पटनाः श्रीकृष्ण के जन्म के बाद से ही उनके लिए संकट का क्षण शुरू हो चुका था, लेकिन वह तो भगवान थे. उनके लिए क्या संकट. लेकिन कंस ये नहीं समझ पा रहा था. उसने बाल कृष्ण को मारने के लिए कई उपाय किए और कई राक्षसों को भेजा. भगवान ने सभी का वध कर दिया. जानिए कंस ने पूतना के अलावा किन-किन राक्षसों को भेजा जो परमधाम को प्राप्त हुए. 


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कागासुर का वध
पूतना के वध के बाद कंस श्री कृष्ण की हत्या हेतु कगासुर को भेजता है. श्री कृष्ण के पास जब कागासुर पहुँचता है तो श्री कृष्ण उसे भी मौत के घाट उतार देते है और उसका शव कंस के सामने जाकर गिरता है. कंस कागासुर की मृत्यु से निराश हो जाता है. कागासुर की मृत्यु के बाद ही कंस को यह संदेह होता है कि य़शोदा का लाल, वास्तव में देवकी का पुत्र है. 


उत्कच या शकटासुर का वध
कृष्ण का वध करने के लिये कंस का भेजा गया असुर शकटासुर भी आया. उसका वास्तविक नाम उत्कतच था. लेकिन कोई शरीर न होने के कारण वह किसी भी वस्तु में घुस सकता था. एक दिन दोपहर में सोते बालकृष्ण पर हमला करने लगा. वह तत्काल एक बैलगाड़ी में प्रवेश कर गया. वह टूटकर कृष्ण के ऊपर गिरकर उनके प्राण हरण करने वाला था कि कृष्ण ने अपना पैर मारकर उसको उछाल दिया. जब वह धरती पर गिरा तो चूर-चूर हो गया. इस तरह उसे मोक्ष पद प्राप्त हो गया.


तृणावर्त का वध 
तृणावर्त नाम का राक्षस कंस का निजी और विश्वासपात्र सेवक था. तृणावर्त बहुत ही भयंकर रूप से आंधी और तूफ़ान का रूप लेकर गोकुल पंहुचा और सारे गोकुल को तहस नहस करने लगा. आंधी और तूफ़ान के कारण बहुत घना अँधेरा छा गया और आंधी रूपी तृणावर्त ने जैसे ही बालाक कृष्ण को देखा उसने तुरंत ही अपनी तेज हवाओ से भगवान को अपने तूफ़ान में खींच लिया. भगवान ने तूफ़ान में उड़ते हुए अपना वजन इतना भारी कर लिया की तृणावर्त उनके वजन को सह नहीं सका और भगवान के भार से मारा गया. तृणावर्त का वध करने के बाद भगवान उसे मोक्ष की प्राप्ति करवाते है.


वत्सासुर का वध 
नन्द गाम आने के बाद भगवान वह गाय और बछड़ों को चराने के वन जाने लगे. हमेशा की तरह जब सारी ग्वाल बालों की मंडली गाय और बछड़ों को चराने के लिए गए तो सभी ने बछड़ो के बीच एक बहुत ही अद्भुत बछड़ा देखा और कान्हा को जाकर बताया, भगवान ने उसे देखते ही पहचान लिया और और उसके पास जाने लगे. भगवान को पास आते देख वत्सासुर ने भगवान कृष्ण पर आक्रमण कर दिया, कुछ देर तक भगवान वत्सासुर को छकाने लगे और उसे ज्यादा गुस्सा दिलाने लगे और जैसे ही गुस्से में वत्सासुर भगवान को मारने आया भगवान ने मौका देखकर उसकी पूछ पकड़ी और हवा में घूमते हुए पत्थर पर उसे दे मारा जिससे वो वही बेसुध होकर गिर पड़ा और मारा गया. उसे भी मुक्ति मिली


बकासुर का वध 
कंस लगातार अपने राक्षसों को भगवान को मारने के लिए भेजता रहा. इसी कड़ी में उसने एक दिन बकासुर को भेजा. बकासुर बाहर जंगल में कृष्ण और ग्वाल बालो का इंतज़ार करने लगा. जब एक दिन सभी लोग वहां खेलने आये तो उसने अपने पंखो से बहुत ही भयानक आंधी उत्पन्न की जिससे सारे ग्वाल डर गए मौका पाकर उसने भगवान कृष्ण को अपने चोंच में फसकर गले में उतार लिया. गले में उतारते ही उसको बहुत तेज जलन हुयी. भगवान के तेज को बकासुर सह नहीं सका और कुछ ही देर में बकासुर ने भगवन को वापस बाहर उगल दिया. बाहर आते ही भगवान ने उसके दोनों चोंच को हाथ से पकड़ा और उसकी चोंच से उसे चीर दिया. इस तरह भगवान ने बकासुर को भी मुक्त कर दिया.


अघासुर का वध 
अब कंस बहुत ही चिंतत हो गया और उसने श्री कृष्ण को मारने के लिए अघासुर को भेजा. अघासुर पूतना और बकासुर का भाई था. अघासुर का खौफ इतना था की देवता भी उससे भय में रहते थे. अघासुर एक बहुत बड़ा अज़गर था जो अपने शरीर को अदृश्य कर लेने के बाद किसी भी क्षेत्र में जाकर तबाही मचा देता था. अघासुर वृन्दावन जा पंहुचा और अपना विशाल मुंह खोल कर बैठ गया. उसके विशाल मुंह को खुला देखकर भगवान सहित सारे ग्वालबाल उसमे चले गए और अघासुर ने अपना मुँह बंद कर दिया. अपने आप को संकट में फसा देख ग्वाल बाल भगवान से प्रार्थना करने लगे. मौका पा कर भगवान ने भी अपना शरीर विशाल रूप में करना शुरू कर दिया और अपनी बांसुरी से अघासुर के पेट में घाव करने लगे जिससे अघासुर का पेट फट गया और उसके प्राण ले लिए. इस तरह भगवान श्री कृष्ण ने अघासुर को भी जीवन और मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दिया.


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