
शरद यादव NDA के संयोजक
राजनीति में शरद यादव सभी को जोड़ कर रखने की रणनीति पर भरोसा रखते थे. शरद यादव NDA के संयोजक भी रहे. साथ ही, वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री, श्रम मंत्री और उपभोक्ता मामलों के मंत्री भी रहे. लेकिन, 2013 में शरद यादव ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने के बाद NDA के संयोजक पद से इस्तीफा दे दिया.
JDU के अध्यक्ष रहे शरद यादव
वहीं, शरद यादव नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष रहे. लेकिन नीतीश से दूरियां बढ़ने लगी. लेकिन समय के साथ शरद यादव का नीतीश से भी मनमुटाव बढ़ गया. वहीं, नीतीश कुमार ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया जिसके बाद शरद यादव की राज्यसभा की सदस्यता भी चली गई. नीतीश से अगल होकर 2018 में शरद यादव ने लोकतांत्रिक जनता दल का गठन कर लिया.
हालांकि, इसके बाद शरद यादव ने 2019 में अपनी पार्टी का विलय राजद में कर दिया. 2019 में ही शरद यादव मधेपुरा से एक बार फिर चुनाव मैदान में उतरे लेकिन सफल नहीं हो सके. इस असफलता के बाद उन्होंने अपनी बेटी सुभाषिनी यादव को 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के रण में उतारा. सुहाषिनी यादव ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन वह सफल नहीं हो सकीं.
बहरहाल, समाजवादी राजनीति के पुरोधा शरद यादव नहीं रहे. बिहार की राजनीति में शोक की लहर है. सभी दल के नेता उनके निधन के बाद उन्हें याद कर रहे हैं और शोक जता रहे है. लेकिन बिहार के सभी नेताओं के शब्दों में एक बात सामने आ रही है कि भले ही शरद यादव का जन्म बिहार में नहीं हुआ हो, लेकिन सही अर्थों में वे बिहारी थे.